साढ़े तीन माह में सात बाघों को निगल गया काल

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रामनगर-रामनगर वन प्रभाग के देचौरी रेंज में एक बाघिन की संदिग्ध हालात में मौत हो गई। उसका सड़ा-गला शव नाले में पड़ा मिला। शव सड़ने की वजह से वनाधिकारी उसकी उम्र के बारे में कोई अनुमान नहीं लगा पाए। दूरस्थ क्षेत्र होने व देर होने की वजह से उसका पोस्टमार्टम भी नहीं हो पाया। इससे पूर्व इसी साल 19 जनवरी को इसी रेंज में एक बाघ का शव मिला था।

देचौरी रेंज में वनकर्मी गश्त पर थे। इस बीच सांदनी बीट कंपार्टमेंट नंबर चार में उनको नाले में बाघिन का शव दिखा तो विभागीय अधिकारियों को जानकारी दी। इस पर डीएफओ नेहा वर्मा घटनास्थल पर पहुंचीं। इस दौरान आसपास के क्षेत्र में वनकर्मियों द्वारा छानबीन भी की गई।

मौके पर आपसी संघर्ष के निशान भी नहीं पाए गए। बाघिन का शव पानी में फूल गया था। वनाधिकारी शव को पांच से छह दिन पुराना बता रहे हैं। डीएफओ ने बताया कि शव सड़ने की वजह से बाघिन की मौत की वजह पता नहीं चल पाई है। फिलहाल उसकी मौत को संदिग्ध माना जा रहा है। पोस्टमार्टम शनिवार को किया जाएगा।

एक तरफ बाघ संरक्षण के लंबे चौड़े दावे हो रहे हैं। भारत सरकार लाखों रुपये का बजट भी बाघ सुरक्षा पर खर्च कर रही है। बावजूद इसके धरातल पर स्थिति इसके विपरीत है। केवल कॉर्बेट लैंडस्केप में साढ़े तीन माह में सात बाघों की मौत हो गई।

भले ही कॉर्बेट लैंडस्केप में बाघों की तादाद सुखद मानी जाती हो लेकिन जिस तरह से उनकी मौत के मामले लगातार सामने आ रहे हैं उससे बाघ सुरक्षा के दावों पर सवालिया निशान लग रहे हैं। बाघों की मौत की वजह से भले ही वनाधिकारी आपसी संघर्ष बताते आए हैं लेकिन इस पर भी चिंतन नहीं हो रहा कि आखिर बाघों के बीच आपसी संघर्ष की असल वजह क्या है।

कॉर्बेट लैंडस्केप में बाघों की संख्या अच्छी-खासी है, लेकिन विभागीय आंकड़े बताते हैं कि पहले इस तरह आपसी संघर्ष में लगातार बाघों की मौत नहीं हुई। साढ़े तीन माह में ही सात बाघ अब तक मारे जा चुके हैं। यानी हर माह दो बाघों की मौत हो रही है।