9-5 जाॅब छोड़ माउंटेन हाई हुई माधवी शर्मा

पहाड़ की बेटियां

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पर्वता रोहण में राज्य का नाम ऊंचा करने वाली माधवी शर्मा के लिये ये सफर बहुत आसान नही रहा। सेट ज़िंदगी और नौकरी को छोड़ पर्वतारोहण को अपना जुनून और पेशा दोनों बनाने के सफर का यादें माधवी ने हमसे साझा की।

माधवी कहती हैं कि “आॅफिस के कम्प्यूटर के सामने सुबह से शाम तक काम की वो नौकरी करते-करते मैं लगभग ऊब सी गयी थी। मेरे मन में द्वन्द सा चलता रहता था कि क्या मेरा जीवन यूं ही कट जाएगा? फिर एक दिन निर्णय लिया कि जीवन में कुछ करना है, कुछ ऐसा काम कि लोगों के लिए एक उद्धारण बन सके।” माधवी कहती है कि “आजकल के समय में अक्सर बच्चों को क्या करना है, पहले से ही पता होता हैं लेकिन मैं उन लोगों में से थी जो 27 साल की उम्र में भी अपने जीवन का लक्ष्य नहीं जान पायी थी। बचपन से प्रकृति से जुड़ाव और खेल में सक्रिय होने की प्रवृत्ति ने मुझे माउन्टेन्रिंग कोर्स की ओर आर्कषित किया और 2014 के जून महीने में मैने नेहरू इंस्टीट्यूट आफ माउन्टेनंनियरिंग से बेसिक कोर्स पुरा किया।”

माधवी को सन् 2014 के सितम्बर महीने में ही भारत की पहली महिला एवरेस्टर सुश्री बछेन्द्री पाल के तत्वाधान में टाटा स्टील एंडेवन्चर फाउन्डेशन के सौजन्य से आल इंन्डिया वुमेन एक्सपीडिशन टू खार्ता वैली तिब्बत के सबसे ऊंचे पास (लांग-मा-ला) (5200 मीटर) (17,160) को पार करने का मौका मिला। इसके बाद की राह थोड़ी आसान हो गई और 2015 में लगन व जज्बे व माउन्टेरिंग के प्रति रूझान को देखकर टाटा स्टील फाउन्डेशन की ओर से बछेन्द्री पाल ने नेहरू पर्वतोराहण संस्थान उत्तरकाशी से ही एडंवास कोर्स के लिए स्पोन्सरशिप प्रदान कर दी गयी। जिसमें उन्होनें उत्तरकाशी जिले में ही स्थित दौपदी का डांडा पीक (5670 मीटर) 18,749 फीट को, फतह किया।
इसके अलावा जून 2016 में उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत जी ने माधवी को पर्वतारोहण के क्षेत्र में बेहतर प्रयास करने के लिए सम्मानित किया।

unnamed (13)सितम्बर 2016 में ही इंडियन माउन्टेनरिंग फाउन्डेशन, दिल्ली में माधवी का चयन अरूणाचंल प्रदेश की ऊंची चोटी ‘‘गोरीचिन‘‘ जिसकी ऊंचाई लगभग 22500 फीट है,और एक अनाम चोटी जो लगभग 23,500 फीट थी, को स्केल करने के लिये किया गया।गोरीचिन पीक व अनाम पीक के दोनों टेक्निकल पीक थी और अभी तक यह पहला महिला दल था जिन्होंने इन चोटियों को फतह किया था। इस अभियान दल के सदस्यों में कुल 10 महिला सदस्य सम्मिलित थे। जिसमें 5 लड़कियां अरूणाचंल प्रदेश, 2 पश्चिम बंगाल, 1 महराष्ट्र, 1 सिक्किम और 1 (माधवी शर्मा) उत्तराखण्ड से प्रतिभाग कर रही थीं।

माधवी कहती हैं कि “एक किस्सा है जो मेरे उत्तराखण्डी होने पर मुझे गर्व महसूस करवाता है। माउन्ट गोरीचिन पीक अभियान के दौरान हमें सेना की कई छावनियां में सेना के जवानों से मिलने का मौका मिला। इतने सूदूर इलाकों में कठिन जीवन यापन में भी अपने कार्य के प्रति जो कर्मठता सेना के जवानों में दिखायी देती थी इन सब के कारण उनके प्रति आदर व सम्मान और बढ़ जाता है। अक्सर सेना के जवान हमारे कैम्प में आकर हमारी लीडर व सदस्यों से एक सवाल करते थे कि आपके इस अभियान दल में कोई उत्तराखण्ड़ से भी है? उत्तराखण्ड से किसी सदस्य की उपस्थिति उनके चेहरे पर गौरान्वित मुस्कान लाती थी जिसे मैनें बहुत करीब से महसूस किया था। वह क्षण मेरे लिए किसी अवार्ड से कम नहीं होता था। जब अभियान का शुभांरभ हुआ था, तो अरूणांचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री पेमा खांडू के साथ बातचीत के दौरान भी उत्तराखण्ड़ राज्य की प्रशंसा सुन कर स्वंय को गौरान्वित महसूस कर रही थी।”

माधवी कहती हैं कि “हर पर्वतारोही की तरह मेरा सपना भी माउन्ट एवरेस्ट पर भारत का तिरंगा फतह करने का है। साथ ही भारत व अन्र्तराष्ट्रीय देशों की चोटियों को फतह कर जीत हासिल करना भी है। जिसके लिए मैं निरन्तर प्रयास कर रही हूं।”