सीबीआई की ना से रसकूदारों को राहत मिलने के आसार

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सीबीआइ का इन्कार राहत दे सकता है उन ऊचे औहदेवालों को जिनकी कलम से करडों के भुगतान हुए हैं घोटाले में। लंबे समय बाद भी सीबीआइ के इस मामले में खास संज्ञान न लेने से इस बात की आशंका बढ़ गई है कि मामले में नया मोड़ आ सकता है। सरकार सीबीसीआइडी का फैसला भी ले सकती है। अफसरों के मुताबिक, सीबीआइ अभी मामले का अध्ययन कर रही है। मामले की गंभीरता को देखने के बाद ही वह इसमें हाथ डालेगी।

ढ़ाई सौ करोड़ से भी अधिक का मुआवजा घोटाला चर्चा में है। यह साफ हो चुका है कि अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर भू स्वामियों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया। कृषि भूमि को बैक डेट में अकृषक दर्शाने का खेल चला और खेल में बड़ा सडिकेट लगा रहा। कमीशनखोरी के फेर में आंखें मूंदकर सभी फाइलें आगे बढ़ाते रहे। चार और दस गुना मुआवजा तक दिया गया। ऐसे में एनएच 74 की लागत बढ़कर कई गुना पहुंच गई। कांग्रेस सरकार में हुए इस घोटाले का जिन्न सरकार के जाते-जाते बाहर निकला। खुद कमिश्नर ने बैठक बुलाकर पूरे मामले से परदा उठाया। स्वीकार किया कि एसएलएओ, एसडीएम, तहसील, चकबंदी, एनएचएआइ और न जाने कौन-कौन से विभाग सुर में सुर मिलाकर सरकार को चूना लगा रहे थे। शासन के निर्देश पर इस मामले की एफआइआर कोतवाली में लिखी गई और स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम ने मामले की जांच शुरू की।

सरकार गठन के साथ ही सीबीआइ जांच के आदेश हुए और सात पीसीएस अफसरों समेत 20 से ज्यादा अधिकारी और कर्मचारियों पर अब तक कार्रवाई की जा चुकी है। आरोप पत्र भी तैयार हो चुके हैं और कार्रवाई का दौर जारी है, क्योंकि सीबीआइ जांच के आदेश हो चुके हैं, इसलिए एसआइटी ने फिलहाल जांच रोक दी है लेकिन खबर है कि सीबीआइ इस मामले का अध्ययन कर रही है। जांच योग्य मामला पाए जाने पर ही सीबीआइ इधर रुख करेगी, वरना उसके इन्कार के बाद सरकार मामले की सीबीसीआइडी जांच का फैसला भी ले सकती है। यहां बता दें कि रिपोर्ट दर्ज होने के बाद खुद पुलिस कप्तान ने इसकी जांच एसआइटी ने न कराकर सीबीसीआइडी से कराने की सिफारिश की थी। ऐसे में माना जा रहा है कि सीबीसीआइडी जांच से अफसरों को कुछ राहत मिलेगी। हालांकि सूत्रों का कहना है कि सीबीआइ ने डबल लॉक में रखी गई मुआवजे से संबंधी फाइलों की छायाप्रति तलब की है। हालांकि सीबीआइ की इस कार्रवाई से यह कतई नहीं कहा जा सकता कि सीबीआइ इस केस को अपनी जांच में लेगी भी या नहीं। थ्री डी और जी में भूमि की प्रकृति और प्रकार का अलग-अलग होना ही जांच का आधार बनेगा। सूत्रों की मानें तो अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर अधिकांश मामलों में थ्रीडी और जी में गड़बड़झाला किया गया है। नियमानुसार थ्रीडी में यदि कृषि भूमि दर्ज है तो जी में भी वही होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया। सेटग-गेटग से प्रकृति और आकार दोनों बदले गए। गदरपुर और बाजपुर में ऐसा सर्वाधिक हुआ।

स्थलीय निरीक्षण के नाम पर खनापूर्ति

नियमानुसार 143 दर्ज की गई भूमि का जिम्मेदार अधिकारियों को स्थलीय निरीक्षण करना चाहिए था लेकिन निरीक्षण इसलिए नहीं किया गया, क्योंकि रिपोर्ट भी लगानी होती और उसमें अगर झूठ का सहारा लिया होता तो आगे पकड़ा जाता। अब अधिकारी यह कहते नहीं थक रहे कि उन्होंने तो एसडीएम, तहसीलदार और पटवारी की रिपोर्ट पर भरोसा किया।