बैकुंठ चतुर्दशी पर मंगलवार को लाखों की संख्या में त्रिवेणी घाट पर पहुंचे श्रद्धालुओं ने 365 ज्योत जलाकर विश्व शांति और परिवार में सुख समृद्धि की कामना कामना की। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन पूजा निशित काल मध्य रात्रि में की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा का विधान है।
पंडित वेद प्रकाश शास्त्री ने बताया कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने कहा कि इस दिन पूरे विधि विधान से पूजा करने पर बैकुंठधाम यानी स्वर्ग की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत में मारे गए लोगों का भगवान श्रीकृष्ण द्वारा श्राद्ध भी करवाया था । इसलिए इस दिन दान कार्य करने का भी विशेष महत्व है। शास्त्री के अनुसार पौराणिक कथा है कि एक बार भगवान विष्णु देव तथा महादेव ने एक साथ पूजन कर्णिका घाट पर 1000 स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन करने का संकल्प लिया ।