बेटियों के साथ बेटों को भी सिखाएं दुनियादारी: शबाना

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जयपुर,  प्रख्यात अभिनेत्री शबाना आजमी का कहना है कि आज के माता-पिता को बेटी से ज्यादा बेटों को दुनियादारी सिखाने और समझाने की जरुरत है, तभी लड़के महिलाओं से अच्छा व्यवहार कर पाएंगे। उनका कहना था कि आप अपने बच्चों पर अपना निर्णय थोपने के बजाय उनके निर्णयों का सम्मान करें।

शबाना आजमी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन सत्र ‘टू अब्बा विद लव’ में लेखिका रक्षंधा जलील के साथ बातचीत कर रहीं थीं। अपने अब्बा ख्यातनाम शायर कैफी आजमी को याद करते हुए उन्होंने कहा कि कैफी आजमी से जब एक दिन उन्होंने पूछा कि मैं एक्ट्रेस बनाना चाहती हूं, क्या आप मेरा साथ देंगे? तो कैफी ने कहा था कि तुम मोची बनना चाहोगी तो भी मैं तुम्हारा साथ दूंगा। बस शर्त इतनी-सी है कि दुनिया की सबसे अच्छी मोची बनना।

अपने बचपन को याद करते हुए शबाना आजमी ने बताया कि मेरे पिता कम्युनिस्ट थे और हम एक कम्यून में रहा करते थे, जहां आठ और परिवार रहते थे। एक सच्ची गंगा-जमुनी तहजीब वहां नजर आती थी। अली सरदार जाफरी का परिवार भी हमारे साथ रहता था। पैसे की बहुत कमी थी, लेकिन मजा भरपूर था। उन्होंने बताया कि हमारे परिवार में शाम को अक्सर शायरी की महफिल सजती थी और नामचीन शायर उसमें आया करते थे। मैं भी उनके बीच बैठती थी तो शायरी की समझ और प्यार वहीं से मुझे मिला।

अपने पिता कैफी और मां शौकत आजमी की प्रेम कहानी का जिक्र करते हुए शबाना आजमी ने बताया कि प्रोग्रेसिव लेखकों के सम्मेलन के मुशायरे में कैफी साहब ने उनकी प्रसिद्ध नज्म औरत सुनाई थी। मेरी मां ने उस नज्म को सुनकर फैसला कर लिया था कि कैफी से ही विवाह करेंगी। दोनों की प्रेम कहानी आगे बढ़ी। कैफी साहब ने मेरी मां को खून से खत लिखा था। उन्होंने कहा कि दोनों में गजब की मुहब्बत और आपसी समझ थी और यही कारण था कि वे एक दूसरे के काम का सम्मान करते थे।

शबाना आजमी ने बताया कि वर्ष 2019 कैफी आजमी का जन्म शताब्दी वर्ष है और हम कैफी साहब की याद में कई कार्यक्रम कर रहे हैं। जावेद अख्तर ने उन पर आधारित एक नाटक ‘कैफी और मै’ लिखा है। इसके शो कर रहे हैं। इसके अलावा एक पैन फेस्टिवल भी आयोजित किया जा रहा है, क्योंकि कैफी आजमी को पैन बहुत पसंद थे। वे मां ब्लांक से पैन से लिखा करते थे और इन्हें बड़ा सहेज कर रखते थे। शबाना ने कहा कि आज प्रोग्रेसिव लेखक आंदोलन को आगे बढ़ाने की बहुत जरूरत है, क्योंकि आज के दौर में बाजार ही सबकुछ तय कर रहा है और मार्केट रेवोलेशन नहीं आइडिये काे खत्म करता है। इस मौके पर कैफी आजमी की शायरी के अंग्रेजी अनुवाद की एक किताब का लोकार्पण भी किया गया।