अंग्रेजों के द्वारा बसाये गये और अनुशासन के साथ सहेजे गये नैनीताल नगर में आजाद भारत के पहले दिन यानी 15 अगस्त 1947 को नगर वासियों के उत्साह का कोई सानी नहीं था। लोग नाच-गा रहे थे। 14 अगस्त की पूरी रात्रि मशाल जुलूस निकालने के साथ ही जश्न होता रहा था, बावजूद 15 अगस्त की सुबह तड़के से ही माल रोड पर जुलूस की शक्ल में लोग निकल पड़े थे।
कहीं तिल रखने तक को भी जगह नहीं थी। 100 वर्षों की गुलामी और हजारों लोगों के प्राणोत्सर्ग के फलस्वरूप उम्मीदों के नये सूरज की नई किरणों के साथ हवाऐं भी आज मानो बदली-बदली लग रही थीं, और प्रकृति भी हल्की मानो रिमझिम बारिश के साथ आजादी का स्वागत करते हुऐ देशवासियों के आनंद में स्वयं भी शामिल हो रही थी। लोगों में जश्न का जुनून शब्दों की सीमा से परे था। हर कहीं लोग कह रहे थे-अब वतन आजाद है…।
वर्तमान मंडल मुख्यालय नैनीताल उस दौर में तत्कालीन उत्तर प्रांत की राजधानी था। अंग्रेजों के ग्रीष्मकालीन गवर्नमेंट हाउस व सेक्रेटेरिएट यहीं थे। इस शहर को अंग्रेजों ने ही बसाया था, इसलिये इस शहर के वाशिंदों को उनके अनुशासन और ऊलजुलूल आदेशों के अनुपालन में ज्यादतियों से कुछ ज्यादा ही जलील होना पढ़ता था। अपर माल रोड पर भारतीय चल नहीं सकते थे। नगर के एकमात्र सार्वजनिक खेल के फ्लैट्स मैदान में बच्चे खेल नहीं सकते थे। शरदोत्सव जैसे ‘मीट्स’ और ‘वीक्स’ नाम के कार्यक्रमों में भारतीयों की भूमिका बस ताली बजाने की होती थी। भारतीय अधिकारियों को भी खेलों व नाचघरों में होने वाले मनोरंजन कार्यक्रमों में अंग्रेजों के साथ शामिल होने की अनुमति नहीं होती थी।
ऐसे में 14 अगस्त 1947 को दिल्ली से तत्कालीन वर्तमान पर्दाधारा के पास स्थित म्युनिसिपल कार्यालय में फोन पर आये आजादी मिलने के संदेश से जैसे नगर वासियों में भारी जोश भर दिया था। इससे कुछ दिन पूर्व तक नगर में सांप्रदायिक तौर पर तनावपूर्ण माहौल था। नगर के मुस्लिम लोग पाकिस्तान के अलग देश बनने-न बनने को लेकर आशंकित थे, उन्होंने तल्लीताल से माल रोड होते हुए मौन जुलूस भी निकाला था। इन्हीं दिनों नगर में (शायद पहले व आखिरी) सांप्रदायिक दंगे भी हुऐ थे, जिसमें राजा आवागढ़ की कोठी (वर्तमान वेल्वेडियर होटल) भी फूंक डाला गया था।
ठसके बावजूद 14 अगस्त की रात्रि ढाई-तीन बज तक जश्न चलता रहा था। लोगों ने रात्रि में ही मशाल जुलूस निकाला। देर रात्रि फ्लेट्स मैदान में आतिशबाजी भी की गई। जबकि 15 अगस्त को नगर में हर जाति-मजहब के लोगों का उत्साह देखते ही बनता था। नगर के सबसे पुराने सीआरएसटी इंटर कॉलेज के बच्चों ने सुबह मॉल रोड होते हुए तल्लीताल गवर्नमेंट हाईस्कूल (वर्तमान जीआईसी) तक जुलूस निकाला, वहां के हेड मास्टर हरीश चंद्र पंत ने स्मृति स्वरूप सभी बच्चों को 15 अगस्त 1947 लिखा पीतल का राष्ट्रीय ध्वज तथा टेबल पर दो तरफ से देखने योग्य राष्ट्रीय ध्वज व उस दिन की महान तिथि अंकित फोल्डर प्रदान किया। उन्होंने भाषण दिया, ‘अब वतन आजाद है। हम अंग्रेजों की दासता से आजाद हो गये हैं, पर अब देश को जाति-धर्म के बंधनों से ऊपर उठकर एक रखने व नव निर्माण की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है’।
सुबह म्युनिसिपालिटी (नगर पालिका) में चेयरमैन (पालिका अध्यक्ष) रायबहादुर जसौंत सिंह बिष्ट की अध्यक्षता में बैठक हुई। तत्कालीन म्युनिसिपल कमिश्नर (सभासद) बांके लाल कंसल ने उपाध्यक्ष खान बहादुर अब्दुल कय्यूम को देश की गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते हुए पीतल का तिरंगा बैच के रूप में लगाया। इसके बाद चेयरमैन ने यूनियन जैक उतारकर तिरंगा फहरा दिया। इधर फ्लैट्स मैदान में तत्कालीन एडीएम आरिफ अली शाह ने परेड की सलामी ली। उनके साथ पूर्व चेयरमैन मनोहर लाल साह, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्याम लाल वर्मा व सीतावर पंत सहित बढ़ी संख्या में गणमान्य लोग मौजूद थे। उधर जनपद के दूरस्थ आगर हाईस्कूल टांडी से आईवीआरआई मुक्तेश्वर तक जुलूस निकाला गया था। कुल मिलाकर आजाद भारत के पहले दिन मानो पहाड़ के गाड़-गधेरों व जंगलों में भी जलसे हो रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डुंगर सिंह बिष्ट, इसी वर्ष दिवंगत हुए शिक्षक केसी पंत व शिक्षाविद् प्यारे लाल साह आजादी के पहले दिन के किस्से सुनाते न थकते थे।
कुमाऊं का खास सम्बन्ध है राष्ट्रगान-जन गण मन से
यह तो सभी को पता है कि गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने अपनी कालजयी कृति गीतांजलि की रचना कुमाऊं के रामगढ़ में की थीं, लेकिन गौर करने वाली बात यह भी है कि इस रचना में ही ‘जन-गण-मन’ भी एक पाठ है। यह भी बताया जाता है कि राष्ट्रगान को जिस कर्णप्रिय व ओजस्वी धुन में गाया जाता है, वह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथी रहे कुमाऊं के पिथौरागढ़ जिले के मूनाकोट क्षेत्र के मूल निवासी कैप्टन राम सिंह ने तैयार की थी।
15 अप्रैल 2002 को स्वर्गवासी हुए कैप्टन राम सिंह ने अपने जीवनकाल में खुलासा किया था कि स्वयं नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कैप्टन आबिद हसन के साथ मिलकर जर्मनी में 1941 में ‘शुभ सुख चैन की बरखा बरसे, भारत भाग है जागा’ में संस्कृतनिष्ठ बांग्ला के स्थान पर सरल हिंदुस्तानी शब्दों का प्रयोग करते हुए ‘जन-गण-मन अधिनायक जय हे…’ गीत का रूपांतरण किया था। आगे कुछ अशुद्धियां रह जाने की वजह से 1943 में सिंगापुर में मुमताज हुसैन ने इसे शुद्ध कर राष्ट्रगान का रूप दिया था। इसकी धुन को लेकर उनका कहना था कि नेताजी ने सिंगापुर में आह्वान किया था कि राष्ट्रगीत (कौमी तराना) की धुन ऐसी बने कि आजाद हिंद फौज की स्थापना के अवसर पर गायन के दौरान कैथे हाउस (जहां आइएनए स्थापित हुआ) की छत भी दो फाड़ हो जाए और आसमान से देवगण पुष्प वर्षा करने लगें। इसके बाद ही कैप्टन राम सिंह ने इसकी मौलिक धुन तैयार की थी।
जिम कार्बेट सहित सर्वधर्म के लोग शामिल हुए थे नैनीताल में पहले स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में
नैनीताल में 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए काफी दिनों पूर्व से तैयारियां की जा रही थीं। इस हेतु खास तौर पर ‘इंडिपेंडेंस डे सेलीब्रेशन कमेटी’ बनाई गयी थी। कमेटी के सभी सदस्यों की ओर से इस खास दिन को मनाने के लिए नगर के गण्यमान्य लोगों को व्यक्तिगत आमंत्रण देने के साथ ही आमजन को भी सामूहिक तौर पर एक छपे प्रारूप में सभी सदस्यों के हस्ताक्षर युक्त आमंत्रण पत्र दिए गए थे।
इस आमंत्रण पर सबसे ऊपर लिखा गया था-’इंडिपेंडेंस डे वाइब्रेट्स अवर प्रीमियर होम लेंड विद कॉम्प्लीमेंट्स ऑफ द सेलीबेेशन कमेटी’। इस पत्र की एक प्रति हल्द्वानी के तत्कालीन म्युनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन दयाकिशन पांडे के पास सुरक्षित है, जिससे पता चलता है कि देश की आजादी का पहला ऐतिहासिक दिन मनाने के लिए प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं अंतरराष्ट्रीय शिकारी जिम कार्बेट सहित हर धर्म के गण्यमान्यजन शामिल थे।