(लॉस एंजेल्स) अफ़ग़ानिस्तान के हेलमंड में अफ़ीम/हेरोइन की खेती में जब से सोलर ऊर्जा का उपयोग शुरू हुआ है, अफ़ीम की ‘पोपी’ की पैदावार देश के रेगिस्तानी इलाक़ों में भी ख़ूब लहलहाने लगी है। इसके साथ अफ़ीम पोपी से हीरोईन की खपत और खेती के आकार और पैदावार, दोनों ही पिछले छह-सात वर्षों में दोगुनी हो गई है। अफ़ीम की खेती में लगे जो लोग हीरोईन के कारोबार में लगे थे और कालांतर में तालिबानी आतंक से सुरक्षित स्थानों पर चले गए थे, वे फिर हेलमंड में तालिबानी ‘सत्ता’ के ध्वज के नीचे आ गए है। सच यह है कि अफ़ीम/हेरोईन की जितनी तस्करी होती है और इसे निर्धारित मात्रा से अधिक मादक अथवा दर्द निवारक औषध के रूप में सेवन किया जाता है, उससे सिर्फ़ अमेरिका में प्रतिवर्ष क़रीब एक लाख लोगों की जानें जाती हैं, जबकि इतनी ही महिलाएं कुख्यात मानव तस्करी की शिकार हो जाती हैं।
‘पेरिस क्लाइमेट चेंज’ की बात चली, तो दुनिया भर में सौर ऊर्जा के इस्तेमाल के प्रयोग होने लगे। अफ़ग़ानिस्तान में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल अफ़ीम की खेती में किया गया। सिंचाई के लिए पानी के अभाव को देखते हुए हेलमंड में अफ़ीम के बड़े-बड़े खेतों के बीच सौर ऊर्जा के पैनल लगाए गए। नलकूप बनाए गए और सौर ऊर्जा से पानी की निकासी कर सिंचाई की जाने लगी। इसका इतना असर हुआ कि अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ीम की पोपी की पैदावार 3700 टन से बढ़ कर सात सालों में 9,000 टन हो गई। यह चमत्कार था। इससे अवैध व्यापार में तो अभिवृद्धि हुई, जो आतंकवादी तालिबान की आय का एक मुख्य स्त्रोत बन गया। इसी से तालिबान हथियारों की ख़रीद फ़रोख़्त करता रहा है। मौजूदा आँकड़ों के अनुसार अफ़ीम की खेती काबुल क्षेत्र (484 हेक्टेयर), कंधार 23410 हेक्टेयर और हेलमंड 36,798 हेक्टेयर में होती है। हेलमंड एकमात्र ऐसा प्रांत है, जहाँ तीन चौथाई पैदावार होती है, जिसकी वजह से दुनिया में इसे हेरोईन राजधानी के रूप में कहा जाने लगा है। यों दुनिया में भी अफ़ीम/ हेरोईन तीन चौथाई से ज़्यादा अफ़ग़ानिस्तान में होती है। एक दवा के रूप में प्रयुक्त होने वाली हेरोईन की भौगोलिक आधार पर एक ग्राम की क़ीमत पाँच से दस डालर बताई जाती है, जबकि अवैध मार्केट में इसकी क़ीमत कई गुना बताई जाती है।
बीबीसी की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार बारिश पर निर्भर अफ़ीम की खेती के लिए जब से सोलर ऊर्जा का उपयोग हुआ, ऐन हेलमंड के खेतों में पानी की कोई कमी नहीं रह गई है। हेलमंड में खेतों के बीच सौर ऊर्जा के पैनल लगाए गए हैं। इस से ऊर्जा तैयार की जाती है और नलकूप से पानी की निकासी कर सिंचाई की जाती है। सर्वप्रथम सौर ऊर्जा का प्रयोग सन 2012-2013 में हुआ था, लेकिन एक बार इस प्रोधोगिकी की सफलता पर ध्यान गया तो आज अफ़ग़ानिस्तान के विभिन्न रेगिस्तानी इलाक़ों में अफ़ीम तथा अन्यान्य फ़सलों के लिए सौर ऊर्जा का भरपूर उपयोग किया जाने लगा है। इससे सौर ऊर्जा पैनल के दामों में भारी गिरावट हुई है। अफ़ीम की खेती क़रीब तीन दशक से हो रही है। इसे तालिबान की आय का एक मुख्य स्त्रोत बताया जाता है। अमेरिकी और नाटो सेनाओं के अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान पर अंकुश लगाने के बाद अफ़ीम की खेती को बीच-बीच में क्षति पहुँचाई गई, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह बदस्तूर फल-फूल रही है।
सौर ऊर्जा से पर्यावरणविद जितने प्रसन्न थे, उन्हें इस सौर ऊर्जा से जल की सतत निकासी से भूतल में पानी की कमी से चिंता भी होने लगी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जल निकासी से भू-तल जल प्रतिवर्ष तीनमीटर नीचे जा रहा है। अफ़ग़ानिस्तान रिसर्च एंड एवोल्यूशन यूनिट की मुखिया ओरजला नेमत के हवाले से कहा गया है कि इसी तरह नलकूप से जल की निकासी होती रही तो, अगले दस वर्षों में भू-तल का जल समाप्त हो जाएगा। इससे जनजीवन प्रभावित होगा और क्षेत्र के पंद्रह लाख लोगों को मजबूरन हेलमंड छोड़ कर अन्यत्र जाना पड़ सकता है।