प्रशासनिक नक्शों में उत्तराखंड के नैनीताल जिले के लालकुआं-बिंदुखट्टा इलाके में स्थित एक छोटा सा गांव है, रावत नगर खुरीयाखट्टा जो केवल एक निशान के रूप में पंजीकृत है। कुछ पत्रकारों ने 1984 में बाढ़ के दौरान हेलीकाप्टर से गांव को देखा था और इसे ‘श्रीलंका’ कहा था। उन्होंने करीब 45 हेक्टेयर में फैले एक गांव को देखा जो तीन तरफ से पानी और एक तरफ से जंगल से घिरा हुआ था, ठीक वैसे ही जैसे हिंद महासागर में स्थित द्वीप राष्ट्र है।
इस गांव के निवासी अपने छोटे से गांव को ‘कालापानी’ के नाम से बुलाते हैं जहां ब्रिटिश अपने राजनीतिक कैदियों को बंदी बना कर रखते थे। मॉनसून के करीब तीन महीनों के लिए, यह गांव शेष सभ्यता से कट जाता है। नदी गुवालय के पानी का स्तर बढ़ने से यह एक द्वीप में बदल जाता है। गांव को बाहर की दुनिया में जोड़ने के लिए कोई पुल नहीं है। लालबुओं नगर पंचायत के अध्यक्ष, राम बाबू मिश्रा कहते हैं कि पुल का निर्माण करने का भी कोई प्रस्ताव नहीं है। पहाड़ी राज्य के सबसे लोकप्रिय पर्यटन शहर की परिधि में स्थित इस गांव में बिजली की आपूर्ति भी नहीं है। मिश्रा कहते है कि स्थानीय भाजपा विधायक नवीन दुमका गांव में सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के मुद्दे पर विचार कर रहे है।
गांव के 120 मतों को शायद राजनीतिक दलों के लिए बहुत ज्यादा मायने नहीं हैं। इस बात क पता इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछले चार दशकों में पुरानी सरकारें मुख्य भूमि के साथ समझौता करने में विफल रही हैं।
1979 में जंगल भूमि का एक हिस्सा काटने के बाद लोग यहां बसने लगे थे। अब निपटाने के बाद कुल 42 परिवारों की कुल जनसंख्या 175 सदस्य है। यहां के निवासी कृषि और पशुपालन पर निर्भर हैं। उन्होंने एक कोआपरेटिव का भी गठन किया है जो गांव में उत्पादित दूध को एकत्र करता है और उसे लालकुआ में सप्लाई करता है। लेकिन यह केवल नौ महीने के दौरान ही है, मानसून के दौरान, स्थानीय लोगों द्वारा खपत के बाद भी अधिकांश दूध बेकार हो जाता है।
इस मौसम में पहली बार बारिश के साथ, ग्रामीणों ने अगले तीन महीनों के लिए तैयारी शुरू कर दी है। केदार सिंह दासौनी जो इस “द्वीप” पर एक एकड़ जमीन की देखभाल करते हैं कहते हैं कि, ‘रूद्रपुर और पंतनगर स्थित कारखानों में गांव के दो या तीन लोग काम करते हैं।हालांकि, वे भी मानसून के महीनों में काम छोड़ देते हैं और गांव में आकर रहने लगते हैं।’ दासूनी कहते हैं कि, ‘एक बार मानसून खत्म होने पर, वे फिर से रोजगार की तलाश में निकल जाते हैं।’
किसान कहते हैं कि मानसून के दौरान यह गांव उनके लिए ‘कालापनी’ में बदल जाता हैं। “हम बाहर नहीं जा सकते हैं और हमारे जीवन में केवल खाना पकाने और इसे हमारे घरों में इत्मीनान से खाने के लिए मजबूर हो जाते है। हम रोशनी के लिए केरोसीन लैंपों पर निर्भर रहना पड़ता हैं।
गांव के दूग्ध सहकारी समिति के प्रमुख रमेश सिंह राणा याद करते हुए कहते हैं कि 12 साल पहले उनके बेटे के साथ एक खतरनाक घटना हुई थी। वह बताते हैं कि, ‘मानसून के दौरान मैं बीमार हो गया था और मेरा बेटा मेरे लिए दवाएं लाना चाहता था इसलिए उसने नदी पार करने की कोशिश की थी। पानी के तेज बहाव से उसे डूबते देख लोगों ने पानी से बचाया।’ तब से उसने अपने परिवार के सदस्यों को उन तीन महीनों के दौरान बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी है। जैसे-जैसे गांववाले फिर से बुरे वक्त के लिए तैयार हो रहे थे, जिला प्रशासन ने वही किया जो हर साल किया जाता है। जिला मजिस्ट्रेट, नैनीताल, दीपेंद्र चौधरी कुछ दिन पहले गांव में गए और ग्रामीणों को राशन और केरोसीन सौंप दिया ताकि वह अगले तीन महीनों तक अपना काम चला सकें। । डीएम ने गांव का भी सर्वेक्षण किया और एक ऐसे स्थान को चिन्हित किया, जहां आपातकाल के दौरान में हेलीकॉप्टर को उतारा जा सके।
ग्रामीणों ने अपनी स्थिति के लिए राजनीतिक उदासीनता को दोषी ठहराया। लालकुआं के राज्य कांग्रेस समिति की सदस्य बीना जोशी कहती हैं कि, ‘गांव में पुल का निर्माण करने के लिए राज्य सरकार के साथ कई ज्ञापन प्रस्तुत किए हैं, लेकिन कुछ भी नहीं हुआ है।’ वह यह भी दावा करती है कि एक सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने का प्रस्ताव लंबित है।
उत्तराखंड के अस्तित्व के 17 वर्षों में आजकल सत्तारूढ़ भाजपा पार्टी ने यह दावा किया है कि वह ग्रामीणों की समस्याओं को हल करने के लिए काम कर रहे हैं। नैनीताल के भाजपा सांसद भगत सिंह कोश्यारी का दावा है कि वह निवासियों को बिजली उपलब्ध कराने के लिए “श्रीलंका टापु” में एक सौर संयंत्र स्थापित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं, ‘हम गांव में एक पुल बनाने की संभावना तलाश रहे हैं लेकिन इतने लंबे समय तक (करीब 500 मीटर की दूरी) के साथ एक पुल बनाना तकनीकी रूप से आसान नहीं होगा। हालांकि, हम संभावनाओं को देख रहे हैं ताकि लोग भविष्य में पीड़ित ना हों।’