पहाड़ों में खूब पसंद किया जा रहा हाथ से चलाने वाला ट्रैक्टर

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गोपेश्वर। ट्रैक्टर अब तक सिर्फ मैदानी क्षेत्रों के खेतों में ही देखने को मिलता था या चलाया जाता था, लेकिन अब पहाड़ के सीढ़ीनुमा खेतों में भी ट्रैक्टर चलने लगे हैं। यहां के किसानों के बीच हाथ से चलाए जाने वाला ट्रैक्टर काफी पसंद किया जा रहा है।

पहाड़ों पर सीढ़ीनुमा खेत होने के कारण ट्रैक्टर से खेती का काम संभव नहीं था। इस लिए यहां पर बैलों से खेती में हल लगाने का काम किया जाता है।

तकनीकी के विकास के साथ ट्रैक्टर बनाने वाली कंपनियों ने हल्के और हाथ से चलाने वाले छोटे ट्रैक्टर बनाने शुरू कर दिए। पहाड़ों पर कृषि विभाग ने इन छोटे ट्रैक्टरों का प्रदर्शन कर किसानों को इसकी उपयोगिता बताई। इसके बाद किसान इन हल्के ट्रैक्टरों को हल जोतने के लिए प्रयोग में लाने लगे हैं।

कृषि विभाग के अपर जिला कृषि अधिकारी चमोली डॉ जितेंद्र भाष्कर बताते हैं कि अब तक चमोली में व्यक्तिगत रूप से सौ से अधिक किसान इस ट्रैक्टर का उपयोग खेती के कामों में कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में सरकार एक नई योजना लाई है, जिसमें आठ लोगों के समूह को 10 लाख रुपये तक के कृषि के उपकरण 80 फीसदी सब्सिडी पर दिए जा रहे हैं। इस नई तकनीकी से बने ट्रैक्टर के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे एक लीटर डीजल में चार नाली भूमि पर हल लगा सकते हैं। यह काम बेहतर चालक के माध्यम से सिर्फ एक घंटे के भीतर किया जा सकता है। ऐसे में समय की बचत भी हो जाती है और खेतों की जुताई कम समय में पूरी हो जाती है।

इस ट्रैक्टर का उपयोग कर रहे पोखरी के किसान श्रवण सती का कहना है कि बैलों को साल भर चारा खिलाने के बाद सिर्फ दो माह ही काम लिया जाता है। ऐसे में किसान को आर्थिक हानि भी होती है। जब से जंगलों से चारा लाने पर प्रतिबंध लगा है तब से और भी अधिक परेशानी हो रही है। ऐसे में यह नई तकनीकी का ट्रैक्टर हम किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है।