चमोली के पोखरी गांव के बाहर एक बोर्ड पर लिखा है “सर्व शिक्षा अभियान से अच्छादित” जहां पहले तीन चार शब्द तो आम बोल चाल की भाषा के थे वहीं “अच्छादित” ने मुझे उलझन में डाल दिया।क्या इस शब्द का मतलब अच्छा है या बुरा? इन ख्यालों ने डाॅ पुरोहित को असमंजस मे डाल दिया।
मैं डाॅ पुरोहित की बात को बिलकुल समझ सकती हूं। डेढ़ दशक के अपनी मीडिया के सफर के दौरान मैं लगातार सरकारी प्रेस रिलीज़ और ऑर्डरों की काॅपी से जूझती रही हूं। इन सब में हिंदी भाषा के ऐसे इस्तेमाल किया जाता है जो संस्कृत भाषा से मिलता जुलता है। ये शब्दावली हिंदी का सबसे शुद्ध रूप तो है लेकिन क्या ये आज के ज़माने में अन्य भाषाओं ख़ासतौर पर अंग्रेज़ी से अपने वर्चस्व की लड़ाई लड़ रही हिंदी को बचाने में कारगर है? बहरहाल अपना काम आसान करने के लिये मुझे सरकारी हिंदी मीडियम स्कूल से रिटायर्ड अपनी मां का सहारा मिल जाता है। मां बताती हैं कि ” सरकारी हिंदी भाषा ने पिछले कई सालों में संस्कृत की छाप वाली हिंदी से आम लोगों के बोलचाल की हिंदी तक का सफर तय नहीं किया है। अपने 37 साल की सरकारी नौकरी मे मैंने एक भी ऐसा सरकारी पत्र नहीं देखा जिसे पढ़ने और समझने में परेशानी नहीं हुई हो”
मेरे हिसाब से तो सरकारी आदेश, पत्र आदि लिखते हुए ऐसा लगता है कि मानो मुकाबला हो रहा हो सबसे कठिन और जटिल शब्द कौन ढूंढ के ला सकता है। और शायद ये ही कारण है कि राजभाषा होने के बावजूद हिंदी आज भी अंग्रेज़ी से मात खा रही है।अाज जब देश लिखित से डिजिटल दौर की तरफ बढ़ चुका है ऐसे मे दौर चीज़ों को फटाफट और आसान तरीके से बताने और समझाने का है। हिंदी को बचाने और युवाओं के बीच में बढ़ावा देने के लिये कई विभाग हैं, सम्मेलन होते हैं, डिबेट होती हैं लेकिन शायद ही किसी ने इस पहलू पर ध्यान दिया है कि रोज़ाना लाखों लोगों को जिस माध्यम से हिंदी से रूबरू होना पड़ता है कहीं वो हिंदी को लोगों से दूर तो नहीं ले जा रहा?
खुद सरकारी अधिकारी भी इस बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं। एसएसपी उधमसिंह नगर सदानंद दात्ते कहते हैं कि “शुद्ध हिंदी को ज़रूरत से ज्यादा महत्व दिया जाता है। हिंदी अपने आप मे वही आम लोगों के बोलचाल की भाषा है लेकिन सरकारी कामों में इस्तेमाल होने वाली हिंदी काफी जटिल होती है, इसे आम लोगों के लिये और आसान बनाने की ज़रूरत है।”
नेता भी किस बात को मानते हैं कि सरकारी कामों में इस्तेमाल होने वाली हिंदी काफी जटिल है। कांग्रेस के प्रदेश अधयक्ष किशोर उपाध्याय कहते हैं कि “जानभूझकर सरकारी कामों और आदेशों में हिंदी को इतना जटिल रखा जाता है ताकि वो ज्यादातर लोगों को समझ में न आये।”
बोलचाल की हिंदी और कागज़ों में लिखे जाने वाली हिंदी के बीच की दूरी हर सरकारी पत्राचार के साथ बढ़ती जा रही है। शायद अब वो समय आ गया है कि वास्तव में हिंदी को लोगों की पसंदीदा भाषा बनाने के लिये कुछ ज़मीनी कदम उठाये जायें।आम आदमी सराकरी कामकाज में इस्तेमाल होने वाली हिंदी नहीं समझ पाता है और ये एक बड़ा कारण है कि आज हिंदी सरलता से दूर “क्लिशत” होती जा रही है।