आयुष सीटों की काउंसिलिंग को लेकर खड़ा हुआ विवाद

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देहरादून। आयुष कोर्सेज में दाखिले को लेकर इस विवाद की स्थिति बन नजर आ रही है। मौजूद हालातों पर गौर करें तो एक ओर जहां ​उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय केंद्रीयकृत काउंसिलिंग कराने का निर्णय ले चुका है। वहीं, दूसरी ओर निजी आयुष संस्थान मैनेजमेंट कोटे की सीटों पर अलग से दाखिला देने की बात पर अड़े हैं। ऐसे में इस बार दाखिलों को लेकर पनप रहे इस विवाद के बीच छात्रों की फजीहत होती दिखाई दे रही है।
उत्तराखंड आयुर्वेद यूनिवर्सिटी के हर्रावाला से जुड़े प्रदेशभर के कॉलेजों में बैचलर ऑफ आयुर्वेद मेडिसन एंड सर्जरी (बीएएमएस), बीएचएमएस और बीयूएमएस की कुल 675 सीटें राज्य कोटे में सुरक्षित हैं। इसके अलावा निजी संस्थानों के पास आॅल इंडिया कोटे की कुल 565 सीटें हैं। इन्हीं सीटों पर दाखिला प्रक्रिया शुरू होनी है। खास बात यह कि इस नीट के जरिए ही आयुष कोर्स के लिए भी दाखिला मिलेगा। ऐसे में अब राज्य का उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय भी केंद्रीयकृत काउंसिलिंग के जरिए ही संस्थानों की सीटों पर दाखिला देगा। जिसके चलते राज्य के सभी आयुष संस्थानों की न सिर्फ राज्य कोट्र की सीट बल्कि आॅल इंडिया मैनेजमेंट कोटे की सीटों पर भी सेंट्लाइज्ड काउंसिलिंग से ही दाखिला होगा। इसी को लेकर निजी आयुष संस्थान एतराज कर रहे हैं। काउंसिलिंग को लेकर विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलसचिव डॉ. राजेश कुमार का कहना है कि काउंसिलिंग को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में हैं। शासन के निर्देश हैं कि सभी सीटें केन्द्रीयकृत काउंसिलिंग के माध्यम से ही भरी जाएं। इसी अनुसार कार्रवाई की जाएगी।
विरोध पर निजी संस्थानों का तर्क
संस्थानों का कहना है कि दाखिले नीट के माध्यम से हुए तो कॉलेजों में ज्यादातर सीटें खाली रह जाएंगी। कारण यह कि जिस किसी का भी नीट में अच्छा रैंक है, वह एमबीबीएस का ही विकल्प चुनेगा। औसत रैंक वाले अधिकतर छात्र भी ड्रॉप करते हैं। उस पर बीएएमएस, बीएचएमएस व बीयूएमएस में अच्छे रैंक वाले छात्रों को राज्य कोटा के तहत सीट अलॉट हो जाएगी। ऐसे में संकट मैनेजमेंट कोटा की सीट भरने का होगा। राज्य सरकार सीट खाली न रहने की गारंटी दे तो नीट से दाखिले से कोई परहेज नहीं है। लेकिन सीट खाली रही तो कॉलेजों को नुकसान उठाना पड़ेगा। नियमानुसार राज्य व मैनेजमेंट कोटा की 50:50 के अनुपात में सीट होती हैं। केंद्र के आदेश के तहत इन्हें नीट के माध्यम से भरना है। जबकि राज्य में यह व्यवस्था है कि मैनेजमेंट कोटा के लिए अभी तक कॉलेज अलग प्रवेश परीक्षा कराते थे। इसे लेकर शासन में अपना पक्ष रखा है। एसोसिएशन ऑफ कम्बाइंड एंट्रेंस एग्जाम के अध्यक्ष डॉ. अश्वनी काम्बोज ने बताया कि प्राइवेट कॉलेजों की चिंता सिर्फ इस बात की है कि सीटें खाली न रह जाएं। क्योंकि जिन राज्यों में पिछले साल यह व्यवस्था अपनाई गई वहां ऐसा हुआ है। हमने शासन में अपना पक्ष रखा है। यह प्रकरण न्याय विभाग को भेजा गया है।
मैनेजमेंट सीटों पर मोटी कमाई
जानकारों की मानें तो निजी संस्थानों द्वारा मैनेजमेंट सीटों पर अलग से दाखिला ​करने की मांग का एक कारण मोटी कमाई है। दरअसल, अभी तक निजी संस्थानों की मैनेजमेंट की सीटों पर दाखिले के लिए निजी संस्थान अपना अलग से एंट्रेंस कराते थे। जिसके बाद इन सीटों पर फीस के रूप में मोटी रकम भी वसूली जाती थी। इतना ही नहीं कोई मोनीटरिंग न होने के चलते संस्थानों में भारी भरकम डोनेशनों पर भी दाखिले का खेल चलता था। लेकिन अब यह संभव नहीं होगा। नीट की सेंट्रलाइज्ड काउंसिलिंग के कारण निजी संस्थानों को मानमाने दाखिले करने का अधिकार नहीं मिल पाएगा। जिस कारण प्रबंधन को भारी नुकसान होगा।