पहाड़ का पर्यावरण संवारने का बीड़ा पंजाब की बेटी व केरल की बहू मल्लिका विर्दी ने उठा रखा है। मनोरंजन के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने का उनका अनूठा प्रयास रंग ला रहा है। उनकी मुहिम से ग्रामीणों का लगाव जंगल के प्रति बढ़ने लगा है। नतीजा, क्षेत्र में वृक्षविहीन हो चुके कुछ स्थल अब घने जंगल में तब्दील हो गए हैं। मुनस्यारी में पिछले एक दशक में पर्यटकों की आवाजाही खासी बढ़ी है। इसी के साथ बढ़ता चला गया कंक्रीट का जंगल और घटती चली गई हरियाली। इसी दौर में पंजाब की बेटी मल्लिका विर्दी यहां पर्यटक के रूप में पहुंची। यहां की स्थिति देख उन्होंने मुनस्यारी से सटे सरमोली गांव को संवारने की जिम्मेदारी उठाई।
इसी दौरान उनकी मुलाकात केरल निवासी पर्यावरण प्रेमी थियो से हुई। थियो के साथ शादी के बाद मल्लिका ने मुनस्यारी में ही घर बसा लिया। तब से वह लोगों को जल-जंगल के प्रति जागरूक कर रही हैं। उन्होंने यहां के लोगों को होम स्टे के प्रति भी प्रेरित किया। आज मुनस्यारी में सौ से अधिक लोग होम स्टे के माध्यम से आत्मनिर्भर बन चुके हैं। होम स्टे पर्यटकों से गुलजार रहते हैं। इसकी परिणति यह हुई कि सरमोली के ग्रामीणों ने अपनी बेटी की तरह मल्लिका को सिर-आंखों पर बैठा लिया।
यही नहीं, उन्होंने मल्लिका को 2007 में गांव का सरपंच भी चुना। यहीं से शुरू हुई मल्लिका विर्दी की दूसरी पारी। उन्होंने जंगल, वन्य जीव व पक्षियों के संरक्षण के लिए वन कौथिग (जंगल मेला ) शुरू किया, जिसका पिछले 11 साल से मई में नियमित रूप से आयोजन हो रहा है। हर वर्ष कौथिग में विषय भी बदल जाते हैं और त्यौहार भी। कभी पक्षी त्यौहार तो कभी स्थानीय खानपान विषय होते हैं। पर्यावरण को लोक प्रदर्शन के साथ जोड़कर उसे आकर्षक बनाया जाता है। गुजरे वर्ष तितलियों के संरक्षण के लिए तितली त्यौहार मनाया गया।
तीन ग्राम पंचायतों के लगभग दस गांवों के लोग वन कौथिग मनाते हैं। इस दौरान वह ग्राम पंचायत व वन विभाग की भूमि पर पौधे भी रोपते हैं।वसरपंच रहने के दौरान जब जंगल में श्रमदान से चल रहा कार्य संपन्न हुआ तो मल्लिका को मन में वन कौथिग के विचार ने जन्म लिया। इसके तहत ग्रामीणों से वार्ता कर प्रतिवर्ष वन कौथिग मनाने का निर्णय लिया गया। एक दशक के मध्य वन कौथिग की ऐसी धूम रही कि अब लोग एक माह पूर्व से ही इस मेले की तैयारियों में जुट जाते हैं।