उत्तराखंड में पंच पंडा रुद्रपुर की अगुवाई में 71 वर्ष बाद रुद्रपुर के भैरवनाथ मंदिर में भगवान केदारनाथ की तेल घड़ा कलश यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं में खासा उत्साह है। हक-हकूकधारी सांकरी गांव से तेल कलश को सिर में रखकर पैदल यात्रा कर रुद्रपुर भैरवनाथ मंदिर पहुंचाया। वर्ष 1952 के बाद यह पहला ऐतिहासिक पल है कि जब भगवान केदारनाथ की अखंड ज्योति को जलाने के लिए सांकरी गांव से तेल कलश यात्रा रुद्रपुर पहुंची है।
सोमवार 2 मई को सैकड़ों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में यह कलश यात्रा गुप्तकाशी स्थित विश्वनाथ के मंदिर में पहुंचेगी, जहां से बाबा केदारनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली के साथ-साथ यह कलश भी केदारनाथ धाम पहुंचेगी। इसी तेल से बाबा केदारनाथ की अखंड ज्योति जलाई जाएगी। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परिपाटी वर्ष 1952 तक जारी रही। लेकिन तत्कालीन विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते इस तेल कलश यात्रा को विराम दे दिया गया।
बाबा केदारनाथ के भक्तों ने जब पौराणिक अभिलेख खंगाले, तो उन्हें ज्ञात हुआ कि पूर्व में बदरीनाथ धाम की भांति केदारनाथ के लिए भी तेल कलश यात्रा निकलती थी, लेकिन विपरीत और प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद इस प्रथा का चलन पूर्णता बंद हो गया था। बताया जाता है कि राऊ लेक, खोनू और सांकरी गांव के ग्रामीणों द्वारा अपने घर में उत्पादित सरसों का तेल निकालकर एकत्रित किया जाता था, जिसे एक बड़े कलश में रखकर उसे बाबा केदारनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली की अगुवाई में केदारधाम पहुंचाया जाता था।
वेद पाठी ओंकार शुक्ला ने कहा कि क्षेत्रीय लोगों के लिए खुशी की बात है कि पुरानी परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। उन्होंने बताया कि बुजुर्गों के अनुसार केदारनाथ धाम तक पूर्व में भी इस तरह की तेल कलश यात्रा निकाली जाती थी, जो प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद बंद कर दी गई थी। लेकिन पुनः श्रद्धालुओं के जागरूक होने से यह परिपाटी दोबारा चलन में आ गई है।
उन्होंने बताया कि आने वाले समय में तेल घड़ा कलश यात्रा को भव्यता प्रदान की जाएगी। कलश की परंपरागत पूजा अर्चना करके भैरवनाथ मंदिर में रात्रि भर जागरण होगा और 2 मई को