देहरादून। श्री गुरु राम राय मेडिकल कॉलेज में अध्ययनरत एमबीबीएस के छात्रों ने फीस वृद्धि के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। मंगलवार को छात्रों ने कक्षाओं का बहिष्कार कर दिया। फीस बढ़ोत्तरी वापस लेने की मांग करते हुए उन्होंने कॉलेज गेट पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया है।
राज्य सरकार ने हाल ही में कैबिनेट बैठक में निजी मेडिकल कॉलेजों को इस आधार पर फीस तय करने का अधिकार दे दिया कि वे यूनिवर्सिटी हैं। इसमें स्वामी राम हिमालयन यूनिवर्सिटी का हिमालयन मेडिकल कॉलेज, एसजीआरआर यूनिवर्सिटी का एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज और सुभारती यूनिवर्सिटी का सुभारती मेडिकल कॉलेज शामिल हैं। अब इन कॉलेजों ने फीस लगभग चार गुना तक बढ़ा दी है। जिस कारण छात्र मानसिक दबाव में हैं। क्योंकि गत वर्ष उन्हें एमबीबीएस में दाखिला शपथ पत्र लेकर दिया गया था। यह इकरारनामा इस बात का था कि फीस बढ़ी तो उन्हें देनी होगी। छात्रों के सामने एक समस्या और भी है कि वे सीट छोडऩे की भी स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में नियमानुसार उन्हें पूरे कोर्स की फीस चुकानी होगी। इन छात्रों ने जिस वक्त दाखिला लिया तब फीस पांच लाख रुपये सालाना थी। हॉस्टल व मेस चार्ज आदि मिलाकर यह करीब साढ़े सात लाख होती थी। यह अब बढकर 19 लाख पहुंच गई है।
अभिभावकों ने भी खोला मोर्चा
निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस वृद्धि के खिलाफ अभिभावकों ने भी मोर्चा खोल दियाल है। निजी मेडिकल विश्वविद्यालय संयुक्त अभिभावक संघ की प्रेस क्लब में हुई पत्रकार वार्ता में अभिभावक राज्य सरकार पर जमकर बरसे। संगठन के मुख्य संरक्षक रविंद्र जुगरान ने कहा कि सरकार का यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन है। वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को ये दिशा निर्देश दिये थे कि निजी विश्वविद्यालयों में फीस निर्धारण के लिए सभी राज्य उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में शुल्क निर्धारण नियामक समिति गठित करें। इसके बाद वर्ष 2006 में ही तत्कालीन सरकार ने समिति का गठन कर एक्ट भी पारित कराया। हाल में राज्य कैबिनेट ने निजी विश्वविद्यालयों को अपने मेडिकल कॉलेजों को फीस निर्धारण का अधिकार दे दिया। यह निर्णय जनविरोधी है। इससे निम्न व मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चों के हित प्रभावित होंगे। मेरिट व योग्यता में कम और अमीर परिवारों के बच्चे इसका लाभ ले जाएंगे। इससे कहीं न कहीं गुणवत्ता पर भी असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि सरकार का यह तुगलकी फरमान है और इसे वापस लिया जाना चाहिए। वैसे भी यह प्रकरण उच्च न्यायालय में लंबित है। ऐसे में सरकार को इंतजार करना चाहिए था। उन्होंने सवाल किया कि राज्य सरकार की आखिर क्या मजबूरी थी जो यह निर्णय लेना पड़ा। अभिभावक संघ ने पूर्व की व्यवस्था बहाल न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है। इस दौरान संघ के संरक्षक विनोद भट्ट, अध्यक्ष प्रो वीपी जोशी, उपाध्यक्ष नेत्र सिंह चौहान, उमा पटनी, महामंत्री धनंजय बिड़ला आदि उपस्थित रहे।