जनसंख्या घनत्व के साथ-साथ राजधानी दून की यातायात व्यवस्था को सुचारु बनाये रखने के लिए चल रहे प्रयाेग लगातार चर्चा का विषय बने हुए हैं। राजधानी बनने के बाद पिछले दस सालों में तमाम तरह के प्रयोग किये जा चुके हैं लेकिन समस्या को कोई स्थायी हल अब तक नहीं निकल सका है। इसके उलट यातायात की स्थिति सुधरने की बजाय दिनो दिन खराब होती जा रही है। वाहनों की बढ़ोतरी के बाद सड़कों को वन-वे करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं दिख रहा है। यातायात पुलिस इसी मनोवृत्ति से काम कर रही है।
डीआईजी अरुण मोहन जोशी ने दून के यातायात को सुचारु बनाने के लिए जिस नये वन-वे ट्रैफिक प्लान का ट्रायल बीते चार दिनों में किया उसमें कई तरह की समस्याएं आई हैं। वन-वे के अलावा दून के यातायात को सुचारु बनाने का कोई दूसरा रास्ता हो ही नहीं सकता है। सड़कों को चौड़ा करना देहरादून में अधिक संभव नहीं है। लोगों की दुकानें और घर तोड़े जाने की भी एक सीमा है। चार दिन के ट्रायल के बाद अब इस योजना के व्यवहारिक समस्याओं का अध्ययन किया जा रहा है। यह वन-वे प्लान इसलिए भी दिक्कतों भरा रहा क्योंकि इसके बारे में लोगों को सही जानकारी नहीं थी। इसमें थोड़े बहुत फेरबदल की गुंजाइश थी, जिससे इसे थोड़ा आसान बनाया जा सकता था। डीआईजी जोशी का कहना है कि अब समीक्षा के बाद इसमें संशोधन के साथ फिर ट्रायल किया जायेगा।
किसी भी प्लान को लागू करना जितना मुश्किल होता है उसे खारिज करना उतना ही आसान होता है। पुलिस कप्तान ने इतना बड़ा प्लान तैयार करने और उसका ट्रायल करने का रिस्क लिया यह भी बड़ी बात है। इससे पूर्व सिर्फ तत्कालीन एसएसपी केवल खुराना ने ऐसे प्रयोग करने का साहस दिखाया था बाकी समय में तो सभी अधिकारी सिर्फ यही सोचते रहे कि जैसे चल रहा है चलने दो। यातायात व्यवस्था को सुचारु बनाये रखना अत्यन्त ही चैलेन्जिग काम है क्योंकि आबादी और वाहनों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है। हर रोज 50 नये चौपहिया वाहन सड़कों पर आ रहे हैं। सड़कें कोई रबड़ की तो बनी नहीं है जिन्हे खींच कर बड़ा किया जा सके। ऐसी स्थिति में सिर्फ वन-वे ही एक मात्र ऐसा उपाय है जो दून के यातायात को सुचारु रख सकता है। जरूरत सिर्फ इसका एक बेहतर रोड मैप तैयार करने ही है जिसमें वनवे महत्वपूर्ण साबित होगा।