हरिद्वार, कावड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार के गंगा घाटों पर प्लास्टिक की कैन की खूब बिक्री हुई। प्रतिबंध के बावजूद नियम कानून को ताक पर रखकर करोड़ों की प्लास्टिक केन की बिक्री मेले के दौरान हुई। जबकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हरिद्वार से लेकर उत्तरकाशी तक गंगा के किनारे प्लास्टिक की बिक्री को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया हुआ है।
प्लास्टिक पाबंदी के आदेशों के बाद भी धर्मनगरी में हरकी पैड़ी सहित गंगा के प्रमुख घाटों को पहले की तरह प्लास्टिक की कैन की दुकानें सजी रही और प्लास्टि कैन की जमकर बिक्री हुई। पाबंदी के आदेशों को लेकर जिला प्रशासन और नगर निगम हरकत में कहीं नजर नहीं आया। जबकि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा है कि लोग प्लास्टिक की बोतलें लेकर आते हैं और इस्तेमाल के बाद घाटों पर ही छोड़ देते हैं। ऐसे में घाटों पर प्लास्टिक बोतलों की दुकानदारी भी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए।
उल्लेखनीय हैं कि एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने जुलाई व दिसंबर 2015 में गंगा के तटों की दयनीय हालत पर चिंता जताई थी और अधिकारियों को फटकार लगाई थी। एनजीटी के आदेशानुसार किसी भी सूरत में प्रदूषण नहीं होना चाहिए। एनजीटी ने इन नियमों की अनदेखी करने वालों पर 5,000 रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश दिया है।
कावड़ यात्रा में दुकानदारों द्वारा एनजीटी का आदेशों की जमकर धज्जियां उड़ाने के बावजूद प्रशासन आंखे मूंदे रहा। प्रशासन एनजीटी के आदेशों की किस प्रकार जमकर धज्जियां उड़ाई गई हैं, जिसके चलते जगह-जगह प्लास्टिक की कैन की बिक्री जमकर हुई। नगर निगम ने गंगा घाटों पर प्लास्टिक निर्मित गंगाजली की बिक्री न हो और गंगा घाटों पर प्लास्टिक की कैन बेचे जाने पर पांच हजार का जुर्माना वसूले जाने संबंधी चेतावनी घाटों के आस-पास दिवारों पर जरूर लिखवाई हुई हैं। परन्तु वास्तविकता इन दिवारों पर की गई लिखाई-पुताई की चेतावनी से इतर दिखाई दी।
स्थानीय लोगों का आरोप हैं कि गंगा घाटों पर प्लास्टिक कैन का बिकना बिना नगर निगम कर्मियों की मिलीभगत के संभव ही नहीं हैं। गंगा घाटों पर बिक रही प्रतिबंधित प्लास्टिक कैन दुकानदारों द्वारा खुलेआम बिकने पर नगर निगम व प्रशासनिक टीम की कार्यशैली सवालों से घिर गई हैं। इस संबंध में जब एसएसपी जन्मेजय खण्डूरी से मोबाइल पर सम्पर्क किया गया तो सम्पर्क नहीं हुआ।