उत्तराखंड की पावन भूमि में प्राचीन काल से ही मेलों का आयोजन होता रहा है, खासतौर पर रवाईं की संस्कृति की अपने आप में आज भी एक अलग पहचान है। रवाईं के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित मंदिरों का इस क्षेत्र के अतीत से सम्बन्ध है।
रवाईं के प्रमुख मंदिर जैसे यमुना का मायका यमुनोत्री, जमदग्नि ऋषि तपोस्थली थान गाओं, मां रेणुका मंदिर सरनौल, राजा रघुनाथ मंदिर पुजेली-गैर (बनाल), रुद्रेश्वर महादेव देवराणा, मां भद्रकाली मंदिर मोल्डा-पौंटी, बौखनाग देवता मंदिर, सूर्य मंदिर मन्जेली, शिकारु नाग पुजेली (खलाड़ी), कपिल मुनि मंदिर गुंडियातगांव, ओडारु-जखंडी पुजेली (कुमोला), कमलेश्वर महादेव मंदिर, महासू देवता मंदिर ठडियार, सड़कुड़िया महासू मंदिर दोनी, पोखु महाराज मंदिर नैटवाड़, कर्ण महाराज देवरा, सोमेश्वर महाराज पंचगईं, टटेश्वर महाराज मंदिर आदि हैं।
आस्था और विश्वास का केंद्र है मंदिर
नौगांव ब्लॉक के गैर (बनाल) गांव में मंगशीर अमावस्या के दिन प्रतिवर्ष यह रात्रि मेला बनाल पट्टी के लोगो द्वारा बड़ी श्रद्धा भक्ति के साथ मनाया जाता है। इसमें बनाल के प्रत्येक गांव के लोग विशाल जनसमूह के साथ मशाल (ओला) जलाकर ढोल बाजों के साथ नाचते-गाते मंदिर पहुंचते हैं, जहां गैर के ब्राह्मणों द्वारा देवलांग (देवदार का बड़ा बृक्ष छिलकों के साथ) का पूजन किया जाता है। उसके बाद लोग देवलांग को खड़ा करके आग लगाते हैं। देवलांग के अतिरिक्त बनाल के पुजेली में शिवरात्रि एवं गैर में भादव का मेला भी प्रसिद्ध है।
नाग पंचमी मेला- कुपड़ा गीठ
ये मेला सावन महीने में नाग पंचमी के शुभ मुहूर्त पर हर साल हर्षोल्लास के साथ कुपड़ा गांव में मनाया जाता है। आज के दिन नाग देवता को दूध से स्नान कराया जाता है और लोग दूध और मक्खन की होली भी खेलते हैं। पुरे क्षेत्र के लोग बड़ी संख्या में आकर इस पावन मेले की एक झलक देखने के लिए एवं नाग देवता का आशीर्वाद पाने के लिए एकत्र होते हैं। बाहर से आये हुए अथितियों का बड़े सम्मान से आदर सत्कार किया जाता है।
पाली गांव की अथड
ये मेला भादों महीने में पाली गांव में समेश्वर देवता के सानिध्य में मनाया जाता है। इस मेले में डांडो से कुठार (गीठ) गांव की 150-200 भेड़ और खाडू एकत्र होते हैं, जो कि जंगल के किसी चिन्हित स्थान से जाख समेश्वर की पालकी के पीछे-पीछे उनके अदृश्य चमत्कार (मान्यता के अनुसार) के कारण पाली गांव की मंदिर परिसर तक आती हैं फिर उसके बाद मंदिर प्रांगण के चारों और सात चक्कर लगाती हैं बिना किसी के मार्गदर्शन के जो की वहां पहुंचे लोगों के लिए एक विलक्षण अनुभूति होती है। ये त्योहार हर तीसरे वर्ष मनाया जाता है और पूरे क्षेत्र के लोग इस पावन घड़ी के शाक्षी बनते हैं।
सरनौल का मेला
सरनौल में रेणुका मां का मेला 21-22 गते जेठ को प्रति वर्ष बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मेले के दिन घर-घर देवी मां की डोली गाजे बाजे के साथ जाती है। यह मेला एक वर्ष गांव की थाती में और दूसरे वर्ष मंदिर प्रागण में होता है। 21 गते को छोटी जातर जोकि चपटाडी गांव के पास धार देवरा के मंदिर में होता है और 22 गते को बड़ा मेला सरनौल में होता है।
बाबा बौख नाग जेठ मेला
जेठ महीने में बड़कोट पट्टी से लेकर मुंगरसंती के बिंगसी, कफनौल आदि गांव में बाबा बौख नाग की पालकी के साथ अलग-अलग दिनों अलग-अलग गांवों (भाटिया, कंसेरु, कृष्णा, बड़कोट आदि) में इन मेलो का आयोजन होता है।
देवराना मेला
नौगांव ब्लॉक के डांडा देवराणा में आषाढ़ पूर्णिमा के दूसरे दिन प्रतिवर्ष रुद्रेश्वर महादेव का भव्य मेला होता है। इस मेले में मुंगरसंती के एवं दूर दूर से हजारो की संख्या में लोग आते हैं।
मोल्टाडी मेला
रवाईं घाटी के सारे मेले इस मेले के बाद प्रारम्भ होते हैं, यह मेला चार गते वैशाख को ओडारु-जखंडी (रघुनाथ) की डोलियों के साथ पुरोला के मोल्टाडी गांव में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।
सावन के रामासिराईं के मेले
रामासिराईं और कमल सिराईं के गांवो में सावन के महीने में चार देवताओं (कपिल मुनि, खंडासुरी, ओडारु,जखंडी) की डोली के साथ ये मेले बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते हैं। प्रथम मेला 20 गते सावन को छाड़ा गांव में, 21 गते को रामा गांव में, 22 गते को पोरा गांव में, 24 गते को कंडियाल गांव में, 28 गते को डिकालगांव में एवं 26 गते को सबसे बड़ा मेला गुंडियाट गांव में लगता है। इन मेलों में रासो तांदी नृत्य एवं अंत में कफवा लगता है।
हनोल ठडियार दोनी जागरे
भादव की चौथ (लगभग चार-पांच सितम्बर) से जागरे शुरू हो जाते हैं, पहले खरसाड़ी (मोरी), ठडियार और हनोल में जागरा होता है। इन जाग्रो में सबसे ज्यादा भीड़ हनोल एवं ठडियार में होती है, शाम चार बजे देवताओं को प्रागण में निकाला जाता है। शाम से ही भीड़ जुटती चली जाती है, रात होते होते यहां जनसैलाब इकठा हो जाता है। रातभर भजन-कीर्तन, पूजा-पाठ एवं सुबह तक तांदी गीत और महासू देवता के गुणगान होते रहते हैं। इन सबके अतिरिक्त डख्यातगोव, पौंटी, थान मेला आदि प्रसिद्ध मेले हैं।