(देहरादून) चीड़ के पत्ते (पिरूल) जंगलों की आग का प्रमुख कारण होते हैं। इसकी बड़ी वजह यह कि पिरुल में वैक्स होता है, जिसके चलते ये बेहद लंबे समय तक वनों में एक सूखी परत की तरह फैले रहते हैं। यह भी एक बड़ा कारण है कि वनों में आग लगने पर पिरूल उसे और भड़का देते हैं। हालांकि यही वैक्स अब जंगलों की आग भड़काने की जगह फरफ्यूम बनकर कस्तूरी की खुशबू देगा। वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) ने पिरूल के वैक्स से परफ्यूम बनाने की तकनीक ईजाद कर ली है। गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय जैवविविधता कांग्रेस के कार्यक्रम में रिसर्च फेलो पल्लवी दुबे ने तकनीक पर प्रस्तुतीकरण दिया गया।
इस शोध के गाइड व एफआरआइ की केमेस्ट्री डिविजन के प्रमुख डॉ. विनीत कुमार ने बताया कि, “पिरुल में वैक्स की मात्रा 1.62 फीसद पाई गई। हालांकि जब परफ्यूम बनाने के लिए इसे विभिन्न रासायनिक प्रक्रिया से गुजारा जाता है तो यह दर 80 फीसद हो जाती है। इससे प्राप्त होने वाले परफ्यूम में कस्तूरी जैसी खुशबू आती है।” खास बात यह भी कि अन्य कई परफ्यूम सिंथेटिक होते हैं, जबकि पिरूल के वैक्स से बना परफ्यूम पूरी तरह से प्राकृतिक होगा। इसके अलावा इस वैक्स का प्रयोग विभिन्न कॉस्मेटिक्स उत्पादों व जूतों की पॉलिस में भी किया जा सकता है। जल्द ही तकनीक का पेटेंट कराकर इसे कमर्शियल स्तर पर प्रयोग में लाने की तैयारी शुरू कर दी जाएगी।
रेशा बनाने में भी सफलता हासिल
एफआरआइ की केमेस्ट्री डिविजन के प्रमुख डॉ. विनीत कुमार ने बताया कि, “पिरूल से रेशे बनाने की तकनीक भी ईजाद कर ली गई है। इसके रेशों से एक रस्सी भी तैयार की गई है। हालांकि इसे बेहतर बनाने के लिए कुछ और प्रयोग किए जा रहे हैं।”
एक मिलियन टन पिरूल निकलता है
अकेले उत्तराखंड के वनों से हर साल एक मिलियन टन पिरूल निकलता है। इससे समझा जा सकता है कि यदि पिरूल के निस्तारण के लिए ठोस उपाय नहीं किए गए तो यह कितना घातक हो सकता है। आग की घटनाओं के बढ़ाने के साथ ही इसकी परत के नीचे अन्य वनस्पतियां भी नहीं उग पाती हैं। हालांकि यदि आग की ही घटनाओं की बात करें तो इस साल आग की 2151 घटनाएं प्रकाश में आई, जिसने वनों के करीब 4500 हेक्टेयर क्षेत्रफल में भारी नुकसान किया। यदि पिरूल से परफ्यूम और अन्य उत्पाद बनाने की दिशा में काम किया गया तो इसका निस्तारण आसान हो जाएगा।