IIT पासआउट आशीष ने बदली राज्य में हैंडलूम की तस्वीर

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(देहरादून) किसी ने बहुत खूब कहा है कि ‘’तुम कोई भी चीज़ हांसिल कर सकते हो,अगर तुम्हारे मन में उसे पाने की तीव्र इच्छा हो’’ और यह तीव्र इच्छा कम लोगों में होती है।लेकिन उत्तराखंड के युवा हर क्षेत्र में राज्य का नाम रौशन कर रहे हैं। ऐसे ही रुड़की के आशीष ध्यानी ने भी कुछ अपना और हटकर करने की सोची और आज वह अपने साथ-साथ बहुत से लोगों को एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म दे रहे हैं अपनी कला दिखाने का।

29 साल के आशीष ने आईआईटी रुड़की से अपनी पढ़ाई की है,और दूसरो की तरह वह मोटे पैकेज पर किसी मल्टीनेशनल कंपनी या विदेश में नौकरी नहीं कर रहे बल्कि रुड़की में उत्तराखंड हथकरघा संस्था के माध्यम से आशीष ना केवल राज्य के हैंडलूम को बढ़ावा दे रहे बल्कि बहुत से ट्रेडिशनल वीवर कम्यूनिटी यानी की बुनकरों को भी एक प्लेटफॉर्म दे रहे हैं।

उत्तराखंड हथकरघा के बारे में और बात करते हुए आशीष ने बताया कि जब मैंने इसकी शुरुआत की तो मुझे नहीं पता था यह कितना सफल होगा लेकिन मैंने अपनी सोच को एक रुप देने के लिए इसकी शुरुआत कर दी।आशीष बताते हैं कि पहले मैं रुड़की के आसपास रहने वाले बुनकरों के लिए कुछ करना चाहता था।लेकिन जैसे-जैसे मुझे परंपरागत वीवर (बुनकरों) के इतिहास और उनकी कहानियों का पता चला,तबसे उत्तराखंड हथकरघा क्षेत्र में हथकरघा की खोई हुई पहचान को वापस लाने की पहल बन गया।आशीष ने बताया कि जितना ज्यादा मैं इसके बारे में जानने लगा उतना ही इस परंपरा को व्यापार के रूप में खोने के सामाजिक पहलू मेरे लिए स्पष्ट हो गए।और मेरे हिसाब यह एक बहुत बड़ा कारण है जिसकी वजह से राज्य में पलायन की समस्या बढ़ती जा रही है।यहां से मेरा उत्तराखंड हथकरघा का सफर शुरु हुआ।हथकरघा के माध्यम से आशीष इस वक्त रिर्वस माइग्रेशन पर काम कर रहे हैं और खासकर उन लोगों के लिए जिनके लिए बुनाई एकमात्र साधन है रोजी-रोटी का।

आईआईटी रुड़की से आशीष ने प्रोडक्शन और इंडस्ट्रीयल इंजिनियरिंग में बीटेक किया है।उसके बाद महारत्न से लेकर स्टील ऑथिरिटी ऑफ इंडिया,रुड़केला में काम करने के बाद साल 2015 में आशीष अपने राज्य उत्तराखंड वापस आ गए और अपना र्स्टाट-अप करने का सोचा।बस इसी सोच और अपना करने की चाह में उत्तराखंड हथकरघा की शुरुआत हुई। आपको बतादें कि उत्तराखंड हथकरघा आईआईटी और एनआईटी पूर्व छात्रों और एक जैसे उद्देश्य वाले छात्रों की टीम हैं, इस समय उत्तराखंड हथकरघा के साथ लगभग 500 बुनकर काम कर रहे हैं।

इनका उद्देश्य ना केवल बुनकरों को आर्थिक रुप से मजबूत करना है बल्कि समाजिक तौर पर भी इनकी बेहतरी के लिए यह टीम काम कर रही है।

अगर आप हैंडलूम चीजों का शौक रखते हैं तो आपको उत्तराखंड हथकरघा द्वारा बनाए हुए स्कार्फ,अलग-अलग वेराइटी के शॉल जैसे कि पशमिना शॉल,मरीनो शॉल,हर्शिल शॉल,अंगोरा शॉल,कॉटन और सिल्क शॉल।इसके अलावा पशमिना साड़ी और ऊनी कपड़े भी उत्तराखंड हथकरघा के कुछ प्रोडक्ट हैं। साथ ही नीती-माणा क्षेत्र के आस-पास एक महिला समूह के साथ उत्तराखंड हथकरघा स्थानीय और मेरिनो ऊन से बने ऊनी कपड़े विकसित करने पर काम कर रहा है,जिसकी शुरुआत में बच्चों के कैप्स और स्वेटर बनाए गए हैं।

आशीष ने बताया कि इन सभी उत्पादों के अंर्तराष्ट्रीय डिमांड को पूरा करने के लिए हम ई-कॉमर्स वेबसाइट amazon.com और amazon.in पर अपना प्रोडक्ट दे रहे हैं साथ ही दूसरे प्लेटफॉर्म पर भी अपने प्रोडक्ट को प्रमोट कर रहे हैं।

आशीष की कोशिश से आज उत्तराखंड हथकरघा को एक नई पहचान मिल रही है जिससे ना केवल राज्य का नाम हो रहा बल्कि परंपरागत बुनाई करने वाले लोगों को भी जीवन जीने की नई दिशा मिल रही है।