ऋषिकेश, विश्व विख्यात धर्मनगरी ऋषिकेश के रेलवे स्टेशन के सामने खाली पड़ी जमीन में गंदगी का अंबार लगा हुआ है। बाहर से आए तीर्थयात्रियों को गंदगी में बैठकर खाना बनाना और खाना पड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि दूरदराज से गरीब तबके से पहुंचे श्रद्धालु जो कि बड़े-बड़े होटलों में खाना नहीं खा सकते हैं, घर से ही चावल आटा लेकर तीर्थ यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं। यात्रा करने के बाद भूख और प्यास से बेहाल यात्री ऋषिकेश में किसी प्रकार की कोई व्यवस्था ना होने पर सीधे रेलवे स्टेशन की तरफ रूख करते हैं। लेकिन उन्हें भी वहां निराशा ही हाथ लगती है और गंदगी के अंबार के पास ही बैठ कर खाना बना कर खाना पड़ता है। विडंबना है कि रेलवे विभाग हर वर्ष ऋषिकेश के लिए नई-नई घोषणाएं करता रहा है लेकिन धरातल पर वही ढाक के तीन पात की कहावत ही यहां चरितार्थ होती रही है।
हर वर्ष यात्रा सीजन शुरू होता है यात्राएं आती है चली जाती है। लेकिन बर्षों से स्टेशन के सामने खाली पड़ी भूमि की स्थिति वैसी की वैसी ही बनी हुई है। रेलवे विभाग की लापरवाही के चलते गंदगी के ढेर में आम आदमी और यात्रियों को यहां से गुजरते वक्त नाक पर रुमाल रखकर चलना पड़ता है। दुभाग्यपूर्ण बात यह है कि धर्म की यात्रा पर निकले गरीब यात्री कहीं भी खाली भूमि ना मिलने के कारण अपने पेट की आग बुझाने के लिए यहीं पर खाना बनाते हैं और खाते हैं।
खाली भूखंड पर यात्रियों द्वारा खाना बनाए जाने के संबंध में रेलवे स्टेशन अधीक्षक आरपी मीणा का कहना है यह भूखंड सौंदर्य करण की दृष्टि से परमार्थ निकेतन स्वामी चिदानंद मुनि ने लिया था। जिनके द्वारा इस भूखंड पर वृक्षारोपण भी किया गया। लेकिन तीन वर्ष से इस पर किसी भी प्रकार की गतिविधि नहीं की गई है। जिसके कारण यहां गाड़ियां खड़ी होने लगी और गंदगी भी हो गई है। रेलगाड़ी से आने वाले कुछ यात्री खाना बनाकर उसकी राख इत्यादि यही छोड़ जाते हैं जिन्हें सुरक्षाकर्मियों द्वारा रोके जाने का प्रयास किया जाता है। परमार्थ निकेतन ने इस खाली भूखंड के चारों ओर तारबाड भी की हुई है।