मिसालः कैल घाटी के ग्रामीणों ने गढ़ डाली नई कहावत

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गोपेश्वर। चमोली जनपद के विकास खंड देवाल का सुदुरवर्ती गांव घेस आज किसी पहचान का मोहताज नहीं रहा। कैल घाटी में बसा घेस में गांव में न सड़क, न बिजली, न दूरसंचार, न शिक्षा, न स्वास्थ्य, लेकिन अब गांव के अर्जुन बिष्ट और ग्रामीणों की मेहनत ने इस कहावत को झुठला दिया है और अब इस गांव के लोगों ने एक नई कहावत गढ डाली है घेस से सीखेगा देश। अब धीरे-धीरे इस गांव को माॅडल विलेज बनाने का सपना साकार होने लगा है।

वहीं, आज इस गांव में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपद नायक और उत्तराखंड के आयुष मंत्री डा. हरक सिंह रावत कुटकी महोत्सव में शिरकत कर जड़ी बूटी उत्पादन को बढ़ावा देने को लेकर शिकरत किया। कैल घाटी में बसा है घेस गांव। घेस गांव के बारे में कभी कहावत थी की घेस से आगे नहीं कोई देश, शायद यह कहावत इस गांव और घाटी में सुविधाओं के घोर आभाव के कारण गढी गयी हो। इस सपने को हकीकत में बदलने में सबसे बड़ा योगदान हैं गांव के अर्जुन बिष्ट का, जो पेशे से पत्रकार हैं लेकिन माटी की असली सेवा कर रहे हैं। आज उन्हीं के प्रयासों से घेस गांव डिजिटल ग्राम से लेकर आयुष ग्राम, मटर, सेब, कुटकी, जटामासी के उत्पादन के बाद अब गुलाब की खेती के जरिए पूरे देश में रोजगार सृजन की मिशाल बन गया है। घेस के ग्रामीणों की अभिनव पहल पहाड़ों से पलायन रोकने व रिवर्स माइग्रेशन के लिए मील का पत्थर साबित होगी। घेस के ग्रामीणों के भगीरथ प्रयासों नें उन लोगों के सामने एक उदाहरण पेश किया है जिन्हें पहाड़ आज भी पहाड़ लगता है। लेकिन पहाड़ के इन्हीं वाशिंदों के पहाड़ जैसे बुलंद होंसलों ने आज तरक्की की एक नई ईबादत लिखी है।

माटी की पीड़ा नें दिलाई कुछ करने की प्रेरणा!
बकौल अर्जुन बिष्ट गांव का पिछडापन हमेशा से उन्हें अंदर तक कचोटता था। 2012 से पहले गांव में सड़क नहीं थी। गांव वालों को देवाल से घेस 50 किमी की दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती थी। लोगों को अपनी रोजमर्रा की वस्तुओं को पीठ पर लादकर ले जाना पड़ता था। जबकि शिक्षा से लेकर, स्वास्थ्य सुविधाएं देवाल जाकर ही मिल पाती थी। गांव मे बिजली नहीं थी। लोगों को अंधेरे में ही जीवन यापन करना पड़ता था। स्थिति इतनी दुःखद थी की गांव का नाम बताने पर भी शर्म सी महसूस होती थी। इसलिए मन ही मन ठान लिया था कि एक दिन घेस की पहचान पूरे देश में करूंगा। जब भी अपने स्तर से कुछ करने का मौका मिला तो अनवरत रूप से अपनी माटी के लिए कुछ कर पाया। आज गांव सड़क से जुड गया है। गांव में बिजली आ चुकी है। गांव में इंटर काॅलेज खुल गया है। गांव डिजिटल ग्राम घोषित हो चुका है। ग्रामीणों की मेहनत से मुझे आज खुशी है घेस नें तरक्की की एक नई ईबादत लिखी है। घेस के ग्रामीणों, जनप्रतिनिधियों, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और विभागीय कर्मचारीयों के अथक प्रयासों और सहयोग से घेस का माॅडल विलेज का सपना साकार होने लगा है।

मटर के बाद अब सेब और गुलाब की खेती को दिया जा रहा है बढावा
अर्जून बिष्ट बताते है कि सरकार और पप्पू भाई के सहयोग से सर्वप्रथम घेस गांव में मटर उत्पादन की खेती को बढावा दिया गया। जिसके बाद सेब की बागवानी को भी प्रोत्साहन दिया गया। अब गुलाब की खेती और मौन पालन के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जिससे ग्रामीणों की आर्थिकी मजबूत हो और लोगो को रोजगार मिल सके। जड़ी बूटी का उत्पादन यहां लंबे समय से किया जा रहा था, लेकिन अब सरकार यहां जड़ी बूटी उत्पादन को अपने स्तर से बढावा दे रही है। अतीस, कुटकी, जटामासी सहित अन्य बहुमूल्य औषधि पादपों की खेती के लिए किसानों को जोडा जा रहा है। हम लोग “घेस क्षेत्र“ यानि प्रदेश के किसी सीमांत क्षेत्र को विकास का एक शानदार माडल बनाने की सोचते थे, ताकि हम अपने लोगों को यह समझा सकें कि हमारे पर्वतीय क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। आज हमारे सामूहिक प्रयास रंग लाने लगें है। अब कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि घेस से सीखेगा देश।