बलिया, निर्भया के गुनहगारों को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाए जाने की पल-पल की खबर पर पैतृक गांव में परिजनों की नजर थी। फांसी पर लटकाए जाने की खबर टीवी पर देखते ही गांव में मौजूद निर्भया के दादा-दादी और चाचा-चाची की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े। फांसी के बाद निर्भया के गांव बलिया में लोगों ने एक दूसरे को मिठाई खिलाकर और रंग लगाकर जश्न मनाया।
निर्भया के गांव में उसके चाचा सुरेश सिंह व उनकी पत्नी और दादा लालजी सिंह व उनकी पत्नी हैं। परिवार के बाकी सदस्य बाहर हैं। गांव वाले घर में रात को सब लोग टीवी देखते हुए सो गए। शुक्रवार को चार बजे जग गए। इसके बाद फिर टीवी देखना प्रारंभ किया। जैसे-जैसे बहादुर बेटी के गुनहगारों को फांसी देने का समय नजदीक आ रहा था, सभी की निगाहें टीवी पर केंद्रित होते गईं। गांव के अन्य लोग भी अपने टीवी सेटों से भोर से ही चिपक गए। बबलू पांडेय के घर भी सभी लोग टीवी देख रहे थे। पूरे गांव में लोग टीवी देखते रहे।
जैसे ही यह जानकारी मिली कि चारों गुनहगारों मुकेश, पवन, विनय और अक्षय को तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया है, निर्भया के पैतृक घर में मौजूद सभी ने एकदूसरे को देखा। सबकी आंखों में आंसू छलक पड़े। निर्भया के चाचा सुरेश सिंह ने बताया कि हमें इस दिन का बेसब्री से इंतजार था। आखिरकार न्याय हुआ। इसीलिए कहा जाता है कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। बोले, निर्भया को हम बचा तो नहीं सके लेकिन अब कोई निर्भया जैसी दरिंदगी न झेले, इस फांसी का यही संदेश जाना चाहिए। हमें लगता है कि इससे यही सबक निकलेगा।
गांव में रहा मीडिया का जमावड़ा
निर्भया का पैतृक गांव जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर है। उसके चारों गुनहगारों को फांसी दिए जाने के समय भोर में ही दर्जन भर मीडियाकर्मियों का जमावड़ा हो गया था। जैसे ही फांसी दी गयी, निर्भया के परिजनों से बाइट लेने की होड़ शुरू हो गयी। निर्भया के दादा लालाजी सिंह लगातार मीडिया से बातचीत करते रहे। चाचा सुरेश भी बातचीत करते रहे। अपनी खुशी के साथ-साथ गुनहगारों को फांसी देने में हुई देरी पर अपने मन की पीड़ा साझा करते रहे।