6 मार्च से झंडा जी साहब में शुरु होगा मन्नतों का त्यौहार

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दून के ऐतिहासिक झंडा जी साहब का 372वां मेला 6 मार्च से शुरु होगा। सातवें सिख गुरु हरराय जी के सबसे बड़े बेटे गुरु रामराय जी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में हर साल चैत्र माह की पंचमी यानि होली के 5 दिन बाद से इस मेले की शुरुआत होती है।मेले को लेकर दरबार साहिब का पूरा प्रशासन तैयारियों में जूट गया है। कहीं झंडे जी को चढ़ाने को लेकर व्यवस्थाएं की जा रही है तो कहीं संगत के ठहरने और उनके लिए लगने वाले लंगर की।

देश के साथ साथ विदेशों से आने वाली संगत को न्योता भेजा जा चुका है। वहीं संगत के पहुंचने से पहले स्थानीय लोगों ने मोर्चा संभालते हुए तैयारियों को लेकर अपने सेवाएं देनी शुरु कर दी हैं। मोहब्बेवाला स्थित श्री गुरु राम राय पब्लिक स्कूल में इस झंडे जी को तराशने का काम चल रहा है।

हर साल की तरह इस साल भी 6 मार्च को श्री गुरू रामराय दरबार के आँगन में पवित्र झंडे जी को सुबह शुभ समयानुसार उठाया जाएगा। यह वही जगह है जहां कई सौ साल पहले गुरू रामराय जी महाराज ने अपना डेरा स्थापित किया था। कहा जाता है कि झंडे जी के नीचे बैठकर गुरु रामराय जी महाराज लोगों को आर्शीवाद के साथ विश्व कल्याण का संदेश दिया करते थे।

हर साल पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश के साथ साथ विदेशों से आए भक्त पारंपरिक तरीके से श्री झंडा साहिब को नीचे उतारते हैं। इसके बाद श्री झंडा साहिब के पूराने वस्त्रों को उतारकर उन्हे दूध दही और गंगाजल से स्नान कराया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया के बाद श्री झंडा साहिब को मारकीन से बने नए वस्त्र पहनाए जाते है और अंत में दर्शनी गिलाफ चढ़ाने का प्रावधान है। दर्शनी गिलाफ के बाद झंडे जी को वापस उनके स्थान पर चढ़ा दिया जाता है। जिसके बाद संगत न सिर्फ नाचती गाती है बल्कि इस खुशी के मौके पर लगने वाले मेले का आनंद भी उठाती है।

इस बार 6 मार्च को लुधियाना के अर्जुन सिंह दर्शनी गिलाफ चढ़ाएंगे। जिनके पिता ने 30 साल पहले मन्नत पूरी होने पर गिलाफ चढ़ाना कबूला था और बुकिंग कराई थी, वहीं दरवार साहिब के अनुसार 2116 तक दर्शनी गिलाफ चढ़ाने की बुकिंग हो चुकी है।

दरअसल दून के इतिहास और स्थापना से सीधे तौर पर जुड़ा श्री झंडा जी मेला श्री गुरु राम राय जी के पदार्पण सन् 1679 से मनाया जा रहा है। देहरादून की खूबसूरती और शांत आबोहवा को देखते हुए गुरु रामराय जी ने यहा डेरा जमाया और तभी से इस जगह का नाम डेरादीन से डेरादून और फिर देहरादून पड़ा। देहरादून ही श्री गुरुराम राय की कर्मस्थली रही है जहां हर वर्ष लाखों की संख्या में भक्त उनकी याद में पूरे विधि विधान के साथ झंडे जी को चढ़ा कर इस पारंपरिक मेले में भाग लेते हैं।