योग दिवस पर कुछ कांग्रेसी मित्रों ने योग और मोदी का मजाक बनाया है। मोदी की जो भी आलोचना उन्हें करना है, वह जरुर करें। वरना वे विपक्षी कैसे कहलाएंगे ? लेकिन योग और योग-दिवस के बारे में तो मैं उनसे उत्तम प्रतिक्रिया की उम्मीद करता था। मैं तो सोचता था कि कांग्रेसी मित्र लोग भी बढ़-चढ़कर योग-दिवस मनाएंगे और इस विश्वव्यापी कल्याण-कार्य पर अकेले मोदी की छाप नहीं लगने देंगे लेकिन राजनीति तो ऐसी ईर्ष्यालु प्रेमिका है कि वह विश्व-कल्याण को भी बर्दाश्त नहीं कर सकती। इस समय योग की सबसे ज्यादा जरुरत किसी को है तो वह कांग्रेसी नेताओं को है। राहुल को है, हमारे मित्र दिग्गी राजा को है, शशि थरूर को है, गुलाम नबी को है। किसको नहीं है ? ये लोग योग को क्या समझे बैठे हैं ? ये लोग उठक-बैठक, अनुलोम-विलोम, शीर्षासन-पद्मासन को ही योग समझे बैठे हैं। ये योग जरूर है लेकिन यह योग का सिर्फ एक-चौथाई हिस्सा है। अष्टांग योग के आठ चरणों में से ये सिर्फ दो चरण हैं। शेष छह चरण इनसे भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। योग का मर्म योग-दर्शन के इस सूत्र में है। योगश्चचित्तवृत्तिनिरोधः ! चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है। कांग्रेसी भाई खुद समझ लें कि इस समय उन्हें इस मंत्र की कितनी जरूरत है। पिछले 70 साल भोग में बीत गए। अब तो वे योग कर लें।
मैं सोचता हूं कि योग के असली अर्थ को उन लोगों को भी समझना होगा, जो सारी दुनिया में योग का प्रचार करने का बीड़ा उठाए हैं। योग विश्व को भारत की अदभुत देन है। बाबा रामदेव ने इसे लोकप्रिय बनाया और नरेंद्र मोदी ने इसे संयुक्तराष्ट्र संघ से मनवाया। 21 जून को दुनिया के लगभग 200 देशों के लाखों नागरिकों ने योगाभ्यास किया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विदेशी राजदूतों को योग करवाया। यदि दुनिया के दो-तीन अरब लोग भी नियमित योगाभ्यास करने लगें तो अस्पतालों और दवाइयों का खर्च एक-चौथाई भी नहीं रह जाएगा। अपराध, व्यभिचार, बलात्कार, मांसाहार तथा अपराध भी काफी घट जाएंगे। हिंसा और आतंकवाद भी घटेंगे। भोगवाद घटेगा और योगवाद फैलेगा तो सारा मानव समाज अहिंसात्मक और समतामूलक बनता चला जाएगा। हमारे ‘चतुर बनिया’ नरेंद्र मोदी ने तो योग में रोजगार के अपूर्व अवसर भी ढूंढ निकाले।