निजी मेडिकल कॉलेजों में दाखिले, प्रबंधन व सरकार में टकराव

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नीट परीक्षा के बाद मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेने के लिए जहां छात्र-छात्राओं में मारा-मारी है, वहीं सरकार और निजी मेडिकल कॉलेजों के बीच जंग छिड़ गई है। सरकार निजी मेडिकल कॉलेजों की मनमानी पर रोक लगाने का सार्थक पहल कर रही है। सरकार का मानना है कि छात्रों का हित सर्वोपरि है, सरकार चाहती है कि निजी विश्वविद्यालय लूट खसोट बंद कर छात्रों को राहत दें और नियमानुसार प्रवेश दें।

प्रदेश में फिलहाल छह मेडिकल कॉलेज हैं, जिनमें से तीन निजी तथा तीन सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं। सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सुशीला देवी तिवारी मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज तथा देहरादून मेडिकल कॉलेज के नाम शामिल हैं, जबकि निजी मेडिकल कॉलेजों में श्रीगुरूराम राम मेडिकल कॉलेज देहरादून, सुभारती मेडिकल कॉलेज देहरादून तथा हिमालयन मेडिकल कॉलेज जौलीग्रांट के नाम शामिल हैं। सरकारी विश्वविद्यालय तो सरकार के निर्देशों का अनुपालन कर रहे हैं,जबकि तीनों निजी मेडिकल कॉलेज अपने हिसाब से प्रवेश परीक्षा प्रारंभ कर रहे हैं। इसके लिए हिमालयन मेडिकल कॉलेज जौलीग्रांट ने तो बाकायदा विज्ञापन देकर सीटें भरने का उपक्रम किया है।

पहली काउंसलिंग में अधिकांश लोगों ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों को वरीयता दी है। पूरे देश में नीट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सामूहिक काउंसलिंग का कार्य प्रारंभ हो गया है। 16 जुलाई से प्रारंभ हुई इस मेडिकल काउंसलिंग के लिए ऑनलाइन पंजीकरण किया जा रहा है। उत्तरराखंड में आठ हजार सात सौ से अधिक बच्चों ने पंजीकरण कराया और वे प्रवेश लेने के इच्छुक हैं। मेडिकल काउंसलिंग के लिए 24 जुलाई को काउंसलिंग का परिणाम घोषित किया जा सकता है, जिसमें वरीयता के आधार पर अभ्यर्थियों को कॉलेज आवंटित किए जाएंगे। इसके बाद दूसरी सूची मिलेगी। इसी प्रवेश के लिए सरकार और निजी विश्वविद्यालयों के बीच मामला ठना है।

निजी विश्वविद्यालय चाहते हैं कि उनके ऊपर प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति का आदेश जबरन न थोपा जाए। वो चाहते हैं कि वे स्वतंत्र इकाई के रूप में अपना नियम कानून बनाने को स्वतंत्र हैं। इसके लिए वे न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए तैयार बैठे हुए हैं। समय की कमी न होती तो अब तक निजी मेडिकल कॉलेज न्यायालय तक पहुंच चुके होते, लेकिन सरकार है कि आम जनता के हित के लिए मेडिकल कॉलेज के छात्र-छात्राओं को राहत देना चाहती है और उनकी लूट खसोट रोकने के लिए सरकारी नियमों का अनुपालन कराना चाहती है।

फिलहाल मामला सरकार और विश्वविद्यालयों के बीच विवाद का मुद्दा बन रहा है,लेकिन सरकार को संभावना है कि वह इस मामले का समुचित समाधान ढूंढ़ लेगी। मेडिकल विभाग के मुखिया स्वास्थ्य निदेशक आर.सी.सयाना मानते हैं कि, ‘प्रदेश में मेडिकल काउंसलिंग के लिए निजी विश्वविद्यालय और सरकारी विश्वविद्यालयों में एक्ट की लड़ाई है। सरकार चाहती है कि राज्य में प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति के नियमों का अनुपालन किया जाए और शासनादेश के अनुसार काम हो।’ डा. सयाना का कहना है कि सरकार शासनादेश का अनुपालन इन विश्वविद्यालयों से कराएगी।

दूसरी ओर श्री गुरूराम राय मेडिकल कॉलेज के जन संपर्क अधिकारी भूपेन्द्र रतूड़ी का कहना है कि, ‘विश्वविद्यालय अपने नियमों कानूनों से परिचालित होते हैं और वो स्वतंत्र इकाई हैं और उन्हें अपना शुल्क स्वयं निर्धारित करने का अधिकार है।’ एसजीआरआर तथा हिमालयन द्वारा अपना प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। निजी विश्वविद्यालय के लिए उच्च न्यायालय द्वारा जो दिशा निर्देश जारी किए गए हैं हम उनके अनुसार कार्यवाही करेंगे। इसी संदर्भ में जौलीग्रांट द्वारा एमबीबीएस की सीटों के लिए विज्ञापन जारी कर आवेदन मांगे गए थे, जिस पर उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय द्वारा स्पष्टीकरण गया था,जिसे इन कॉलेजों द्वारा भेज दिया गया है।