लगता है कांग्रेस में ‘एकला-चलो’ का रिवाज बन गया है। पार्टी सिम्बॉल और संगठन को दरकिनार कर वरिष्ठ नेता अपने दम पर मैदान मारना चाहते हैं। इस प्रक्रिया की शुरूआत हरीश रावत से हुई थी, चाहे गैरसैंण के मुद्दे पर धरना प्रदर्शन हो या फिर मध्यप्रदेश में किसानों पर हुई गोलीबारी के खिलाफ हरिद्वार में अनशन, हरीश रावत अकेले नजर आये। अब यही काम किशोर उपाध्याय कर रहे हैं, पिथौरागढ़ में किसान की खुदकुशी के खिलाफ मुखर हुए पार्टी के पूर्व अध्यक्ष इस लड़ाई को अकेले लड़ना चाहते हैं। संगठन और पार्टी नेतृत्व को दरकिनार कर वह चाहते हैं कि अपने बलबूते इस लड़ाई को लड़ा जाए और पीड़ित परिवार को इंसाफ दिलाया जाए। पूर्व अध्यक्ष को यह पता नहीं कि उनके इस प्रयास से संगठन को कितना नुकसान होगा।
कांग्रेस में एक बार फिर अंदरूनी कलह सामने आई है। वैसे तो कांग्रेस के पास अभी खोने को कुछ नहीं है और ऐसे समय में दल में बिखराव कांग्रेस को सफाए की तरफ ले जा सकता है। प्रदेश कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन के बाद पार्टी में बिखराव की स्थिति नजर आने लगी है। अभी हाल ही में प्रदेश उपाध्यक्ष जोत सिंह बिष्ट के नेम प्लेट हटाने के मुददे को भी हवा देने की कोशिश की गई थी और अब किशोर उपाध्याय के बयान ने पार्टी को असहज कर दिया है।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने किसान आंदोलन के संबंध में पत्रकारों से बातचीत करने के लिए कांग्रेस भवन की जगह सुभाष रोड़ स्थित एक रेस्टोरेंट को चुना। उनसे जब इसकी वजह पूछी गई तो उन्होंने साफ़ कहा कि किसानों का मुद्दा किसी एक दल या वर्ग का नहीं है, इसलिए किसानों के आंदोलन पर मैं कांग्रेस का बिल्ला नहीं लगाना चाहता। जब मैं कांग्रेस के बारे में बात करूंगा तो निश्चित रूप से कांग्रेस भवन में बात करूंगा । उनके इस बयान से साफ़ है की उपाध्याय अपना आंदोलन कांग्रेस के साथ नहीं लड़ना चाहते। सवाल यह है कि जिस किसान को लेकर कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व इतना मुखर है और संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मध्यप्रदेश में धरना प्रदर्शन पर बैठ रहे हैं उसी संगठन का प्रदेश अध्यक्ष रहा एक शख्स यह कहता है कि किसानों की लड़ाई वह पार्टी के सिम्बॉल पर नहीं लड़ना चाहता है। किशोर उपाध्याय के इस विचार को क्या कहेंगे आप? इसका मतलब तो यही हुआ कि किशोर सिर्फ और सिर्फ अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं, उनके लिए संगठन के मायने कुछ नही है।