देहरादून, कहते हैं राजनीति में ना कोई दोस्त होता ना कोई दुश्मन। मजबूत होता है तो सिर्फ एक मौका, इस मौके का अगर किसी ने अच्छे से फायदा उठा लिया तो उसकी कुर्सी की पकड़ मजबूत होती जाती है। लेकिन जरा सी चूक सत्ता की कुर्सी के पाव को उखाड़ने में देर नहीं करती।
कुछ ऐसा ही नजारा है उत्तराखंड भाजपा के अंदर भी। प्रचंड बहुमत के बाद भी त्रिवेंद्र रावत सरकार कहीं ना कहीं अपनों से ही घिरती जा रही है। प्रदेश के मुखिया अपने कुनबे को सही ढंग से संभालने में कहीं ना कहीं चूक गए हैं ,जिसका नतीजा 11 महीने में ही उत्तराखंड में दिखने लगा है ।उत्तराखंड की राजनीति के दिग्गज कहीं ना कहीं उत्तराखंड में नेतृत्व के खिलाफ एकजुट होकर अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए तैयार बैठे हैं।
लगातार उपेक्षा अनदेखी और हठधर्मिता कहीं ना कहीं त्रिवेंद्र रावत के सामने अब चुनौती बन कर आ रही है ।कांग्रेस से आकर नए-नए भाजपाई बने नेता और हाशिए पर चले गए भाजपा के दिग्गज नेता और विधायक कहीं ना कहीं असंतोष से गुजर रहे हैं, जिसके चलते राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें तेज हो गई है ।
सत्ता के गलियारों में हर रोज नई नई खबरें त्रिवेंद्र सरकार की मुसीबतों को बढ़ा दी जा रही है। हरभजन सिंह चीमा, बिशन सिंह चुफाल,प्रणव चैंपियन व मुन्ना सिंह चौहान सहित कई विधायक सरकार के रवैए से खफा है। चैंपियन की दिल्ली दरबार में दस्तक को भाजपा सरकार और संगठन पचा नहीं पा रहे हैं। अब अनुशासनहीनता के चलते नोटिस देने की बात कर रहे हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का कहना है कि आखिर प्रदेश संगठन को दर किनारे करके प्रणव चैंपियन को किस वजह से दिल्ली जाना पड़ा?
अगर उत्तराखंड के सत्ता इतिहास को देखा जाए तो यहां अनदेखी के शिकार से कई बार सत्ता परिवर्तन हुए हैं ,इस बार भी चिंगारी उठी है जो दूर तलक जाएगी?