फिल्मों में मोबाइल नंबर के प्रयोग को लेकर सेंसर बोर्ड का नया फरमान

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विवादों में घिरे रहे सेंसर बोर्ड की ओर से एक और ऐसा फरमान जारी किया गया है, जिसके विवाद में घिरने की आशंका है। सेंसर बोर्ड ने फरमान जारी किया है कि अब किसी भी फिल्म में अगर किसी व्यक्ति के मोबाइल नंबर का इस्तेमाल हो सकता है, तो उस व्यक्ति का नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट निर्माता की ओर से सेंसर बोर्ड में जमा कराना होगा। इसके बिना फिल्म को सेंसर सर्टिफिकेट नहीं दिया जाएगा।

सेंसर बोर्ड का मानना है कि फिल्म में किसी का भी ऐसे ही नंबर दिखा देने से उस व्यक्ति को परेशानी होती है और लोग उसके मोबाइल पर कॉल लगाकर उसे परेशान करते हैं। सेंसर बोर्ड के मुताबिक, इस तरह की बढ़ती शिकायतों को देखते हुए सेंसर बोर्ड ने ये कदम उठाया है, जिससे अब किसी को परेशानी नहीं होगी। बॉलीवुड में सेंसर बोर्ड के इस नए फरमान की आलोचना भी शुरू हो गई है।

वरिष्ठ निर्माता मुकेश भट्ट ने कहा है कि, ‘सेंसर फिल्म निर्माताओं के लिए परेशानियां बढ़ाता जा रहा है, ये भी संभव है कि सेंसर बोर्ड कल को ये भी फरमान जारी कर दे कि फिल्म में अगर किसी की मकान या दुकान दिखाया गया है, तो उससे भी एनओसी लेना पड़ेगा। ऐसे में फिल्म बनाना मुश्किल हो जाएगा।’

सेंसर बोर्ड पहले ही नियम बना चुका है कि अगर फिल्म में किसी जिंदा व्यक्ति या किसी संस्थान का नाम लिया जाता है, तो उससे एनओसी लेना अनिवार्य होगा। मधुर भंडारकर की नई फिल्म ‘इंदु सरकार’ 1975 के आपातकाल पर है, लेकिन इस फिल्म को इस नियम से छूट दी गई थी। ये अलग बात है कि बाद में सेंसर बोर्ड ने 16 कट्स देकर मधुर की इस फिल्म को संकट में ला खड़ा किया। सेंसर के आदेश को चुनौती देते हुए मधुर ने एपीलेट ट्रिब्यूनल में केस दर्ज किया है।