बढ़ी दाढ़ी, और ढीले लिबास के बीच, चौहान किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करते हैं। ऐसा लगता है वो अपनी ग़लतियों के लिये माफ़ी पाने की कोशिश कर रहे हैं।
शुरुआत में में चौहान ने जिन तीन लोगों के परिवार को पीछे छोड़ा था, उसने उन्हें ढूँढने की पूरी कोशिश की। चौहान के हिमाचल में देखे जाने की ख़बरों के बीच उनके परिवार ने पुलिस में उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज कराई। लेकिन, सभी उम्मीदों के बावजूद उनके परिवार को केवल निराशा ही हाथ लगी।
पहाड़ों पर, पहाड़ जैसा जीवन जीने को मजबूर चौहान की पत्नी ने हिम्मत नहीं हारी और मेहनत कर अपना और अपने परिवार का पेट पालती रही। वो चौहान को शायद भूल गये लेकिन, माफ़ नहीं कर सके, और, अपने भविष्य को अपनाकर जीवन जीने लगे। जेस्तवाड़ी गाँव में रह कर परिवार अपने जीवन को नई दिशा देने में लग गया।
लेकिन, इतने सालों बाद कोरोना ने सब कुछ बदल दिया।
हज़ारों की तादाद में प्रवासियों के राज्य वापस आने के सिलसिले के शुरू होते ही, चिन्यालिसौंड़ में तहसीलदार वीरेंद्र सिंह रावत को फ़ोन पर हिमाचल से जानकारी मिली कि, एक बुजुर्ग, जेस्तवाड़ी गाँव और घारसू के बारे में बड़बड़ा रहा है।
इसके चलते, वीरेंद्र सिंह ने जेस्तवाड़ी गाँव के प्रधान, अजयपाल चौहान से संपर्क कर सूरत सिंह चौहान के बारे में जानकारी पाने की कोशिश की। इसे विडंबना ही कहेंगे कि, चौहान, गाँव के प्रधान अजयपाल चौहान के वही दादा निकले जिन्हें उन्होने कभी नहीं देखा था और उनका परिवार कई सालो पहले भुला चुका था।
16 मई को सूरत सिंह चौहान ने कई दशको बाद अपने गाँव का रुख़ किया। तब से वो गांव के प्राइमरी स्कूल में 14 दिनों के क्वारंटाइन में हैं। चौहान की पत्नी बुगना देवी का कहना है कि उनका चौहान से कोई सरोकार नहीं है। वहीं, चौहान के पोते अपने दादा को माफ़ कर खोये हुये समय को ज़्यादा से ज़्यादा जीना चाहते हैं।
इस हफ़्ते के अंत में सूरत सिंह चौहान 400 मीटर का फ़ासला तय कर अपने उस घर को पहुँचेंगे जिसे उन्होंने 60 साल पहले छोड़ दिया था।