भूत : द हॉन्टेड शिप देख कर हॉरर फिल्मों के शौकीन निराश नहीं होंगे

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हॉरर फिल्मों की अपनी अलग ही पहचान है। दुनिया भर के निर्देशकों ने इस पर हाथ आजमाया है। बॉलीवुड भी अछूता नहीं रहा। रामसे ब्रदर्स से लेकर रामगोपाल वर्मा तक ने इस जोनर की फिल्में बनाकर प्रसिद्धि पाई है। अब डेब्यूटेंट डायरेक्टर भानूप्रताप सिंह भूत पार्ट 1 : द हॉन्टेड शिप लेकर रजतपटल पर उपस्थित हुए हैं।
मुम्बई के जुहू बीच के किनारे अचानक एक रात बिना किसी आदमी के एक जहाज आकर लग जाता है। शिपिंग अधिकारी पृथ्वी (विकी कौशल) को उस जहाज को जल्द से जल्द हटाने की जिम्मेदारी दी जाती है। पृथ्वी जहाज का निरीक्षण करने जब अंदर जाता है तब उसे अमानवीय घटनाओं से दो-चार होना पड़ता है। उसे मालूम पड़ता है कि वह जहाज जिसका नाम सी बर्ड है, में प्रेत रहता है। पृथ्वी सी बर्ड का इतिहास खंगालता है और कहानी आगे बढ़ती है। चूंकि यह फिल्म रहस्य रोमांच की है, इसलिए सभी रहस्यों को खोल देना समीचीन नहीं होगा। बहरहाल बाकी के हिस्सों पर बात करते हैं।
हॉरर फिल्मों का उद्देश्य दर्शकों को डराना होता है। इसके लिए सबसे जरूरी होता है विजुअल और साउंड इफेक्ट। वैसे विजुअल जो आपको डरा सकें और ध्वनि का ऐसा प्रभाव जो आपको सिहरा दे और आपके रोंगटे खड़े हो जाये। हॉरर फिल्मों की पटकथा ऐसी होनी चाहिए, जिसमें आकस्मिकता का पुट हो। अचानक से आपको झटका लगे। अगर किसी फिल्म में ये तीनों गुण हो तो उसे हॉरर की संज्ञा दी जा सकती है।
इस फिल्म के साउंड इफेक्ट और बैकग्राउंड स्कोर की बात करें तो यह पार एक्सेलेंस है। माहौल के अनुरूप एक एक चीजों का ध्यान रखा गया है। यहां तक कि चुटकी की आवाज भी खौफ पैदा कर देती है। एक गीत है जो फ़िल्म के आरंभ में है और बीच में कहीं कोई गीत नहीं रख गया अच्छी बात है। गीत बढ़िया बना है।
पूरी फिल्म का दायरा बहुत सीमित जगह पर है। फिर भी कोशिश की गई है कि भय का माहौल बना रहे। वीएफएक्स का प्रभाव शिप पर दिखता है। पुष्कर सिंह की सिनेमाटोग्राफी उत्कृष्ट है। टुकड़े टुकड़े में बोधादित्य बनर्जी का संपादन अच्छा लगा।
पटकथा की बात की जाये तो फिल्म की शुरुआत अच्छी है पहला ही दृश्य खौफ पैदा कर देता है लेकिन जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है वैसे वैसे शिथिलता आती जाती है। मध्यांतर के बाद को थोड़ा और चुस्त किये जाने की जरूरत थी।
यह फिल्म पूरी तरफ विक्की कौशल के कंधे पर थी। और उन्होंने अपने अभिनय से साबित कर दिया कि उनका कंधा मजबूत है। उन्होंने हर इमोशन को जीने का भरसक प्रयास किया है और सफल रहे हैं। आशुतोष राणा के चरित्र को बहुत सीमित रखा गया है। उसे थोड़ा और विस्तार दिया जाना चाहिए था। शायद पार्ट 2 में उनका बेहतर उपयोग किया जाएगा। सहयोगी कलाकरों ने भी बढ़िया काम किया है। भूमि पेडनेकर मेहमान कलाकार के रूप अच्छे अभिनय का प्रदर्शन किया है। उनके लिए कुछ खास करने के लिये था नहीं।