उत्तराखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष, उत्तराखंड सरकार के पूर्व राज्य मंत्री और एक जमाने में गांधी परिवार के बहुत करीबी किशोर उपाध्याय की सियासी राह अब और मुश्किल हो चली है। पार्टी हाईकमान ने किशोर उपाध्याय से सारी सांगठनिक जिम्मेदारियों को वापस ले लिया है। ऐन चुनावी मौके पर किशोर उपाध्याय के लिए पार्टी की यह ताजी कार्रवाई बहुत बड़ा झटका है। वो भी तब, जब उन्हें दल विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहने के लिए आरोपित किया गया है। ऐसे में अब सभी की निगाहें किशोर उपाध्याय के अगले कदम पर है।
अभी बहुत पुराना वक्त नहीं हुआ है। 2016 की ही बात है, जबकि उत्तराखंड में छिडे़ सत्ता के महासंग्राम के दौरान किशोर उपाध्याय बहुत कुशलता से कांग्रेस पार्टी के लिए काम करते दिखे थे। हरीश रावत सरकार को अपदस्थ करने के बाद जब पार्टी की सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष चला, तो उस वक्त किशोर उपाध्याय ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। हालांकि इसके बाद, 2017 के विधानसभा चुनाव में जब पार्टी की बुरी गत हुई, तो ठीकरा उपाध्याय के सिर पर भी फूटा। सहसपुर विधानसभा सीट से शर्मनाक हार भी किशोर उपाध्याय के लिए कड़वा घूंट पीने जैसी रही। अध्यक्ष पद से किशोर उपाध्याय की विदाई हुई और प्रीतम सिंह के सिर पर ताज सज गया। इससे पहले, राज्यसभा पहुंचने की उनकी हसरत को हरीश रावत ने धूल धुसरित कर दिया था और मनोरमा शर्मा दिल्ली पहुंच गई थीं।
2017 के चुनाव में शर्मनाक हार के बाद हरीश रावत की स्थिति भी किशोर उपाध्याय की तरह ही खराब हो गई थी। उबरने के लिए संघर्ष हरीश रावत ने भी किया। उनका कद बड़ा और अनुभव ज्यादा था, इसलिए उन्हें मुख्य धारा में लौटने में कोई दिक्कत नहीं हुई। हाल ये है कि अघोषित तौर पर 2022 के चुनाव में वह ही कांग्रेस का चेहरा दिख रहे हैं। मगर किशोर उपाध्याय के साथ ऐसा नहीं रहा है। पिछले पांच सालों में किशोर उपाध्याय कांग्रेस में नजरअंदाज रहे हैं। उन्होंने पहाड़ के हक-हकूकों को लेकर वनाधिकार आंदोलन जरूर चलाया है। इस आंदोलन के तहत कांग्रेस संगठन के समानांतर कार्यक्रम किए गए हैं।
किशोर उपाध्याय के भाजपा में शामिल होने की अटकलों को हवा मिलने के भी खास कारण रहे हैं। दरअसल, भाजपा के कई बडे़ नेताओं से पिछले दिनों किशोर उपाध्याय की मुलाकात हुई है। किशोर उपाध्याय इन मुलाकातों को वनाधिकार आंदोलन के कार्यक्रमों से जोड़ कर सफाई देते रहे हैं। मगर कांग्रेस के हाईकमान को इस तरह की सफाई हजम नहीं हुई है। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव की ओर से किशोर उपाध्याय को भेजे पत्र में उनके भाजपा से रिश्तों का जिक्र करते हुए उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटाने की बात कही गई है।
किशोर उपाध्याय के कई समर्थक यह चाहते हैं कि इस अपमान के बाद वह एक भी पल के लिए पार्टी में न रहे, जबकि उनके तमाम समर्थक ऐसे भी हैं, जो कह रहे हैं कि किशोर उपाध्याय पार्टी का खोया विश्वास फिर से प्राप्त करने के लिए कोशिश करें। उपाध्याय विधानसभा का पिछला चुनाव सहसपुर सीट से लडे़ थे, लेकिन इस बार उनकी पूरी तैयारी टिहरी सीट से है, जहां से वह 2002 में जीत चुके हैं। तकनीकी रूप से किशोर उपाध्याय अब भी कांग्रेस में है, हालांकि उनके पास अब संगठनात्मक स्तर पर बनी किसी भी कमेटी की कोई जिम्मेदारी नहीं है। उन्हें विधानसभा चुनाव के अलावा अपनी पूरी राजनीति पर इस नाजुक मौके पर मंथन करना है। अभी तक उन्होंने पार्टी हाईकमान के फैसले पर अपनी कोई राय भी नहीं दी है। किशोर उपाध्याय अब आगे का क्या रास्ता चुनते हैं, इस पर सभी की निगाहें हैं।