स्टिंग प्रकरण: सीएम के भाई, भतीजे व एसीएस तक का स्टिंग

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स्टिंग की आड़ में ब्लैकमेलिंग का ऐसा चक्रव्यूह रचा जा रहा था कि सामने वाले को मालूम ही नहीं चलता था कि वह खुद शिकार हो चुका है। समाचार प्लस चैनल के सीईओ उमेश जे कुमार की गिरफ्तारी के बाद स्टिंग कांड के सूत्रधार शिकायतकर्ता व चैनल का मुलाजिम आयुष गौड़ सोमवार को नाटकीय अंदाज में दून पहुंचा। मीडिया से मुखातिब आयुष ने मुकदमे में दर्ज आरोपों को दोहराया। कहा कि, उमेश जे कुमार कहते थे कि जिससे भी मिलो उसका स्टिंग कर लो, कभी भी काम आ सकता है। जब आयुष को उत्तराखंड में मुख्यमंत्री, वरिष्ठ नौकरशाहों और कुछ राजनेताओं के स्टिंग का जिम्मा सौंपा गया तो स्टिंग की चेन बनती गई। जिसमें सबसे पहले मृत्युंजय मिश्रा और फिर अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश का स्टिंग हुआ। इसके बाद दून में मुख्यमंत्री के भाई, भतीजे और उनके करीबी भाजपा नेता संजय गुप्ता का भी स्टिंग किया गया। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि इनमें सिर्फ एक ही स्टिंग (मृत्युंजय मिश्रा का) ऐसा बना, जिसकी क्लीपिंग उमेश को अपने मनमाफिक लगी, बाकी स्टिंगों के बारे में उसका कहना था कि इससे कोई फायद नहीं होने वाला।

उत्तरांचल प्रेस क्लब में बातचीत करते हुए आयुष गौड़ ने बताया कि इसी साल जनवरी में उमेश और चैनल के कुछ उच्च पदस्थ लोगों ने उन्हें यह बोलते हुए स्टिंग का जिम्मा दिया कि कुछ राजनेताओं और नौकरशाहों की वास्तविकता की जांच करनी है। उस दौरान दिल्ली चाणक्यपुरी में उत्तरांचल सदन में अपर स्थानिक आयुक्त मृत्युंजय मिश्रा के साथ पहली मुलाकात में तय हुआ कि चारधाम ऑलवेदर रोड टेंडर के लिए अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश से मुलाकात कराने की जिम्मेदारी मृत्युंजय की होगी। दावा किया कि उमेश इस मुलाकात के बदले ओमप्रकाश को पेशगी के 10 लाख रुपये देकर स्टिंग कराना चाह रहा था, लेकिन जब मुलाकात हुई तो अपर मुख्य सचिव ने टेंडर तय प्रक्रिया के तहत देने की बात कही। लेनदेन जैसी कोई बात नहीं होने से उमेश ने फिर स्टिंग का प्लान बनाया।

इस बार मृत्युंजय ने कहा कि ‘दस लाख रुपये पहले मुझे सौंपो तब होगी मुलाकात।Ó उमेश रकम मृत्युंजय के बजाए अपर मुख्य सचिव, मुख्य सचिव या मुख्यमंत्री के हाथ में देकर स्टिंग करना चाहता था। इसलिए उसने मृत्युंजय के दस लाख रुपये मांगने का स्टिंग कर लिया था। इसके बाद अप्रैल में उमेश ने आयुष गौड़ को दून बुलाया और परिचित राहुल भाटिया से मिलाया। आयुष ने राहुल का भी स्टिंग बना लिया। राहुल ने मुख्यमंत्री के करीबी भाजपा नेता होटल व्यवसायी संजय गुप्ता से मिलाया और संजय ने मुख्यमंत्री के घर सीधे एंट्री रखने वाले कासिम से। दावा है कि कासिम ने मुख्यमंत्री के भाई (जिनका नाम बिल्लू बताया गया) व एक भतीजे से मिलवाया। इसके बाद उनकी मुलाकात मुख्यमंत्री से हुई। मुख्यमंत्री को छोड़कर आयुष ने सभी का स्टिंग बनाया। सीएम के निजी व सरकारी घर में तीन बार की एंट्री।

आयुष के मुताबिक उसने मुख्यमंत्री के डिफेंस कालोनी स्थित निजी आवास और कैंट स्थित सरकारी आवास में तीन मर्तबा एंट्री की। डिफेंस कालोनी आवास पर दो बार गया जबकि कैंट आवास पर एक बार। निजी आवास पर उनके भाई बिल्लू व एक भतीजे का स्टिंग किया, मगर कैंट आवास पर मुख्यमंत्री का स्टिंग करने से आयुष ने इन्कार कर दिया। उसने कैमरे वाली जैकेट और मोबाइल बाहर ही छोड़ दिया।

स्टिंग के लिए थ्री-लेयर एसआइटी

चैनल में स्टिंग के लिए बाकायदा विशेष जांच टीम गठित थी। आयुष ने बताया कि थ्री-लेयर इस ‘गेम’ में पहली टीम राजनेता या नौकरशाहों को महंगे गिफ्ट देकर झांसे में लेती है। दूसरी टीम का काम इस झांसे में आए व्यक्ति को रुपये लेते हुए कैमरे में कैद करने का होता है और तीसरी टीम के जरिये संबंधित व्यक्ति से मोटी रकम वसूली की जाती है। तीसरी टीम के बारे में पहली दोनों टीमों को कोई भनक नहीं होती थी।

व्यवसायी बनकर मिला सबसे

अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश से आयुष गौड़ एक व्यवसायी बनकर मिला। चारधाम ऑलवेदर रोड के टेंडर पर बात की। इसके बाद देहरादून में वह जिससे भी मिला, उसे अपना परिचय होटल व्यवसायी के तौर पर दिया। उत्तराखंड में अलग-अलग शहरों में जमीन लेकर ऑलीशान होटल खोलने का हवाला देकर सबसे मुलाकात की गई।

संगठित गिरोह चला रहा था उमेश

आयुष के मुताबिक उमेश जे कुमार स्टिंग की आड़ में एक संगठित गिरोह चला रहा था। वह एक ही ध्येय लेकर चल रहा था कि यदि मुख्यमंत्री काबू में आ गए तो सब हाथ में होगा। फिर वह सरकार में जो चाहे वह काम करा लेगा। इसलिए उसने उससे कहा था कि मुख्यमंत्री का जो भी रिश्तेदार, सगे-संबंधी, दोस्त, करीबी मिले, उसे गुप्त कैमरे में कैद कर लो।

तुरंत वापस ले लेता था उपकरण

हर स्टिंग के बाद उमेश तुरंत आयुष से सभी उपकरण वापस ले लेता था। अप्रैल में मुख्यमंत्री के भाई और भतीजे का स्टिंग करने के बाद आयुष ने उमेश को बताया तो उमेश कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत के बेटे की शादी में नंदा की चौकी के समीप एक होटल में था। उमेश ने उसे वहीं बुला लिया और कुछ वरिष्ठ नौकरशाहों से बात कराई। हालांकि, वहां स्टिंग नहीं हो सका और उमेश ने उपकरण वापस ले लिए। इस दिन से पहले हर बार राहुल भाटिया उससे उपकरण ले लेता था।

लोकल टीम रखती थी नजर

आयुष ने दावा किया कि स्टिंग के वक्त चैनल की लोकल टीम उन पर नजर रखती थी। उमेश जे कुमार के ‘चहेते’ लोग इस टीम में रहते थे। यह टीम राजनेताओं और नौकरशाहों को गिफ्ट देकर झांसे में लाने का काम करती थी। डेढ़ माह तक नहीं मिली पीएमओ और सीएमओ से मदद।

आयुष ने बताया कि मुख्यमंत्री का स्टिंग न करने के बाद उमेश लगातार उसे धमकी दे रहा था। उसने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कार्यालय को पत्र भेजा मगर डेढ़ माह तक कोई मदद नहीं मिली। फिर किसी तरह वह पुलिस अधिकारियों से मिला व अगस्त में शिकायत दर्ज हुई।

अभी तो असली तस्वीर आनी है बाकी

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के स्टिंग के प्रयास के मामले में अभी पूरी तस्वीर साफ नहीं हुई है। इस मामले में स्थिति तभी स्पष्ट होगी, जब सरकार और नौकरशाह खुलकर अपनी बात रखने की हिम्मत जुटाएंगे। उमेश शर्मा का रुख तस्वीर का दूसरा पहलू बताएगा। इसके बाद ही प्रकरण की एक-एक परत खुलेगी और कई चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आएंगे। मुख्यमंत्री के स्टिंग के प्रयास को लेकर सामने आए इस प्रकरण पर अभी तक के घटनाक्रम पर नजर डालें तो कई सवाल ऐसे हैं जो अनुत्तरित हैं और जिनका जवाब जानने का प्रयास हर कोई कर रहा है। इनका जवाब या तो सरकार दे सकती है अथवा इनकी जद में आने वाले नौकरशाह अथवा आरोपित उमेश शर्मा। कारण यह कि सरकार, नौकरशाह और आरोपित मिलकर ही इस प्रकरण में अभी तक अधूरी नजर आ रही कड़ी को जोड़ कर पूरा कर सकते हैं। जनता के मन में इस समय जो सवाल सुलग रहे हैं वे ये हैं कि जब 10 अगस्त को मामले की तहरीर पुलिस को मिल चुकी थी तो पूरे दो माह से अधिक समय तक क्या हुआ। जाहिर है कि इसे यह माना जाए कि इन दो माह में सरकार व पुलिस ने मामले में पर्याप्त होमवर्क किया होगा। दूसरा सवाल यह कि जब दिल्ली में मुख्यमंत्री के स्टिंग का प्रयास व अपर मुख्य सचिव को कैमरे में कैद करने की बात अब सामने आ रही है, उसका जिक्र तहरीर में क्यों नहीं है। तीसरा सवाल यह कि आखिर वे कौन से राजनेता और अधिकारी हैं, जिनके कहने पर अथवा जिन्हें फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से स्टिंग का जाल बुना गया और जिनका जिक्र शिकायतकर्ता भी अभी करने से कतरा रहा है। एक और सवाल यह कि शिकायतकर्ता की मुख्यमंत्री आवास तक एंट्री किसने कराई। इसका जिक्र न तो तहरीर में है और नही शिकायतकर्ता ने दिया है। जिस तरह की बातें उठ रही हैं उससे साफ है कि आरोपितों के पास पिछली सरकारों और इनमें अहम पदों पर तैनात रहे अधिकारियों के स्टिंग भी हैं। अब सवाल यह कि क्या ये भी पुलिस के कब्जे में हैं। इस बारे में फिलहाल परदा डाला जा रहा है। ऐसे तमाम अन्य सवाल हैं जिनका जवाब मिलना अभी बाकी है। तो क्या मई में ही हो गई थी शिकायत शिकायतकर्ता आयुष गौड़ की मानें तो उसने मई में ही मुख्यमंत्री कार्यालय और प्रधानमंत्री कार्यालय को पूरे प्रकरण से अवगत कराने को पत्र लिखा था। एक माह तक उसे न प्रदेश और न ही केंद्र से कोई जवाब मिला। इसके बाद शिकायतकर्ता ने अपने संपर्क सूत्रों के जरिये पुलिस के आला अधिकारियों से मुलाकात की और पूरा तथ्य उनके सामने रखा। इसके बाद इस पर कार्रवाई हुई।

मुख्य सचिव (उत्पल कुमार सिंह) का कहना है कि स्टिंग का पूरा प्रकरण आपराधिक जांच का विषय है। यह जांच चल रही है। अब मामला कोर्ट में भी है। इस मामले पर सरकार नियमानुसार कार्यवाही करेगी।’

ओम प्रकाश (अपर मुख्य सचिव) का कहना है कि तीन दिनों से सुप्रीम कोर्ट में चल रहे एक केस के सिलसिले में दिल्ली में था। इस कारण प्रकरण की पूरी जानकारी नहीं है। इसकी पूरी जानकारी लेने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।’

स्टिंग के एक तीर से साधने थे कई निशाने

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत द्वारा आरोपित उमेश शर्मा से बनाई गई दूरी ही स्टिंग के प्रयास का आधार बनी। मुख्यमंत्री रावत के स्टिंग करने का मकसद एक तीर से कई निशाने साधने का था। योजना यह थी कि एक बार सफल स्टिंग होने के बाद इसका भय दिखाते हुए सभी बातें मानने को मजबूर किया जा सके। इससे न केवल आरोपितों के राजनीतिक सहयोगियों का काम पूरा होगा बल्कि वे अधिकारियों से भी अपने काम करा सकेंगे। हालांकि, इस मामले में ऐसा नहीं हो सका और पहले ही पूरे मामले का पर्दाफाश हो गया। इस पूरे प्रकरण में एक निजी इलेक्ट्रानिक चैनल से जुड़े शिकायतकर्ता का चैनल के सीईओ को कठघरे में खड़ा करने के बाद सारी बातें एक-एक कर बाहर आ रही हैं। देखा जाए तो मुख्यमंत्री की कड़क छवि इस पूरे प्रकरण का प्रमुख कारण बनी। शिकायतकर्ता आयुष गौड़ की मानें तो आरोपित उमेश शर्मा व उसके सहयोगियों के प्रदेश में काम नहीं हो रहे थे। मुख्यमंत्री भी उससे दूरी बनाए हुए थे। मुख्यमंत्री से नजदीकी बनाने में सफल न होने के कारण मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश का स्टिंग करने की योजना बनाई गई। इसमें उनका साथ स्थानीय नेताओं व कुछ अधिकारियों ने भी दिया। इसका मुख्य मकसद यह था कि किसी भी तरह मुख्यमंत्री का स्टिंग हो जाए तो फिर आरोपित उनसे अपनी मनचाही बातें पूरी करा सकेंगे और राजनीति व नौकरशाही में उनका रसूख भी बढ़ सकेगा। इसके लिए उन्होंने पहले मुख्यमंत्री के भाई समेत उनके नजदीकियों का स्टिंग किया। हालांकि, इस स्टिंग में ऐसी कोई बातें सामने नहीं आ पाई जो आरोपितों के काम आती। बावजूद इसके वह इनकी रिकार्डिग अपने पास रखते थे। मुख्यमंत्री के नजदीकियों का स्टिंग करने के बाद योजना मुख्यमंत्री का स्टिंग करने की थी। इसके लिए पहले दिल्ली और फिर देहरादून स्थित आवास में स्टिंग का प्रयास किया गया। दिल्ली में मुख्यमंत्री से मुलाकात का मौका नहीं मिला। देहरादून में यह मौका तो मिला लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हो पाया। शिकायतकर्ता आयुष का कहना है कि देहरादून में उसे मुख्यमंत्री से मुलाकात का मौका तो मिला लेकिन वह डर के कारण स्टिंग नहीं कर पाया और मुख्यमंत्री से कुशलक्षेम पूछ वापस आ गया।

बेचैनी से कई सफेदपोश चेहरे स्याह

मुख्यमंत्री से लेकर सरकार के आला अफसरों के स्टिंग की साजिश बेपर्दा होने के बाद से उन लोगों में खासी बेचैनी है, जिनके इस साजिश की मुख्य धुरी के रूप में सामने आए उमेश कुमार शर्मा से संपर्क रहे हैं। न सिर्फ सियासतदां, बल्कि नौकरशाहों के बीच इस बेचैनी को साफ महसूस किया जा सकता है। चिंता यह भी साल रही कि हो न हो, कभी हुई मुलाकात को भी कहीं स्टिंग का रूप न दे दिया गया हो। राज्य में सियासी अस्थिरता पैदा करने के प्रयास व स्टिंग ऑपरेशन जैसे आरोपों में गिरफ्तार उमेश के सत्ता प्रतिष्ठान और नौकरशाहों से संबंध किसी से छिपे नहीं हैं। दोनों ही प्रमुख दलों कांग्रेस और भाजपा से उसकी नजदीकियां रही हैं। वर्ष 2016 में उसके द्वारा किए गए तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुखिया हरीश रावत के स्टिंग ऑपरेशन ने राज्य में सियासी भूचाल ला दिया था। इसके बाद वह भाजपा नेताओं के लिए चहेता बन गया था। अब भाजपा सरकार और उसके नौकरशाह ही उमेश के निशाने पर थे। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के उन लोगों में बेचैनी है, जिनके उमेश से संपर्क रहे हैं। यही नहीं, वे नौकरशाह भी खासे बेचैन हैं, जिनसे वह मिलता-जुलता था। यही वजह भी है कि कोई भी इस प्रकरण पर खुलकर कुछ भी कहने से गुरेज कर रहा है।

सरकार को अस्थिर करने का प्रयास गंभीर मामला 

भाजपा ने राज्य सरकार को अस्थिर करने के प्रयास को गंभीर मामला बताते हुए कहा कि मामले की जांच से न सिर्फ पूरी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी, बल्कि षड्यंत्र का पर्दाफाश होगा। पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी डॉ.देवेंद्र भसीन ने कहा कि एक चैनल के पत्रकार द्वारा अपने ही चैनल के सीईओ और राज्य सरकार के एक अधिकारी सहित चार व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज कराई रिपोर्ट में राज्य में अस्थिरता पैदा करने के प्रयास और स्टिंग ऑपरेशन जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं। यह गंभीर मामला है और कानून अपना काम कर रहा है। जांच निष्पक्ष रूप से की जा रही है। जांच के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

यदि स्टिंग हुआ है तो इसे सार्वजनिक करे सरकार 

कांग्रेस ने भी प्रकरण को गंभीर बताते हुए कहा कि इसमें कानून अपना काम करेगा। साथ ही प्रकरण में सरकार को घेरने की कोशिश भी की है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने कहा कि जैसी खबरें आ रही हैं कि कोई स्टिंग भी हुआ है। मामले में गिरफ्तारी हुई है तो कुछ न कुछ सुबूत भी अवश्य होंगे। ऐसे में सरकार को चाहिए कि जो भी स्टिंग ऑपरेशन हुआ है, उसे सार्वजनिक किया जाए, ताकि उनके चेहरे भी बेनकाब हो सकें। उन्होंने कहा कि यदि प्रदेश की भाजपा सरकार ऐसा नहीं करती है तो उसकी भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर भी सवाल उठने लाजिमी हैं।

उपकरणों में कैद स्टिंग के राज को उमेश करेगा बेपर्दा

निजी चैनल के सीईओ उमेश जे कुमार की साजिश में शामिल अन्य चेहरों के साथ उसके मंसूबों को सबूतों के जरिये साबित करने के लिए पुलिस को अभी लंबी कसरत करनी है। पहले तो उमेश के गाजियाबाद स्थित आवास से मिले इलेक्ट्रानिक उपकरणों में कैद स्ंिटग और जानकारियों की क्रॉस चेकिंग करनी है और उससे जुड़ी हकीकत को सामने लाना है। इसके बाद अन्य आरोपितों की साजिश में भूमिका का भी पता लगाना है। राजपुर पुलिस ने इन्हीं सब बातों को आधार बनाते हुए अदालत से उमेश की पांच दिन की कस्टडी रिमांड मांगी है।

चैनल के इन्वेस्टीगेशन एडीटर आयुष गौड़ की ओर से 11 अगस्त को मुकदमा दर्ज कराने के बाद से ही नेताओं और वरिष्ठ अफसरों की ब्लैकमेलिंग की तफ्तीश कर रही है, लेकिन सरकार को अस्थिर करने की साजिश और इसमें शामिल अन्य लोगों की भूमिका को लेकर अभी बहुत कुछ सामने आना बाकी है। पुलिस सूत्रों की मानें तो पुलिस के पास अब जो सबूत हैं, उसमें सबसे अहम आयुष गौड़ का मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान और उसके द्वारा सौंपी गई वाट्सएप चैटिंग और कॉल रिकार्डिंग शामिल है। इसमें यह तो पता चल रहा है कि स्टिंग के लिए उमेश अपने मुलाजिम आयुष पर लगातार दबाव बना रहा था, लेकिन उत्तराखंड आयुर्वेद विवि के निलंबित कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा समेत अन्य आरोपितों की मिलीभगत को लेकर कई सारे सवालों के जवाब सामने आना बाकी हैं। पुलिस को उम्मीद है कि उमेश के गाजियाबाद स्थित आवास से जो इलेक्ट्रानिक उपकरण बरामद हुए हैं, उनकी की जांच में इन सवालों के काफी हद जवाब मिल सकते हैं।

निवेदिता कुकरेती (एसएसपी) का कहना है कि उमेश से अफसरों की ब्लैकमेलिंग से जुड़े कई सवालों के जवाब के लिए पूछताछ की जानी है। उपकरणों से मिली जानकारी के आधार कुछ और जगहों पर छापेमारी की जरूरत होगी।

पुलिस के रडार पर ब्लैकमेलिंग के खिलाड़ी

प्रदेश में स्टिंग ऑपरेशन कर ब्लैकमेलिंग का खेल खूब फल-फूल रहा है। इसमें सबसे ज्यादा सोशल मीडिया और आरटीआइ को हथियार के रूप में अपनाया जा रहा है। यही कारण है कि सत्ता के गलियारों से लेकर शीर्ष नौकरशाह भी इससे नहीं बच पा रहे हैं। पुराने अनुभव एवं भविष्य की स्थितियां भांपते हुए पुलिस ने अब स्टिंगबाज और ब्लैकमेलरों की कुंडली खंगालनी शुरू कर दी है। अभी तक 18 ब्लैकमेलर पुलिस की रडार पर आ चुके हैं।

उत्तराखंड में स्टिंग ऑपरेशन कर ब्लैकमेलर संगठित अपराध कर रहे हैं। यह बात पुलिस अफसर भी स्वीकार कर चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का स्टिंग हो या प्रदेश के बड़े नौकरशाहों का। सभी में ब्लैकमेलिंग का खेल चला है। इसके अलावा राजधानी से लेकर जिलों में आरटीआइ, सोशल मीडिया या दूसरे तरीकों से स्टिंगबाज सत्ता के गलियारों के शीर्ष तक पहुंचने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इससे प्रदेश की स्वच्छ और साफ-सुथरी छवि भी धूमिल हो रही है। अभी तक आधा दर्जन ऐसे मामले पुलिस दर्ज कर चुकी है। इसमें बागेश्वर में आरटीआइ के नाम पर ब्लैकमेलिंग हो या फिर दून में सोशल मीडिया के कई मामले दर्ज किए जा चुके हैं। जबकि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के सचिव रहे मोहम्मद शाहिद समेत अन्य के स्टिंग भी चर्चाओं में रहे हैं। इन सबसे सबक लेते हुए पुलिस अब स्टिंग के बाद ब्लैकमेल करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का मन बना चुकी है।

सही स्टिंग पर नहीं रोक 

यदि भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में कोई सही स्टिंग करता है तो इस पर कोई रोक नहीं है। खासकर जनता के हितों को देखते हुए यदि कोई स्टिंग या भ्रष्टाचार का मामला उजागर करता है तो उस पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होती है। मगर, स्टिंग कर उसके एवज में ब्लैकमेल करना संगीन अपराध की श्रेणी में है।

अशोक कुमार (अपर पुलिस महानिदेशक अपराध एवं कानून व्यवस्था) का कहना है कि फर्जी तरीके से स्टिंग कर ब्लैकमेलिंग संगठित अपराध है। ऐसे लोगों को चिह्नित कर कार्रवाई की जाएगी। जनता भी ऐसे लोगों के खिलाफ आगे आए।

इन पर खुफिया एजेंसी की नजर

ब्लैकमेलिंग का खेल राजधानी देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर में सबसे ज्यादा है। इसके अलावा नैनीताल, बागेश्वर, उत्तरकाशी, चमोली जैसे सीमांत जनपदों में भी ब्लैकमेलिंग के मामले सामने आ रहे हैं। यहां खुफिया एजेंसी ने कुछ टीवी-चैनल, पोर्टल और समाचार पत्र चलाने वाले, बिल्डर, फाइनेंसर्स, आरटीआइ कार्यकर्ता, सामाजिक संगठन के लोगों को रडार पर लिया है।

राज्य के कुछ बड़े स्टिंग

  • पूर्व सीएम हरीश रावत हॉर्स ट्रेडिंग।
  • आइएएस जेपी जोशी सेक्स स्कैंडल।
  • पूर्व सीएम के सचिव मोहम्मद शाहिद का शराब ढील का स्टिंग।
  • मंत्री हरक सिंह रावत व पूर्व विधायक मदन बिष्ट का फोन स्टिंग।
  • पेयजल निगम के पूर्व एमडी भजनलाल का स्टिंग।
  • ऊर्जा निगम के पूर्व एमडी एसएस यादव का स्टिंग।
  • माइक्रो हाइडिल के पावर प्रोजेक्ट में आवंटन का स्टिंग।

छापे को चुनी करवाचौथ की रात

उमेश जे कुमार के गाजियाबाद स्थित आवास पर छापेमारी के लिए शनिवार का दिन यूं नहीं चुना गया। पुलिस को यकीन था कि इस रोज उमेश कहीं भी हो करवाचौथ के व्रत के लिए वह पत्नी के पास जरूर आएगा। ऐसे में उसे पकड़ना और घर की तलाशी लेना, दोनों काम आसान हो जाएंगे।

22 अक्टूबर को कोर्ट से उमेश जे कुमार के घर का सर्च वारंट मिलने के बाद भी पुलिस खामोश रही। अक्सर रात में होने वाली बैठक में डीआइजी अजय रौतेला और एसएसपी निवेदिता कुकरेती का पूरा जोर इस बात पर था कि सर्च वारंट के लिए पुलिस टीम के उमेश के आवास पर धमकने से पहले उसे कानोंकान खबर न लगे। तय हुआ कि करवाचौथ की रात में पुलिस टीम दून से रवाना होगी और देर रात या तड़के उसके घर की तलाशी लेगी। इसके बाद बाद तय हुआ कि करवाचौथ के दिन पुलिसकर्मी अपने-अपने घर पर त्योहार मनाने के बाद गाजियाबाद के लिए रवाना होंगे। इस रणनीति के तहत त्योहार मनाने के बाद सीओ मसूरी बीएस चौहान, सीओ विकासनगर भूपेंद्र सिंह धौनी, एसओ राजपुर अरविंद सिंह समेत दो दर्जन पुलिस कर्मी पांच अलग-अलग गाडिय़ों से गाजियाबाद के लिए रवाना हुए। गाजियाबाद पहुंचने के बाद इंदिरापुरम पुलिस को साथ लेकर पुलिस जब उमेश के आवास पर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया। जिसे देख पुलिस टीम ने राहत की सांस ली और घर की तलाशी लेने के बाद उसे गिरफ्तार भी कर लिया।

कहां जाना, किसे पकड़ना, नहीं था मालूम

उमेश के गाजियाबाद स्थित घर पर छापेमारी के लिए बनाई गई टीम के अधिकांश पुलिसकर्मियों को मालूम ही नहीं था कि कहां जाना है और किसके यहां छापा मारना और क्या करना है। बस उन्हें इतना ही ब्रीफ किया गया था कि उन्हें किसी ऑपरेशन में लगाया गया है, जिसमें हद दर्जे तक गोपनीयता बरती जानी है। वह तो जब उमेश पुलिस कर्मियों के सामने पड़ा, तब उन्हें मालूम हुआ कि ऑपरेशन क्या था और कितना हाईप्रोफाइल।