उत्तराखण्ड में नैनीताल से लगे खूपी गाँव में सैकड़ों परिवार हर रोज रातभर जागकर अपनी मौत का इंतज़ार करते हैं। इन घरों की दीवारों और बीमों में आई दरारें, इन लोगों के चेहरे पर पड़ी लकीरें इस बात की गवाही दे रही हैं की इन्हें अपनी मौत का डर तो है लेकिन अपने पुस्तैनी घरों से लगाव भी उतना ही है। सरकारें भी आई गई लेकिन इन असहाय और मजबूर लोगों की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं हो सकी। अब जिला प्रशासन का कहना है की इन्हें दो जगह विस्थापित करने की बात चल रही है हालाँकि ये मैदानी क्षेत्रों में विस्थापन चाह रहे हैं।
बरसात के आते ही ये 110 परिवार अपनी मौत के डर से परेशांन हैं क्यूंकि इनके गांव के नीचे बहने वाले पाइंस नाले का बरसात में बहाव बहुत तेज हो जाता है और इससे गांव के नीचे से भूकटाव की स्थिति पैदा हो जाती है । लगभग डेढ़ किलोमीटर की परिधि में बसे इस छोटे से गाँव में निम्न वर्ग के श्रमिक लोग बसेरा करते हैं जिनकी अपनी पुस्तैनी भूमि में मकान है।भूकटाव से गाँव का पहाड़ धीरे धीरे नीचे को खिसक रहा है और इससे घरों समेत सड़कों और दूसरी जगहों में दरारें बढ़ती जा रही हैं। घर में लगभग डेढ़ इंच की दीवार पर दरार से आरपार देखा जा सकता है। महिलाऐं खाना तो अंदर ही बनाती हैं लेकिन डर के चलते बांकी सब काम घर से बाहर ही करती हैं। बच्चों को भी केवल सोने के समय ही घर में घुसने की इजाजत दी जाती है। समस्त क्षेत्र के साथ घर के भूस्खलन की चपेट में आने के खतरे से यहाँ रहने वाले लोग अपने दरारों वाले कमरे को छोड़कर दूसरी जगह पनाह लेने को मजबूर हैं। मकानों के फर्स भी टूटकर अलग हो गए हैं। यहाँ इतना खतरा है की नए बने मकानों में भी एकदम दरार आ जाती है।
यह पूर्व विधायक सरिता आर्या का गृह क्षेत्र है लेकिन आरोप है की सत्ता में रहने के बावजूद उन्होंने इसके लिए कुछ नहीं किया। क्षेत्रवासियों का आरोप है की यहाँ हर वर्ष नेता और अधिकारी पहुँचते हैं लेकिन काम ढेले भर का भी नहीं हो पाता है। उनका कहना है कि कुछ समय पहले जमीन धंसने की शुरू हुई इस प्रक्रिया के कारण ही घरों में दरारें आई हुई हैं जो पिछले तीन वर्षों से बढ़ते जा रही हैं । मज़बूरी के कारण उन्होंने अपने बच्चों को यहाँ से दूर किसी के घर में आसरा देना पड़ रहा है। आरोप लगाया की कुछ समय पहले प्रशासन ने केवल दो हजार रूपये का मुआवजा देकर इतिश्री कर ली और अब वो ऐसे में जाएं तो जाएं कहाँ ? अब वो सरकार से असमर्थ लोगों के विस्थापन की मांग कर रहे हैं जिससे इन ग्रामीणों को परेशानी ना हो, जबकि कुछ लोग तो पहले ही इस जगह को छोड़कर बाहर जा चुके हैं।
ग्रामीणों ने ये भी बताया कि ये भूकटाव का सिलसिला सन 1997 से शुरू हुआ था जिससे खूपी, भुमियधार और कुरिया गांव को खतरा हो गया था । क्षेत्र की ग्राम प्रधान का कहना है की उन्होंने कई बार ये बात सरकार के कानों तक पहुंचाने की कोशिश की है, जिसके बाद जिला प्रशासन जाग जाता है लेकिन हर वर्ष बरसात जाते ही सब भूल जाते हैं। उनकी मांग है की इस बरसाती नाले की पक्की मरम्मत की जाए तांकि वो चैन से सो सकें।
ग्रामीणों के इस दर्द को दूर करने के लिए उठाए गए कदम को जानने के लिए जब हम प्रशासन के पास पहुंचे तो उन्होंने हमें बताया की इस गाँव के विस्थापन की कार्यवाही लम्बे समय से चल रही है। इन्हें दो विकल्प दिए गए हैं। इसमें 20 नाली गेठिया तो 30 नाली बेलुवाखान में दी जानी थी लेकिन इन पीड़ितों ने पर्वतीय क्षेत्र छोड़कर मैदानी क्षेत्रों में विस्थापन की मांग की है।
जिलाधिकारी ने बताया की एस.डी.एम.को ग्रामीणों के साथ फिर से बैठकर उन दो प्रस्तावित स्थानों में जाने पर चर्चा करने को कहा गया है। साथ में निर्देश दिए हैं कि बरसातों के दौरान उन्हें समीप्वर्तीय गेठिया गाँव के सरकारी स्कूल में विस्थापित कर दिया जाए। उन्होंने ये भी कहा की भूकटाव रोकने के लिए सरकार अपने भूगर्भ वैज्ञानिकों से परिक्षण करवाएगी।