विकासनगर। रुद्रप्रयाग जनपद के दशज्यूला कांडई क्षेत्र अंतर्गत क्वीली-कुरझण गांव में अगले वर्ष अगस्त माह में होने वाले नंदा देवी मेले, जिसे स्थानीय भाषा में नंदा पाती या पातविड़ा कहा जाता है, के लिए रविवार को देहरादून जनपद में बसे प्रवासी ग्रामीणों ने बैठक कर आयोजन को सफल बनाने पर चर्चा की। प्रगति विहार में आयोजित इस बैठक में प्रवासी ग्रामीणों ने नंदा देवी से जुड़े जागर व धार्मिक गीतों के संरक्षण के लिए उचित प्रयास किए जाने पर भी मंथन किया गया।
प्रवासी ग्रामीणों की भ्रातृ मिलन समिति के अध्यक्ष सुभाष पुरोहित ने बताया कि प्रत्येक बारह साल बाद रुद्रप्रयाग जनपद के क्वीली कुरझण गांव में नंदा पाती का आयोजन किया जाता है। बताया कि गांव के ग्रामीण नंदा को अपनी बेटी (धियाण) मानते हैं। लिहाजा पाती मेले के तहत ग्रामीण हिमालय से नंदा को बुलाकर बारह दिनो तक उसकी पूजा अर्चना करते हैं। बारहवें दिन नंदाष्टमी के दिन देवी को विदा किया जाता है। इन बारह दिनों तक नंदा के जागर गाकर उसका आहवाहन होता है।
बताया कि नंदा देवी समूचे गढ़वाल और हिमालय के अन्य भागों में जन सामान्य की लोकप्रिय देवी हैं। भगवती की छह अंगभूता देवियों में नंदा भी एक है। नंदा को नव दुर्गाओं में से भी एक बताया गया है। भविष्य पुराण में जिन दुर्गाओं का उल्लेख है उनमें महालक्ष्मी, नंदा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूँडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं। शक्ति के रूप में नन्दा ही सारे हिमालय में पूजित हैं। नंदा के इस शक्ति रूप की पूजा गढ़वाल के अधिकांश क्षेत्रों में की जाती है। इस दौरान राजेंद्र पुरोहित भूपेश पुरोहित, अरविंद पुरोहित, शिवप्रसाद पुरोहित, विष्णुत्त पुरोहित, प्रकाश पांडेय, मगनानंद पुरोहित, रेवतीनंद पुरोहित, अदिति पुरोहित, आदित्य पुरोहित आदि मौजूद रहे।
डाली कौथिग होता है मुख्य आयोजन
रुद्रप्रयाग जनपद के दशज्यूला क्षेत्र के क्वीली कुरझण गांव में मनाए जाने वाले नंदा देवी पाती पर्व के तहत बारह दिनों तक नंदा के प्रतीक स्वरूप पेड़ की शाखा पर फल लगाकर उसकी पूजा की जाती है। इसे डाली कौथिग कहा जाता है। नंदाष्टमी को देवी का पश्वा, जिस पर देवी अवतरित होती है, फलों का श्रद्धालुओं में वितरित कर देता है। साथ ही पेड़ की शाखा को विसर्जित कर उसका कैलास प्रवास मान लिया जाता है