नई दिल्ली। रेल मंत्रालय ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 69वें जन्मदिन के मौके पर घोषणा की कि जल्द ही सभी रेलगाड़ियों में दिव्यांग यात्रियों की सुविधा के लिए विशेष रूप से तैयार एक कोच लगाया जाएगा।
दिव्यांग विशेष डिब्बों में व्हीलचेयर के प्रवेश के लिए व्यवस्था होगी साथ ही ट्रेन के दरवाजों को उसी के अनुरूप थोड़ा चौड़ा बनाया जाएगा। इन डिब्बों के प्रवेश द्वार से लेकर बैठने तक की व्यवस्था विशेष रूप से ‘दिव्यांगजन’ की सुविधा के लिए डिजाइन की जाएगी। यहां तक कि दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सामान रखने की अलग व्यवस्था और उनके अनुकूल टॉयलेट सीट की भी व्यवस्था की जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विकलांग व्यक्तियों को ‘दिव्यांग’ (दिव्य शरीर) के रूप में संबोधित करने के सुझाव के लगभग तीन साल बाद भारतीय रेलवे का यह फैसला आया है। मंत्रालय ने कहा कि अब तक रेलवे के डिब्बों में विशेष जरूरतों वाले व्यक्तियों के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी, जिससे इन लोगों को काफी परेशानी होती थी। इसलिए, इस मुद्दे को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक ट्रेन में अलग-अलग ‘दिव्यांग’ कोचों को शामिल करने का विशेष ध्यान रखा जा रहा है, ताकि आबादी का एक हिस्सा इससे अछूता न रह जाए।
रेलवे बोर्ड के सदस्य (रोलिंग स्टॉक) राजेश अग्रवाल ने रेलगाड़ियों में दिव्यांग अनुकूल कोच लगाये जाने को एक बड़ा बदलाव बताते हुए कहा कि नए एसएलआरडी कोच को दस माह से भी कम समय में तैयार किया गया है। जर्मन तकनीक वाले लिंके होफमैन बुश (एलएचबी) कोचों में दो दशक के बाद दिव्यांग सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
आमतौर पर रेलगाड़ियों में वातानुकूलन, बिजली, पंखे, चार्जिंग प्वाइंट्स और रसोई यान में लगने वाली बिजली, जिसे सामूहिक रूप से “होटल लोड” कहा जाता है। इसके लिए बिजली की आपूर्ति करने के लिए प्रत्येक रेलगाड़ी में दो डीजल जरनेटर बोगी लगी होती हैं। इसे ‘एंड ऑन जरनेशन’ (ईओजी) प्रौद्योगिकी कहा जाता है। वहीं रेलवे ने अब दुनियाभर में हरित प्रौद्योगिकी के रूप में प्रचलित ‘हेड ऑन जेनरेशन’ (एचओजी) प्रौद्योगिकी को अपनाया है। इसमें रेलगाड़ियों के ऊपर से जाने वाली बिजली की तारों से ही डिब्बों में विद्युत आपूर्ति की जाती है।
इस प्रणाली में रेलगाड़ी के होटल लोड के लिए पावर कार की बजाय बिजली की आपूर्ति विद्युत लोकोमोटिव से की जाती है। इंजन के पेन्टोग्राफ से विद्युत करंट को टैप करके पहले ट्रांसफार्मर को भेजा जाता है और फिर डिब्बों की विद्युत आवश्यकताओं के लिए 750 वोल्ट, 3-फेज 50 हर्ट्ज में परिवर्तित किया जाता है।
रेल मंत्रालय अब तक 13 राजधानी, 14 शताब्दी, 11 दुरंतो, 6 संपर्क क्रांति, 16 हमसफर और 282 अन्य मेल व एक्सप्रेस सहित कुल 342 रेलगाड़ियों में यह सुविधा अपनाई है। इससे ट्रेन में लगने वाले दो पावर कार के बजाय केवल एक पावर कार लगेगा। इससे ट्रेन के स्टेशन पर पहुंचने पर यात्रियों को पावर कार से होने वाले ध्वनि प्रदूषण से भी राहत मिलेगी।
ऐसे में ट्रेन के अंत में लगने वाले पावर कार (इंजनयान) के स्थान पर एसएलआरडी कोच लगाया जाएगा। इन डिब्बों को वातानुकूलित और गैर-वातानुकूलित रूप में तैयार किया जाएगा। इससे प्रत्येक ट्रेन में लगभग 40 सीटें बढ़ जाएंगी।