सिखों के पवित्र धाम श्री हेमकुंड साहिब के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुले

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हेमकुंड

देहरादून, उत्तराखंड में सिखों के पांचवें धाम के नाम से विश्व विख्यात तीर्थ के रूप में हेमकुंड साहिब के कपाट ग्रीष्म काल के लिये आज सुबह 9 बजे से पूरे विधि विधान के साथ तीर्थयात्रियों के लिए खोल दिए गए।

उत्तराखंड के चमोली जिले में 15 हजार फुट से भी ज्यादा ऊंचाई पर स्थित हेमकुंड साहिब तथा प्राचीन लोकपाल मंदिर के कपाट आम दर्शनार्थियों के लिए पूरे विधि-विधान से खोल दिए गए। इस मौके पर बड़ी संख्या में सिख श्रद्धालु पहली अरदास के लिए हेमकुंड पहुंचे। सुखमणि साहब का पाठ और शब्द कीर्तन बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने शिरकत की लगभग 2000 से ज्यादा सिख श्रद्धालु कपाट खुलने के समय मौजूद रहे।

बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोविंदघाट से करीब 21 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद ही हेमकुंड साहिब पहुंचा जाता है। घांघरिया से हेमकुंड साहिब तक करीब छह किलोमीटर के बीच कई जगहों पर बर्फ को काटकर रास्ता बनाया गया है। जहां यात्रियों को बर्फ के रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है। पूरी पहाड़ियां बर्फ की सफेद चादर ओढ़ के सुंदरता को बिखेरती हैं, यह मनमोहक नजारा किसी का भी मन मोह लेता है। सेना और पुलिस के जवानों ने बड़ी मेहनत के साथ श्री हेमकुंड साहिब में व्यवस्थाओं को पूरा किया है।

इतिहास के पन्नों में श्री हेमकुंड साहिब कैसे हुई खोज क्या है कहानी:-

सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार, ये सात पर्वत चोटियों से घिरा हुआ एक हिमनदों झील के साथ 4632 मीटर (15,197 फीट) की ऊंचाई पर हिमालय में स्थित है। इसकी सात पर्वत चोटियों की चट्टान पर एक निशान साहिब सजा हुआ है, यहां पर गोविन्दघाट से होते हुए ऋषिकेश-बद्रीनाथ राजमार्ग पर 1937 में गुरु ग्रंथ साहिब को स्थापित किया गया, जो आज दुनिया में सबसे ज्यादा माने जाने वाले गुरुद्वारे का स्थल है। 1939 में संत सोहन सिंह ने अपनी मौत से पहले हेमकुंड साहिब के विकास का काम जारी रखने के मिशन को मोहन सिंह को सौंप दिया। गोबिंद धाम में पहली संरचना को मोहन सिंह द्वारा निर्मित कराया गया था।1960 में अपनी मृत्यु से पहले मोहन सिंह ने एक सात सदस्यीय कमेटी बनाकर इस तीर्थ यात्रा के संचालन की निगरानी दे दी। आज गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब के अलावा हरिद्वार, ऋषिकेश, श्रीनगर, जोशीमठ, गोबिंद घाट, और गोबिंद धाम में गुरुद्वारों में सभी तीर्थयात्रियों के लिए भोजन और आवास उपलब्ध कराने का प्रबंधन इसी कमेटी द्वारा किया जाता है।

कैसे हुई खोज:

पंडित तारा सिंह नरोत्तम जो उन्नीसवीं सदी के निर्मला विद्वान थे। हेमकुंड की भौगोलिक स्थिति का पता लगाने वाले वो पहले सिख थे, श्री गुड़ तीरथ संग्रह में जो 1884 में प्रकाशित हुआ था, में उन्होंने इसका वर्णन 508 सिख धार्मिक स्थलों में से एक के रूप में किया है। बहुत बाद में प्रसिद्ध सिख विद्वान भाई वीर सिंह ने हेमकुंड के विकास के बारे में खोजकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भाई वीर सिंह का वर्णन पढ़कर संत सोहन सिंह जो एक रिटायर्ड आर्मीमैन थे, ने हेमकुंड साहिब को खोजने का फैसला किया। वर्ष 1934 में वो सफल हो गया, पांडुकेश्वर में गोविंद घाट के पास संत सोहन सिंह ने स्थानीय लोगों के पूछताछ के बाद वो जगह ढूंढ ली जहां राजा पांडु ने तपस्या की थी और बाद में झील को भी ढूंढ निकला जो लोकपाल के रूप विख्यात थी।