अंधेरे गलियारों में ज्ञान की रोशनी बिखेर रहा ”रूम टू रीड” अभियान

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    देहरादून। कुसुमा देवी (35) ने पहली बार अपना नाम लिखा तो आंखें नम हो गईं। उन्होंने अपनी 10 वर्षीया शिक्षक व बेटी अंजू को गले लगा लिया। अंजू रूम टू रीड अभियान से जुड़े प्राथमिक विद्यालय ननूरखेड़ा में कक्षा तीन की छात्रा है। यह संस्था शिक्षा विभाग से अनुबंध के तहत प्रदेश के तीन जनपदों में अब तक 764 पुस्तकालय स्थापित कर चुकी है।

    रूम टू रीड ने विश्वभर में 20,000 पुस्तकालयों का निर्माण पूरा किया है। इस उपलब्धि का जश्न मनाने के लिए संस्था ने प्राथमिक विद्यालय ननूरखेड़ा में प्राथमिक विद्यालय ननूरखेड़ा में मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं सह-संस्थापक एरिन गंजू व कंट्री डायरेक्टर सौरव बैनर्जी की अगुवाई में एक समारोह का आयोजन किया। जिसमें विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। बच्चों के बीच वह भी बच्चे बन गए और उनका उत्साह देख गदगद दिखाई दिए। उन्होंने शिक्षक-छात्रों से फीडबैक किया। हर किसी ने स्कूल लाइब्रेरी में एक नई किताब दी।
    दरअसल अंजू की मां कुसुमा देवी और पिता रामचंद्रन पासवान दिहाड़ी मजदूर और दोनों ही अशिक्षित हैं। स्कूल द्वारा की गई पहल और मौजूदा संसाधनों ने इस परिवार के बीच शिक्षा की अलख जगाई। उस पर स्कूल लाइब्रेरी और पढऩे की ललक ने सदियों पुरानी एक परंपरा को तोडऩे में अहम भूमिका निभाई।
    रूम टू रीड की चीफ डेवलपमेंट व कम्यूनिकेशन ऑफिसर गीता मुरली कहती हैं कि शुरुआत हमेशा मुश्किल होती है, विशेषकर एक ऐसे देश में जहां स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। पुस्तकालयों में पढऩे की आदत को विकसित करने के लिए बच्चों को अतिरिक्त ध्यान देने के लिए शिक्षकों को समझना मुश्किल काम है। हालांकि, अनुभव बताता है कि बदलाव सबसे बड़ा प्रेरक है। यदि कोई बच्चा जानता है कि कैसे पढऩा और लिखना है, तो वह स्वयं अध्ययन करता है और तब उस पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता नहीं पड़ती। उन्होंने बताया कि संस्था स्कूलों में पुस्तकालय स्थापित करने में सहायता करती है। यह भी देखा जाता है कि क्या छात्र वास्तव में किताबें पढ़ रहे हैं। विद्यार्थियों की पठन क्षमताओं का परीक्षण भी समय-समय पर किया जाता है।