चिपको आंदोलन के प्रणेता पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का निधन, पंचतत्व में विलीन

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सुंदरलाल बहुगुणा
image: facebook
पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन के वयोवृद्ध नेता  सुंदरलाल बहुगुणा शुक्रवार को पंचतत्व में विलीन हो गए। मुनि की रेती क्षेत्र के पूर्ण घाट पर उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। उनके बड़े पुत्र राजीव नयन बहुगुणा के मुखाग्नि दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और  उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत सहित विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने बहुगुणा के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है ।
कोरोना संक्रमित सुंदरलाल बहुगुणा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश  में कुछ दिनों से लाइफ सपोर्ट पर थे। उन्होंने शुक्रवार दोपहर करीब 12 बजे एम्स में आखिरी सांस ली।  वह डायबिटीज और हाईपरटेंशन के पेशेंट थे। उन्हें कोविड निमोनिया की शिकायत थी। 94 वर्षीय बहुगुणा को 8 मई को एम्स में भर्ती कराया गया था। पूर्णानंद घाट पर सुंदर लाल बहुगुणा को राजकीय सम्मान के साथ बंदूकों की सलामी दी गई।
एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश मोहन थपलियाल ने बताया कि उन्हें आईसीयू में लाइफ सपोर्ट में रखा गया था। उनके रक्त में ऑक्सीजन की परिपूर्णता का स्तर बीती शाम से गिरने लगा था। चिकित्सक उनकी लगातार निगरानी कर रहे थे। शुक्रवार दोपहर करीब 12:00 बजे सुंदरलाल बहुगुणा ने अंतिम सांस ली। उनके बेटे राजीव नयन बहुगुणा एम्स में मौजूद है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुगुणा के निधन पर दुख व्यक्त किया है। अपने ट्वीट में उन्हे बहुगुणा के चले जाने को अभूतपूर्व क्षति बताया है। पीएम के अलावा, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, मुख्य्यमंत्री, राज्यपाल, मंत्रियों समेत कई लोगों ने बहुगुणा रके निधन पर दुख वयक्त किया है।
बहुगुणा ने नारा दिया था- ‘धार ऐंच डाला, बिजली बणावा खाला-खाला।’ यानी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ लगाइये और निचले स्थानों पर छोटी-छोटी परियोजनाओं से बिजली बनाइये। वे सादा जीवन उच्च विचार को आत्मसात करते हुए जीवनपर्यंत प्रकृति, नदियों व वनों के संरक्षण में लगे रहे। बहुगुणा ही वह शख्स हैं जिन्होंने दुनिया को अच्छे और बुरे पौधों में अंतर करना सिखाया।
सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी, सन 1927 को  देवभूमि उत्तराखंड के सिलयारा में हुआ था। प्राइमरी शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए। वहीं से उन्होंने कला स्नातक किया । पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मंडल’ की स्थापना भी की। 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के करीब आने के बाद दलित विद्यार्थियों के उत्थान के लिए काम करने लगे। उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा छात्रावास की स्थापना भी की। दलितों को मंदिर में प्रवेश दिलाने के अधिकार के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ा। पर्यावरण के मुद्दे पर 1971 में बहुगुणा ने 16 दिन तक अनशन किया। चिपको आंदोलन के कारण वे दुनिया में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
बहुगुणा के काम से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर  संस्था ने 1980 में उन्हें पुरस्कृत किया। इसके अलावा उन्हें तमाम पुरस्कारों से सम्मानित किया गया । पर्यावरण को स्थायी संपत्ति मानने वाला इस महापुरुष को पर्यावरण गांधी के नाम से भी पुकारा जाता है। अंतरराष्ट्रीय मान्यता के रूप में 1981 में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार उन्हें मिला। सुंदरलाल बहुगुणा को 1981 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया। उन्होंने इसे यह कह कर स्वीकार नहीं किया कि जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, वह अपने को इस सम्मान के योग्य नहीं समझते।
पुरस्कार:
  • रचनात्मक कार्य के लिए 1986 में जमनालाल बजाज पुरस्कार।
  • 1987 में राइट लाइवलीहुड पुरस्कार (चिपको आंदोलन)।
  • 1987 में शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार।
  • 1987 में सरस्वती सम्मान।
  • 1989 में सामाजिक विज्ञान के डॉक्टर की मानद उपाधि (आईआईटी रुड़की से)।
  • 1998 में पहल सम्मान।
  • 1999 में गांधी सेवा सम्मान।
  • 2000 में सांसदों के फोरम से सत्यपाल मित्तल अवार्ड।
  • 2001 में पद्म विभूषण