”माटी-मैन” जो मिट्टी से भरते हैं तस्वीरों में जान

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रुद्रप्रयाग के सरकारी स्कूल में 49 वर्षीय केमिस्ट्री शिक्षक जय कृष्ण पैन्यूली एक आदर्श उदाहरण है कि किस तरह सीमित संसाधनों के साथ अपने जूनुन को कैसे पूरा किया जा सकता है। हालांकि कैमिस्ट्री के शिक्षक होने के साथ-साथ, पैन्यूली को हमेशा से चित्रकला अपनी ओर आकर्षित करती थी और अपने सपनों का पूरा करने के लिए उन्होंने उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों की मिट्टी से कैनवास चित्रकारी शुरू की।अपनी पेटिंग को बनाने के लिए वह अलग-अलग क्षेत्र जैसे कि केदारनाथ, गैंरसैंण, नीती घाटी, बद्रीनाथ, जोशीमठ, श्रीनगर और टिहरी आदि की मिट्टी का प्रयोग मे लाते है।

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ना केवल देश के बल्कि उन्होंने दुबई, थाईलैंड, सिंगापुर और मलयेशिया जैसे कुछ विदेशी देशों का दौरा किया और इन देशों से मिट्टी लेकर आए। कैमिस्ट्री के इस शिक्षक की मिट्टी का उपयोग करके चित्रों को बनाने की कला यूं तो देखने में सरल लगती है लेकिन इसके लिए परफेक्शन की जरुरत होती है। दरअसल इस पेंटिंग को बनाने के लिए मिट्टी को पानी के साथ मिलाकर कैनवास पर तीन से चार कोट लगया जाता है जब तक कि वह सही रंग नहीं देता। पेड़ो से निकलने वाले रस को भी मिट्टी और पानी के साथ मिलाया जाता है। यह मिट्टी के प्रति उनका प्यार ही था कि उन्होंने खुद को “माटी” का उपनाम दिया और उन्हें यह पसंद है कि लोग उन्हें ”माटी” नाम से पुकारे।

टीम न्यूज़पोस्ट से हुई जय कृष्ण पैन्यूली की बातचीत में उन्होंने बताया कि, ”वह साल 2009 से पेटिंग कर रहे हैं।हमेशा से कला में रुचि रखते थे लेकिन जीवन की भागदौड़ और संसाधनों की कमी से उन्हें अपने जूनुन को पाने में थोड़ वक्त लग गया। साल 2009 से पेटिंग शुरु करने के बाद वह अब पेंटिंग को हर रोज लगभग दो घंटे का समय देते हैं। पैन्यूली ने बताया कि वह पेटिंग को बनाने के लिए मिट्टी के साथ-साथ पत्तों का रस,राख,कोयला,गौमूत्र और गोबर का इस्तेमाल करते हैं।इनकी पेटिंग की सबसे खास बात है इसमें इस्तेमाल होने वाला सब कुछ प्राकृतिक है और जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता उससे इनकी पेटिंग तैयार होती है। जय कृष्ण ने बताया कि ”शुरुआत में वह पोर्ट्रेट बनाते थे लेकिन अब उनका ज्यादा फोकस पर्यावरण और पहाड़ी क्षेत्र की जीवन शैली को बनाने में रहता है। पैन्यूली कहते हैं कि यू तो चित्रकारी बहुत ही महंगा काम है लेकिन जब आप मिट्टी से चित्रकारी करते हैं तो यह उतनी महंगी नहीं रह जाती।”

पैन्यूली ने बताया कि ”देश और विदेश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शनियों के आयोजन और उपस्थित होने के बाद,अब वह गाय-गोबर और गाय-मूत्र के साथ पेंट कर रहे हैं। कलाकार ने कहा, “मैंने सफलतापूर्वक मटर के छिलकों के साथ प्रयोग किया है और अब मैं गाय के गोबर से बनाई गई पेंटिंग पर काम कर रहा हूं।”

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खर्गेड में सरकारी इंटर कॉलेज में एक शिक्षक की तरह रहने वाले पैन्यूली, र्कीतिनगर क्षेत्र में रहते है और अपना पूरा जीवन पहाड़ को समर्पित करना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “इन पहाड़ियों ने मुझे पहचान और प्रसिद्धि दी है, मैं कभी भी मैदानी इलाकों में नहीं जाना चाहता और जब तक मैं जीवित हूं तब तक छात्रों को अपनी यह कला पढ़ाना जारी रखूंगा।” उन्होंने कहा कि ”अपने छात्रों को इस कला को पढ़ाने के लिए वह हर रोज थोड़ा समय निकालते हैं।”

पैन्यूली से पूछने पर कि वह अपनी बनाई हुई पेंटिंग का क्या करते हैं इसपर उन्होंने कहा कि ”कुछ पेटिंग तो वह प्रदर्शनी के लिए संभाल देते हैं जबकि कुछ वह अपने छात्रों को उपहार के रुप में दे देते हैं।”