हैप्पी मशरुमिंग विद दिव्या रावत, केंद्र सरकार ने दिया नारी शक्ति सम्मान

पहाड़ की बेटियां

0
1027

“मशरुम गर्ल” के नाम से मशहूर दिव्या रावत न केवल देहरादून बल्कि पूरी देश में अपनी पहचान बना ली है। दिव्या को 8 मार्च,महिला दिवस पर भारत सरकार द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से नवाज़ा गया। दिव्या रावत उत्तराखंड की सभी लड़कियों के लिए मिसाल बनकर सामने आई हैं। दिव्या उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले के कोटकंडारा गांव की रहने वाली हैं।दिव्या ने एमिटी यूनिर्वसिटी से बैचलर इन सोशल वर्क की डिग्री ली,उसके बाद इग्नू से मार्स्टस इन सोशल वर्क के बाद लगभग दो साल शक्ति वाहिनी एनजीओ में  ह्यूमन राइट और ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर काम किया है।

ना सिर्फ अपने राज्य उत्तराखंड,दूसरे प्रदेश जैसे कि झारखंड में भी दिव्या की मशरुम वर्कशाप आयोजित होती है और लोग उनसे मशरुमिंग के गुण सिखते हैं।पिछले दिनों दिव्या ने श्रीनगर के एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्धालय में भी मशरुम के ऊपर एक कार्यशाला में भाग लिया था।बीते 4 और 5 मार्च को आयोजित बसंत्तोत्सव में भी दिव्या के प्लांट से उगाए गए मशरुम को स्टाल के माध्यम से लोगों तक पहुचाया गया।

अपनी इस सफलता का श्रेय दिव्या अपनी मेहनत और अपने साथ काम करने वाले हर एक कार्मिक को देती हैं।अपने पहले मशरुम प्लांट की शुरुआत दिव्या ने मोथरावाला देहरादून से की थी।इसके बाद दिव्या के इस मिशन में लोग इनसे जुड़ते गए और पहले प्लांट की शुरूआत से अब तक इन्होंने उत्तराखंड में लगभग 53 सेंटर शुरु कर दिए हैं।

14203140_1207451482610215_7401284910072742460_n

दिव्या की सोच सिर्फ इतनी थी कि पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोका जा सके। आज जितने भी लोग दिव्या के साथ काम कर रहे वह आत्मनिर्भर और अपनों के साथ हैं।दिव्या के साथ हर क्षेत्र और कस्बे के लोग जुड़े हुए हैं।अपने पहले सेंटर से करोड़ो के टर्नओवर तक पहुंचने वाली दिव्या अभी तक कहती हैं कि अभी तो केवल शुरुआत है,बहुत लंबा सफर है यह।दिव्या यह मानती हैं कि अभी उन्होंने केवल 2 प्रतिशत काम किया है,बाकी 98 प्रतिशत काम करना अभी बाकी है। दिव्या कहती है कि “मैं मशरुम की खेती को पूरे देश में फैलाना चाहती हूं, 2017 के आखिरी तक कम से कम 500 सेंटर का टारगेट लेकर चल रहीं हूं और मुझे पूरा विश्वास हैं कि लोगों का साथ और मेरी मेहनत रंग लाएगी।”