दून घाटी 15-17 नवंबर के बीच ‘वैली ऑफ वर्डस‘ के तीसरे संस्करण की मेजबानी के लिये तैयार है। ये अंतर्ररष्ट्रीय साहित्य और कला के इस फेस्टिवल का इस साल तीसरा साल है। इस साल हर उम्र के लोगों को आकर्षित करने के मकसद से इस फेस्टिवल का लाइनअप तैयार किया गया है।
वॉओ (VoW) के नाम से मशहूर इस फ़ेस्टिवल में हर साल समाज के हर वर्ग और हर उम्र के लोगों के रच्नात्मक पहलू का जश्न मनाया जाता है। फ़ेस्टिवल के रचनाकारों में से एक हैं आईएएस अधिकारी संजीव चोपड़ा। वो बताते हैं कि, “ये फ़ेस्टिवल किसी शहर में होने वाले आयोजन जैसा नहीं है बल्कि इसके ज़रिये हम जीवन को, साहित्य और कला के अलग-अलग लोगों से साझा करते हैं। इस फ़ेस्टिवल में साहित्य के साथ-साथ रंग मंच, फ़िल्म, पप्टेरी आदि की गहरी छाप देखने को मिलेगी।”
तीन दिन के इस फ़ेस्टिवल में कई तरह विषयों पर चर्चा होंगी।
- आर एस टोलियाँ फ़ोरम में पलायन, रोज़गार, पर्यावरण और पहाड़ी कला संस्कृति
- सैन्य विरासत और तैयारियों
- हिंदी फ़िक्शन और नमन फ़िक्शन और आख़िर में
- अंग्रेज़ी फ़िक्शन और नमन फ़िक्शन पर चर्चाएँ होंगी।
इन सबके अलावा इस साल पहली बार इस फ़ेस्टिवल में क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद की गई किताबों को भी जगह दी जायेगी।
वैली ऑफ वर्डस, 2019 के ज़रिये 100 से ज़्यादा लेखकों, कवियों, कलाकारों, साहित्यकारों, नीति विषेज्ञों आदि को एक साझे मंच पर लाने की कोशिश की जा रही है। इस कोशिश का मूल मक़सद है इन सभी लोगों के ज्ञान को देहरादून के स्कूलों कॉलेजों के अध्यापकों और छात्रों के साथ साझा करना।
संजीव चोपड़ा आख़िर में कहते हैं कि, “देहरादून दशकों से सांस्कृतिक तौर पर काफ़ी आगे रहा है। इसलिये इस तरह का आयोजन करने के लिये ये एक बेहतरीन जगह है। समाज के विभिन्न वर्गों और कार्य क्षेत्रों लोगों को एक साथ लाने के लिये इससे बेहतरीन जगह शायद ही हो।”