राजधानी के युवाओं को प्रदेश सरकार द्वारा उच्च शिक्षा लगाई जा रही बंदिशों में बंधना पसंद नहीं आ रहा है। पहले ड्रेस कोड फिर बायोमेट्रिक और इसके बाद झंडा फहराने के लिए सुबह कॉलेज में हाजिरी जैसे कई अन्य फैसले, युवाओं को उनकी आजादी पर हमला लग रहे हैं। युवाओं की सरकार के प्रति नाराजगी का साइड इफेक्ट कॉलेजों के चुनाव पर भी दिखाई दे रहा है। यहां बीजेपी समर्थित छात्र संगठन एबीवीपी को मतदाता सिरे से नकारते दिखाई दे रहे हैं।
राजधानी के चार कॉलेजों में एबीवीपी का रुतबा हमेशा बाकी संगठनों से बहतर रहा है। यही कारण है कि कई कॉलेजों में संगठन का छात्र संघ पर बीते आठ से दस सालों तक कब्जा रहा लेकिन इस साल अचानक यह रुतबा कम होता दिखाई दे रहा है। अकेले देहरादून की बात की जाए तो यहां के चार कॉलेजों में से दो के छात्र संघ चुनाव परिणा सामने आ चुके हैं, दोनों में एबीवीपी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा अभी दो कॉलेजों केे चुनाव होने बाकी है। अब यहां संगठन से जुड़े वरिष्ठ नेताओं के लिए जीत हासिल करना साख का सवाल बन गया है।
छात्रों को पंसद नहीं आए सरकार के फैसले
कॉलेजों में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में लिए गए फैसले छात्रों के गले नहीं उतर रहे है। प्रदेश में भाजपा सरकार ने सत्ता में आते ही दनादन कड़े फैसले लिए। इसमें छात्रों के लिए कॉलेजों में ड्रेस कोड, अनिवार्य रूप से बायोमेट्रिक हाजिरी जैसे फैसलों ने छात्रों के बीच खासा रोष पैदा किया। छात्र हिमांशु का कहना है कि बचपन से स्कूल लाइफ में ड्रेस में ही स्कूल जाना होता था। कॉलेज लाइफ का क्रेज ही यह था कि ड्रेस पहनने से आजादी रहेगी लेकिन अब कॉलेज में आते ही यहां भी ड्रेस कोड का झंझट होगा तो निराशा हो रही है। छात्रों के हित में यदि फैसेल लेने हैं तो व्यवस्थाओं को बहतर करने और संस्थानों में शिक्षकों की कमी को पूरा किया ड्रेस कोड जैसे फैसलों से ज्यादा जरूरी था। जिससे बहुत बड़ी संख्या में छात्रों के बीच नाराजगी है। इसी नाराजगी का असर
छात्र संघ चुनावों में परिणाम के रूप में सामने आ रहे हैं।
एबीवीपी से जुड़े कार्यकर्ता और डीएवी के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष अंशुल चावला ने बताया कि दो कॉलेजों के चुनाव के आधार पर यह कहना अनुचित होगा कि छात्र संगठन से विमुख हो रहे है। सरकार के फैसले छात्रहितों में ही किए गए हैं। इसके अलावा, सरकार जो भी निर्णय ले रही है उसे आधार बनाते हुए एबीवीपी से छात्रों को नाराजगी भी निराधार तर्क होगा। किसी छात्र के वैचारिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन पूरे सिस्टम को ही गलत कहना किसी भी लिहाज से तकसंगत नहीं है।