गुलजार के गाने ही कर सकेंगे तीजन बाई की जिंदगी से न्याय: आलिया सिद्दीकी

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नई दिल्ली, बॉलीवुड एक्टर नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी आलिया सिद्दीकी और मंजू गढ़वाल वायएस एंटरटेनमेंट के बैनर तले लोक गायिका तीजन बाई की जिंदगी पर फ़िल्म बनाने जा रही हैं। यह जानकारी आलिया ने यहां पीवीआर प्लाजा में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान दी।

इस मौके पर आलिया सिद्दीकी ने तीजन बाई की बायोपिक बनाने को लेकर कहा, ‘‘हमारी इच्छा है कि तीजन बाई जैसी शख्सियत का किरदार कोई दमदार अभिनेत्री ही करे। इसके लिए विद्या बालन, प्रियंका चोपड़ा और रानी मुखर्जी से बातचीत चल रही है लेकिन अब तक इस किरदार के लिए किसी अभिनेत्री का नाम फाइनल नहीं हुआ है। तीजन बाई के नाना भी भूमिका के लिए बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन से संपर्क किया गया है। उन्हें स्क्रिप्ट पसंद आई है और किरदार भी।”

आलिया ने आगे कहा, ‘मेरी दिली ख्वाहिश है कि गुलजार साहब ही तीजन बाई की बीयोपिक के गाने लिखें।’  आलिया सिद्दीकी कहती हैं, “तीजन बाई की जिंदगी के कई पहलू हैं, जिसके बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता है।’’

इस फिल्म के निर्माण के लिए आलिया सिद्दीकी और मंजू गढ़वाल की मदद कर रहे नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी कहते हैं, ‘‘तीजन बाई अपने आप में एक किंवदंती हैं। मुझे आलिया पर पूरा यकीन है कि वह इस फिल्म को महज फिल्म फेस्टिवल के लिए नहीं बल्कि आज के आम दर्शकों को ध्यान में रखकर इसे बेहद प्रासंगिकता के साथ बनाएंगी।

मंजू गढ़वाल ने कहा कि आज भी तीजन बाई अपनी जादुई और प्रभावशाली आवाज से दुनिया भर के श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर रही हैं। वह अपनी गायिकी को आज की पीढ़ी तक पहुंचा रही हैं।

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ के गनियारी गांव में 1956 में जन्मी तीजन बाई के पिता का नाम चुनुक लाल पारधी और मां का नाम सुखवती था। छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जाति पारधी समाज से ताल्लुक रखनेवाली तीजन बाई को 1988 में पद्मश्री, 1995 में श्री संगीत कला अकादमी पुरस्कार, 2003 में डॉक्टरेट की डिग्री, 2003 में पद्म भूषण, 2016 में एम. एस. सुब्बालक्ष्मी शताब्दी पुरस्कार से और साल 2018 में उन्हें ‘द फ़ुकुओका प्राइज’ से सम्मानित किया जा चुका है।

उल्लेखनीय है कि तीजन बाई की शादी 12 साल की छोटी उम्र में ही कर दी गई थी लेकिन एक महिला होने के बावजूद पंडवानी नामक गायिकी की विधा में बेहद रुचि रखने की वजह से उन्हें उनके पारधी समाज से निष्कासित भी कर दिया गया था। शौक के साथ संघर्ष से साबका बचपन में ही हो गया था। पारधी समाज से निष्कासित होने के बाद उन्होंने ख़ुद ही एक झोपड़ी बनाकर स्वतंत्र रूप से रहना शुरू कर दिया था लेकिन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद गायिकी का दामन कभी नहीं छोड़ा और आखिरकार इसी गायिकी ने उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया।