यूं तो जीना और मरना ज़िदगी के ही दो पहलू हैं पर कभी कभी कुछ इंसान अपनी शख्सियतों से हमारे जीवन में ऐसे मकाम बना लेते हैं कि उनके जाने पर एक अजीब सा खालीपन महसूस होता है। कुछ ऐसे ही व्यक्तित्व के मालिक थे सदाबहार अदाकार टॉम ऑलटर, जिन्होंने मुंबई के एक अस्पताल में कैंसर से लड़ते हुए अाज सुबह अपनी आख़री सांस ली। टॉम के जाने से देश दुनिया में तो शोक की लहर है ही मगर पहाड़ों की रानी मसूरी में भी खासा मातम पसरा हुआ है। शायद कम ही लोग जानतें हैं कि टॉम का मसूरी से गहरा नाता रहा है।
दुनियाभर में अपनी अदाकारी का लोहा मनवा चुके टॉम का जन्म पहाड़ों की रानी मसूरी में ही हुआ था।यही नहीं टॉम की परवरिश भी इसी शहर की गलियों में हुई। मसूरी के मशहूर वुडस्टॉक स्कूल से टॉम ने अपनी पढ़ाई पूरी की। मसूरी शहर मे टॉम खेलते-खेलते थियेटर जगत में चले गये। 1976 में फिल्म ‘चरस’ के साथ टॉम ने थियेटर से फिल्म जगत में कदम रखा । इसके बाद टॉम का जीवन किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा। टॉम ने आजतक करीब 200 फिल्मों और सैंकड़ों नाटकों में अभिनय करने के साथ साथ अपने आप को एक सफल एंकर और कमंट्रेटर के तौर पर भी स्थापित किया था।
टॉम के निधन की खबर मसूरी पहुंचते ही शहर में सन्नाटा सा फैल गया। लोगों को यकीन नहीं हो रहा कि मसूरी की पहचान कहे जाने वाले टॉम ऑलटर अब उनके बीच नहीं रहे।
निर्देशक भार्गव सिक्का जिन्होने पिछले साल टॉम के साथ “दी ब्लैक कैट” में काम किया, जोकि मसूरी के ही विश्वप्रसिद्ध लेखक रस्किन बाँड की कहानियों पर आधारित है का कहना है, “टॉम एक नैचुरल अभिनेता थे और फिल्म में रस्किन के किरदार के लिये वो एक स्वाभाविक पसंद थे। उनके साथ काम करने का अनुभव सच में यादगार रहा।”
टॉम के बचपन के दोस्त अजय मार्क कहते हैं कि टॉम इतने खुशमिजाज और ज़िंदादिल इंसान थे कि उनके दुनिया से चले जाने पर यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा है।
साल 2008 में टॉम को उनके काम के लिये पद्मश्री पुरस्कार मिलने से मसूरी को जश्न मनाने का मौका मिला। इसके अलावा टॉम को अपने करियर के दौरान सैंकड़े पुरस्कार मिलते रहे। टॉम ऑलटर एक ऐसी शख्सियत थी जिनके जीवन को एक जश्न की तरह मसूरी और उसके हर बाशिंदे ने मनाया है, टॉम के जाने से जो खालीपन शहर में आया है वो जल्दी नहीं बर सकेगा।