अब नए आयुर्वेद कॉलेजों को नहीं मिलेगी मंजूरी : आयुष मंत्री

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देहरादून। प्रदेश के मैदानी इलाकों में अब आयुर्वेद कॉलेजों को मंजूरी नहीं मिलेगा। सरकार अब पहाड़ी इलाकों में कॉलेजों की स्थापना पर फोकस करेगी। आयुष मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने कहा कि देहरादून व हरिद्वार में तमाम आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज खोले जा चुके हैं और अब यहां नए कॉलेजों को मंजूरी नहीं दी जाएगी। सरकार का ध्यान अब पर्वतीय क्षेत्रों पर है और आने वाले समय में ऐसे क्षेत्रों में ही नए मेडिकल कॉलेजों को प्राथमिकता दी जाएगी। यह बात आयुष मंत्री ने नेशनल एक्रेडिशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल (एनएबीएच) की ओर से जन जागरुकता संगोष्ठी में कही।

सोमवार को राजपुर रोड स्थित एक होटल में आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए आयुष मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने यह भी कहा कि विश्व और भारत में आयुर्वेद तेजी से बढ़ रहा है। आने वाले एक-दो वर्षों में आयुर्वेद का कारोबार 500 करोड़ रुपये को पार कर जाएगा। चिंता जाहिर करते हुए कहा कि उत्तराखंड के सबसे पुराने संस्थान ऋषिकुल की खराब हालत से सभी परिचित है। सरकार का ध्यान ऐसे संस्थानों को बेहतर स्थिति में लाना है और इसके लिए तमाम स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं, आवास एवं शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि हमारी परंपरा में एलोपैथी से पहले आयुर्वेद आता है। आयुर्वेद को उत्तराखंड में अत्यधिक महत्व भी दिया गया, लेकिन चकाचौंध की दुनिया में एलापैथी का स्थान पहले हो गया है। यही वजह है कि आज आयुर्वेद का अपेक्षित विकास नहीं हो पा रहा। हालांकि, राज्य सरकार आयुर्वेद को निरंतर बढ़ावा दे रही है। उम्मीद है कि आने वाले सालों में आयुर्वेद नई ऊंचाई तक पहुंचेगा।
संगोष्ठी में नेशनल एक्रेडिशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल की उप निदेशक डॉ. वंदना सिरोहा ने आयुष चिकित्सालयों को निर्धारित मानकों के तहत संचालित करने की जानकारी दी। उन्होंने खासकर चिकित्सक, चिकित्सा सहायक, आतुर चिकित्सा व्यवस्था, पंचकर्म क्रिया कक्ष व्यवस्था, औषध चिकित्सा व्यवस्था, आत्यामिक चिकित्सा व्यवस्था समेत योग एवं नेचरोपैथी चिकित्सालय व्यवस्था पर विस्तृत प्रकाश डाला। कार्यक्रम में निदेशक आयुष डॉ. अरुण कुमार त्रिपाठी, एनएबीएच के प्रमुख आकलनकर्ता डॉ. अनुराग मित्तल, उत्तरांचल आयुर्वेदिक कॉलेज के चेयरमेन डॉ. एके कांबोज, निदेशक सुमित कांबोज, हिमालयी आयुर्वेदिक कॉलेज के प्राचार्य डॉ. एके ओझा आदि उपस्थित रहे।