उत्तराखंड के कण-कण में भगवान शिव का वास है। कुछ ऐसा ही है मणिकूट पर्वत के नीलकंठ महादेव में। हर साल सावन मास में बड़ी संख्या में शिवभक्त जल लेकर नीलकंठ महादेव का जलाभिषेक के लिए निकल पड़ते हैं – नीचे गंगा और उसके सिर पर मणिकूट पर्वत का विद्वान भगवान शिव रहते हैं।
जब समुद्र मंथन में अमृत के साथ विष निकला था तब भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण किया था इसलिए इसे नीलकंठ महादेव कहां जाता है, यही वह स्थान है जहां पर भगवान शिव को विश्व की तपस से राहत मिली थी और यहीं पर शिव भगवान समाधी में लीन हो गए थे। तब से लगातार शिवभक्त अपने भोले बाबा के दर्शन करने के लिए नीलकंठ धाम, ऋषिकेश्त पहुंचते हैं और बाबा भोलेनाथ उनकी हर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
बड़ी संख्या में शिवभक्त विभिन्न राज्यों से पैदल कावड़ को देकर गंगा से जल भरकर अपने आराध्य भगवान शिव को जलाभिषेक करने के लिए नीलकंठ धाम पहुंचते हैं। ऐसे में प्रशासन के लिए भी इन लाखों भक्तों को कंट्रोल करना चुनौती भरा काम होता है जिसके लिए प्रशासन भी मुस्तैद नजर आ रहा है। कावड़ यात्रा पर आतंकी अलर्ट होने के बावजूद शिव भक्तों की आस्था पर कोई कमी देखने को नहीं मिल रही है, शिवभक्तों की आस्था के आगे आतंकी साया ओझल होता दिख रहा है।