ऋषिकेश, ना कोई औद्योगिक इकाई फिर भी प्रदूषण की स्थिति चितांजनक! जी हां तीर्थ नगरी ऋषिकेश में हवा काफी प्रदूषित है। प्रदूषण के मामले में हर गुजरते वर्ष के साथ स्थिति बिगड़ती जा रही है।
बड़ी गगनचुंबी अट्टालिकाओं के बीच खुशनुमा आबो हवा के लिए देश ही नही दुनियाभर में विख्यात योग की अंर्तराष्ट्रीय राजधानी ऋषिकेश शहर का एक नया चेहरा दिखाई देना शुरू हो गया है। दूषित हवाएं लोगों का दम फुला रही हैं। जिसे लेकर पर्यावरण विधि चिंतित है।यह स्थिति तब है जब यहां वर्ष भर पौधरोपण कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।जानकर मानते हैं कि पौधों की सही देखभाल न होने से स्थिति में जो सुधार दिखना चाहिए वो नही दिख पा रहा।
पर्यावरण विद् विनोद जुगलान की मानें तो तेजी से कंक्रीट के जंगल के रूप में तब्दील होती जा रही देवभूमि मे चौतरफा हो रहे निर्माण और वाहनों की रेलमपेल के बड़ने से हालात बदतर हुए हैं।जल्द ही इसपर यदि ध्यान न दिया गया तो दिल्ली दूर नही है।यहां भी लोगों के लिए हालात मुश्किल हो जायेंगे, जिसकी धीमे ही सही मगर शुरुआत होनी शुरू हो गई है।
बढ़ रहे हैं सांस संबंधी रोग
चर्म रोग विषेशज्ञ डा. मुकेश पाण्डेय का कहना था कि लगातार प्रदूषित हवा में सांस लेना बाशिंदों की सेहत पर भारी पड़ रहा है। बुजुर्गो, वयस्कों के साथ-साथ स्कूली बच्चों की सेहत भी दांव पर है। अस्थमा, ब्रांकाइटिस, एलर्जिक राइनाइटिस जैसी दिक्कतों में इजाफा हो रहा है। केवल सांस से जुड़ी समस्याएं ही नहीं चर्म रोग भी बढ़ रहे हैं।
खुद भी लें जिम्मेदारी: धर्म नगरी में बढ़ते प्रदूषण का सबसे ज्यादा प्रभाव शहर के वाशिंदों पर पड़ता है। कारण यह है कि उन्हें ऐसे वातावरण में 24 घंटे रहना होता है। इसलिए अपने इलाके के प्रदूषण को कम करने के लिए पहल उन्हें ही करनी होगी। सड़कों व बाजारों में वाहन आड़े-तिरछे न खड़े करें। इससे जाम की स्थिति पैदा होती है। जाम को वायु प्रदूषण के लिए मुख्य वजह माना गया है। संभव हो तो हर घर के सामने पेड़ लगाएं। पार्को को हरा-भरा रखें। कूड़ा जलाने वालों को उससे होने वाले नुकसान के बारे में बताये ताकि प्रदूषण को कम किया जा सके।