उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति फर्जी डिग्री प्रकरण में फंस गये है। कुलपति की पूर्व उत्तर मध्यमा और उत्तर मध्यमा की डिग्री को फर्जी बताते हुए कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसमें कोर्ट ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय को पांच सदस्यीय कमेटी गठित कर डिग्री की जांच करने के आदेश दिए है। इसी के साथ जांच रिपोर्ट को कोर्ट में जमा कराने को कहा गया है। इस फर्जी डिग्री प्रकरण के बाद संस्कृत विश्वविद्यालय में कुलपति की योग्यता पर सवाल उठने लगे है।
हरिद्वार में स्थित उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति पीयूषकांत दीक्षित है। इनके खिलाफ उच्च न्यायालय याचिका दाखिल है। याचिकाकर्ता ने कुलपति पीयूषकांत दीक्षित की संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से प्राप्त पूर्व मध्यमा 1975 और उत्तर मध्यमा 1977 की डिग्री को फर्जी बताते हुए कूटरचना करने का दावा किया गया है।
इन डिग्रियों के सत्यापन में पता चला कि दीक्षित का 1976 में उत्तर मध्यमा प्रथम वर्ष जिसका अनुक्रमांक 3745 था का परीक्षाफल अनुचित साधन का प्रयोग करने के कारण अपूर्ण है। इस रिजल्ट के अपूर्ण होने के बावजूद 1977 में उत्तर मध्यमा द्वितीय वर्ष अनुक्रमांक 6251 का परीक्षाफल जारी कर दिया गया। इस पूरे प्रकरण में हाईकोर्ट के आदेश पर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर यदुनाथ दुबे ने जांच कमेटी गठित कर दी है।
जांच कमेटी का अध्यक्ष प्रो. राम किशोर त्रिपाठी और संयोजक परीक्षा नियंत्ररक डॉ राजनाथ को नियुक्त किया गया है। जांच कमेटी में प्रोफेसर व्यास मिश्र, प्रोफेसर विधु द्विवेदी, प्रोफेसर शैलेष कुमार मिश्र को भी शामिल किया गया है। जब इस पूरे मामले में कुलपति पीयूष कांत दीक्षित से बात करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया। इस जांच के बाद कुलपति की योग्यता पर सवाल उठने लगे है।