बर्फ पड़ने के साथ ही हिमालय से शहरों में पहुंचे खंजन पक्षी

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Pic Courtesy: Tulika Singhroy

हरिद्वार, हिमालय की उतंग शिखरों पर बर्फ पड़ने के साथ ही हिमालय के सैकड़ों प्रजाति के पक्षी उत्तर व दक्षिण भारत के मैदानी क्षेत्रों, ताल-तलैयों में प्रवास पर प्रतिवर्ष आते हैं।

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के पक्षी वैज्ञानिक प्रो. दिनेश भट्ट ने बताया कि, “हिमालय का सुन्दर नेत्रों वाले खंजन पक्षी हरिद्वार व भारत के अन्य मैदानी क्षेत्रों में पहुंच चुके हैं। कजरारी आंखों वाले खंजन की पांच-छह प्रजातियों में से तीन प्रजातियां माइग्रेटरी हैं, जो प्रतिवर्ष लेह-लद्दाख, कश्मीर, कुल्लू-मनाली, नीति-माणा जैसे दुर्गम पर्वतीय स्थलों से निकलकर शीत कालीन प्रवास पर मैदानी क्षेत्रों में आती हैं और वसंत ऋतु में पुनः ‘प्रणय-लीला’ करने वापस अपने धाम पहुंच जाती है।”

प्रो. भट्ट ने बताया कि, “खंजन पक्षी को ग्रे-वैगटेल या ग्रे-खंजन के नाम से भी जाना जाता है, जो अपनी लम्बी दुम, सलेटी-पीठ तथा पीले पेट और बार-बार दुम ऊपर-नीचे गिराने व उठाने के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। दुम को बार-बार ऊपर-नीचे करना सभी खंजनों की विशेषता है।” उन्होंने कहा कि, “हिमालयी खंजन व केवल उत्तर भारत के क्षेत्रों में अपितु मुम्बई व दक्षिणी पठार के अनेक क्षेत्रों तक पहुंच जाता है। बताया कि इनकी याद्दाश्त इतनी तेज होती है कि जिस क्षेत्र व बगीचों में पिछले वर्षों में आती है उसी क्षेत्र को ये प्रतिवर्ष शीत प्रवास के लिए चुनती हैं।”

बायोअकाउस्टिक लैबोरेट्री के शोध छात्र रोबिन राठी, आशीष आर्य व पारूल ने बताया कि, “इन दिनों उन्होंने ग्रे-वैगटेल (खंजन की एक प्रजाति) को यदाकदा गाते हुये सुना है। पक्षी-वैज्ञानिकों के लिये यह कौतुहल का विषय है कि जब बसंत और ग्रीष्म में पक्षियों में गीत-संगीत व प्रजनन का समय समाप्त हो गया है, तो शरद में गीत गाकर यह पक्षी क्या कहना चाहता है?  पक्षी-वैज्ञानिक कुछ वर्ष पूर्व तक यही मानते रहे कि साइबेरिया, रूस आदि से भारत आनेवाले प्रवासी पक्षी हिमालय की उंचाइयों को पार कर नहीं आ पाते होंगे, अतः वे हिमालय के दर्रों से ही आते होंगे। किंतु हमारे ऋषि हिमालय की उंचाइयों बद्रीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ आदि में रहने वाले थे, दर्रों में रहने वाले नहीं। किंतु जब एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पर्वतारोहियों ने भी यह बतलाया तब पक्षी वैज्ञानिकों ने भी मान लिया कि ये प्रवासी पक्षी हिमालय के पार उड़कर आते हैं, मात्र दर्रों से नहीं।

बताया कि पक्षियों की सुरक्षा, वनों का जीवंत होना तथा जलाशयों का प्रदूषण रहित होना। उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रो. विनय सेठी के अनुसार अन्य सुन्दर पक्षियों का चित्रण भी हमारे संस्कृत साहित्यकारों ने खूब किया है। सूरदास ने भ्रमरगीत द्वारा, जायसी ने पद्मावत द्वारा वर्णन किया है।