उत्तराखंड की जेलों में बदमाश सक्रीय हैं, ये कहना ग़लत नहीं होगा, क्योंकि आये दिन राज्य के किसी न किसी जेल में मोबाइल फ़ोन मिलने की घटना अब आम हो चली हैं। इन पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने जेलों में जैमर लगाये हुए हैं लेकिन अब राज्य सरकार एक बार फिर जैमर का विकल्प तलाश रही है, क्योकि जेलो में लगे जैमर भी अपराधियो की गतिविधियों पर रोक नही लगा पा रहे हैं।
उत्तराखंड की जेलो में अनेक कुख्यात कैदी बन्द है और जेलो से ही वो अपने काले कारोबार को फोन के माध्यम से चला रहे हैं।खुद सूबे के मुख्यमंत्री इस बात को स्वीकार रहे हैं कि जैमर लगाने की योजना सफल नही हो पा रही है और अपराधी अभी भी फोन के माध्यम से अपना कला कारोबार चला रहे हैं अब सरकार नये विकल्प की तलाश में जुट गई है।
हरिद्वार जेल कि घटना हो या फिर रूडकी जेल कि जिसने जेल पुलिस पर सवाल खड़े कर दिए थे, क्यूंकि इन जेलों में बैठे कुख्यात अपराधी जेलों से ही गैंग आपरेट कर रहे हैं, जिनका जरिया केवल मोबाइल फोन है। जबकि जेलों में कैदी मोबाइल फोन का उपयोग नही कर सकते हैं, लेकिन जेलों में मोबाइल का प्रयोग न हो जिसके लिए सरकार ने जेलों में जैमर लगाने कि योजना तैयार की जिसके लिए तीन करोड़ का बजट भी जारी किया गया था, लेकिन अब जैमर के बदले कुछ और ही विकल्प सरकार देखने जा रही है।
आपको बता दें कि राज्य में 11 जेलें मौजूद है जिन पर जैमर लगना था। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिहं रावत खुद इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि जैमर की योजना सरकार की सफल नही रही है और अब इसके लिए नयी योजना बनाई जाएगी।
वहीं अशोक कुमार, डीजी लॉ एन्ड ऑडर भी मानते हैं कि जेलों में जैमर लगाना कोई ठोस विकल्प नही है, जेलों का एरिया बड़ा होता है और इतने बड़े इलाके में नेटवर्क जाम करना महंगा सौदा है। साथ ही अभी तक टू-जी, थ्री-जी के ही जैमर यूज हो रहे हैं और जो धटनाये जेल में देखने को मिली है, उनमे से अपराधी 4G और सोशियल मीडिया के जरिए अपने गैंग चला रहे हैं।इसको रोकने के लिए सबसे पहला की मोबाइल फोन जेल के अंदर जाने ना दिया जाय,हालांकि पुलिस ने यह भी स्वीकार किया कि तमाम कोशिशों के बावजूद भी फोन जेल के अंदर पहुच जाते हैं।
भले ही सरकार अब इन अपराधियों कि गतिविधियों पर नज़र रखने के कठोर कदम उठाने कि बात कह रही हो,लेकिन सवाल उठना लाजमी है कि जेलों में बंद अपराधियों के पास आखिर मोबाइल फोन पहुच कैसे रहे हैं और कौन इसका जिम्मेदार है?